ममता दीदी, अपने कर्मचारियों को कब तक खटायेंगी 5वें वेतनमान पर
कोलकाता। पश्चिम बंगाल देश का एक ऐसा सूबा है, जहां सरकारी कर्मचारी सरकार के रहमोकरम पर न सिर्फ जीते हैं, बल्कि हक व हकूक के के लिए जल्दी मुंह नहीं खोलते। यह वही बंगाल है कि जहां केंद्रीय कर्मचारियों के लिए अद्यतन वेतनमान के लिए सरकारें दबाव डालती रही हैं, लेकिन राज्य सरकारें खुद अपने कर्मचारियों के बारे में खामोशी अख्तयार कर लेती हैं। देश में शायद पश्चिम बंगाल इकलौता सूबा है, जहां अब भी राज्य सरकार के कर्मचारियों को पांचवें वेतनमान का लाभ ही मिल रहा है, जबकि देश के कई राज्य सातवां वेतमान दे रहे हैं।
सूबे के विकास में सबसे बडा योगदान सरकारी कर्मचारियों का है। इसके कुछ तथ्य देख सकते हैं। पूरे देश मे सातवाँ वेतन आयोग लागू है,यहाँ के कर्मचारी पाँचवें में ही खुश हैं। कोई प्रतिरोध नहीं है। जो वेतन आयोग लागू हुए, वे प्रत्येक बार 3 से 4 साल बाद लागू हुए। उदाहरण के लिए 1996 का 1999 में, 2006 का 2009 में। 2016 में सातवां वेतमान भी आ गया, लेकिन बंगाल में इसके लागू होने की दूर-दूर तक कोई संभावना फिलहाल नहीं दिखती।
राज्य में सरकार चाहे जिसकी रही हो, जैसे सदाशय सकार- कांग्रेस, सर्वहारा की सरकार-वामपंथी, माँ माटी मानुष की सरकार- तृणमूल, प्रत्येक ने पूरे देश की तुलना में डीए 20-50 प्रतिशत तक वर्षों कम दिया, पर यहाँ के कर्मचारियों ने कभी उफ्फ तक नहीं कहा।
वेतमान में पात्रता और योग्यता तथा पद के अनुरूप अखिल भारतीय मानदंड न मानने पर भी किसी सरकारी कर्मचारी संगठन ने पुरजोर विरोध नहीं किया। कोलकता में स्थित केन्द्र सरकार के कर्मचारियों को 30% गृहभत्ता देने के लिए यहीं के राज नेताओं ने आंदोलन किया और दिलवाया, पर अपने राज्य के कर्मचारियों को इससे महरूम रखा। किसी ने कोई विरोध नहीं किया और विरोध के स्वर भी नहीं उठे।
इस राज्य के कर्मचारी न्यूज चैनलों पर कहते हैं कि वेतन आयोग को लागू करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि राज्य आर्थिक मंदी से गुजर रहा है। कई तो यहाँ तक कहते मिलते हैं कि अभी जो मिल रहा है, वही खर्च नहीं हो पाता, अधिक लेकर क्या होगा। देर से वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने पर भी यदि एरियर नहीं मिलता तो भी यहां के कर्मचारी चूँ तक नहीं करते।
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