पटना। भारतीय जनता पार्टी के लिए फिलहाल चुनौती 2019 का लोकसभा चुनाव है, लेकिन बिहार में नीतीश कुमार की पूरी तैयारी 2020 के विधानसभा चुनाव को लेकर चल रही है। उनके सारे ऐक्शन-रिएक्शन विधानसभा चुनाव के संदर्भ में दिख रहे हैं। हर बार की तरह उनका ज्यादा ध्यान आधी आबादी की ओर है। नीतीश कुमार का बेड़ा पार कराने में आधी आबादी का बड़ा योगदान रहा है। बच्चियों को स्कूल ड्रेस और साइकिल देकर, महिलाओं को नौकरियों और निकाय चुनावों में आरक्षण देकर तथा स्नातक पास लड़कियों को प्रोत्साहन राशि देने की ताजा घोषणा से यह बात साफ हो गया है कि नीतीश कुमार का भरोसा आधी आबादी पर ज्यादा है।
नीतीश कुमार की एक खासियत रही है। वह कभी भी जाति के वोटों के ठेकेदार नहीं बने। बनते भी तो इससे उनका काम नहीं चलत पाता। इसलिए कि उनकी जाति की आबादी सिंगल डिजिट में हैं। उन्होंने अपना जनाधार जातियों के मिश्रित समीकरण से तैयार किया। उनके वोटरों में दलित, पिछड़े, मुसलमान तो रहे ही, महिलाओं का दिल खोल समर्थन उन्हें मिलता रहा है। सवर्ण भी उनका साथ देते रहे हैं। इस बार भी वह काफी कैलकुलेटेड ढंग से महिलाओं के अपने आधार को अक्षुण्ण रखना चाहते हैं। दलितों की दो श्रेणियां- दलित और महादलित बना कर उन्होंने इस तबके को अपने प्रभाव में लेना शुरू किया तो यह सिलसिला आज तक बरकरार रखा है। दलित-पिछड़ों के लिए उन्होंने कई योजनाएं दी हैं। बीपीएससी-यूपीएससी की तैयारी करने वाले दलितों (एससी-एसटी) के लिए उन्होंने प्रोत्साहन राशि की व्यवस्था की है तो उनके रोजगार के लिए प्रयास शुरू किये हैं।
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नीतीश कुमार ने शराब बंदी की वजह से बेरोजगार हुए लोगों के लिए कई तरह की योजनाएं शुरू की है। शराबबंदी से उन्होंने महिलाओं का दिल जीता है, क्योंकि शराबबंदी से घरों में कोहराम बंद हो गये। शांति ने डेरा जमाया।
नीतीश राज्य सरकार के मुखिया के नाते वे सारे काम कर रहे हैं और उसका बखान कर-करा रहे हैं, जो बिहार में उनकी छवि को चमका सकें। वह भाजपा से खार खाये मुसलमानों में यह विश्वास जगाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं कि कोई साथ रहे या न रहे, वह कम्युनलिज्म से समझौता नहीं कर सकते। इशारा साफ है। भाजपा को मुसलमान वोट दें या न दें, पर उनसे दूर न जायें। इसके लिए वह इफ्तार पार्टियों में पूर्व की तरह शिरकत करते रहे। मजारों पर चादरपोशी करते रहे। इसे देख किसी को भी यह समझने में परेशानी नहीं होगी कि नीतीश कुमार को अपने विधानसभा चुनाव की ज्यादा चिंता है, बनिस्बत लोकसभा चुनाव की।
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