पटना। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालेसपा) के नेता उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं। सम्मान के लिए वह कभी भाजपा के भूपेंद्र यादव से मिल रहे तो कभी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और अपने ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने के लिए बेचैन हैं। कभी एनडीए को अल्टीमेटम दे रहे हैं तो कभी बिहार में नीतीश सरकार पर सवाल दर सवाल उछाल रहे हैं। अघोषित तौर पर यह स्पष्ट हो चुका है कि उनकी बातें नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह एनडीए में हो गयी है। फिर भी एनडीए का उनका मोह जा नहीं रहा।
2013 में नीतीश से अलग होकर रालोसपा बनाने वाले उपेंद्र कुशवाहा की उपलब्धि पांच सालों में महज यह रही है कि लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के सहारे उनकी पार्टी ने तीन सीटें जीती थीं। इनमें एक अरुण कुमार ने अलग गुट बना लिया। विधानसभा में उनके कुल जमा दो विधायक आये और विधान परिषद में एक सदस्य जीता। दोनों विधायकों ने पहले ही नीतीश कुमार के साथ जाने का संकेत दे दिया है। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो उपेंद्र कुशवाहा अपना ही घर संभाल पाने में नाकामयाब रहे हैं तो वह दूसरों को क्या नसीहत दे पायेंगे, यह देखने वाली बात होगी।
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हालांकि जो संकेत मिल रहे हैं, उसके मुताबिक उपेंद्र कुशवाहा के लिए दो ही रास्ते बचते हैं। या तो वह खुद ब खुद अलग हो जायें या जिस रूप में एनडीए रखे, चुपचाप उसे स्वीकार कर लें। अपनी औकात का अंदाज शायद उपेंद्र कुशवाहा को भी है। इसीलिए वह धक्के खाकर भी एनडीए का साथ छोड़ने की घोषणा नहीं कर रहे। हालांकि उनके पास एक ओपन आप्शन आरजेडी का है, लेकिन आरजेडी की हालत अंदरूनी कारणों से अच्छी नहीं है।
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एक तो लालू परिवार में अपने ही खटपट चल रही है, दूसरे लालू परिवार के सभी सदस्य जांच एजेंसियों के राडार पर हैं। लालू प्रसाद खुद जेल के सीखचों में कई तरह की गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। वैसे में उनके फोल्ड का पारंपरिक वोट मुसलिए-यादव अंत तक साथ निभा पायेगा, इसमें संदेह दिखता है।
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चूंकि अभी चुनाव में पर्याप्त समय है। जोड़-तोड़ और भागने-छोड़ने का एक दौर बाकी है। इसलिए थोड़ी आक्सीजन आरजेडी को मिलने की अभी उम्मीद है। लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि आरजेडी की अगुवाई में बनने वाले महागठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर कितनी और किस तरह की सहमति बन पाती है। इसलिए कि कांग्रेस बड़ी हिस्सेदारी के लिए अपने को चौकस बना रही है तो थोड़ा पहले आरजेडी से सटे हम (सेकुलर) के नेता जीतन राम मांझी दावा करते रहे हैं कि उन्हें भी सम्मानजनक भागीदारी चाहिए, क्योंकि 20 सीटों पर वह जिताने-हराने का माद्दा रखते हैं।
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