पटना। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नेता उपेंद्र कुशवाहा आज भाजपानीत एनडीए को बाय बोल सकते हैं। 2014 से एनडीए के साथी रहे उपेंद्र कुशवाहा को कोफ्ता है कि कई बार समय मांगने के बावजूद न भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने उन्हें मिलने का समय दिया और प्रधानमंत्री ने ही। प्रधानमंत्री से 30 नवंबर तक का समय उन्होंने मांगा था। आजाद होकर वह नीतीश के खिलाफ हल्ला बोलेंगे।
वाल्मीकिनगर के चिंतन शिविर में एनडीए से अलग होने का नीतिगत फैसला बुधवार को हो गया था। उम्मीद है कि मोतिहारी में आज सार्वजनिक सभा में कुशवाहा इसकी घोषणा कर दें। उन्होंने पहले से ही इसके संकेत अपने बयान, ट्वीट और आचरण के जरिये देना शुरू कर दिया था। यह अभी तक साफ नहीं हो पाया है कि एनडीए छोड़ने के बाद वह किसी के साथ जायेंगे या एकला चलेंगे।
कुशवाहा को जितनी कोफ्त भाजपा से है, उससे ज्यादा जदयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से है। नीतीश के खिलाफ उन्होंने कई मोर्चे खोल दिये हैं। शिक्षा में गिरावट के खिलाफ उन्होंने बिहार में हल्ला बोल आंदोलन शुरू किया था, जो लगातार चला। बीच में अपने बारे में नीतीश के अपमानसूचक शब्द को उन्होंने मुद्दा बनाया। उनके विधायकों पर नीतीश ने जब डोरे डाले तो उनकी खुन्नस परवान चढ़ गयी।
कुशवाहा ने कई मौकों पर खीर बनाने की विधि बता कर यह संकेत दे दिया कि वह राजद के महागठबंधन में शामिल हो सकते हैं। अरवल के सर्किट हाउस में तो उन्होंने राजद के नेता तेजस्वी यादव से मुलाकात तक कर ली। राजद नेता तेजस्वी और उनकी मां राबड़ी देवी ने भी कई बार कुशवाहा को अपने साथ आने का खुला आफर दिया है। उम्मीद की जाती है कि कुशवाहा अगर एनडीए छोड़ते हैं तो राजद के साथ ही तालमेल बिठायेंगे।
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2014 के आम चुनाव में कुशवाहा की पार्टी ने एनडीए का घटक बन कर तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था और सभी जीते थे। इनमें अरुण कुमार ने अलग गुट बना लिया। विधानसबा में भी कुशवाहा के दो विधायक थे, जिन्हें जदयू ने अपने पाले में कर लिया है। माना गया था कि कुशवाहा की 2014 की जीत मोदी लहर के कारण हुई। वह अपने जनाधार बढ़ने की बात बार-बार करते हैं। इस बार देखना दिलचस्प होगा कि सच में उनका जनाधार है कि मोदी लहर ने उनकी वैतरणी पार करायी थी।
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