पटना। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नेता उपेंद्र कुशवाहा की मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं। कठिनाइयों की तादाद तो उनके साथबढ़ रही है, लेकिन अपनों का साथ लगातार छूटता-टूटता जा रहा है। तीन सांसदों के साथ 2014 में संसद पहुंचे उपेंद्र कुशवाहा केंद्र में मंत्री बन गये थे। पार्टी में उनके अलग-थलग पड़ जाने की मूल वजह उनका एनडीए छोड़ना है। 6 दिसंबर को उन्होंने मोतीहारी में पार्टी कार्यकर्ताओं की खुली सभा की थी। उस सभा में न उनके विधायक गये और विधान पार्षद। सांसद रामकुमार शर्मा भी नहीं पहुंचे थे। विधायकों ने तो उनसे उसी दिन दूरी बना ली थी, जब पार्टी के ऊसूलों-आदेशों को दरकिनार कर वे भाजपा विधायक दल की बैठक में पहले दिन शरीक हुए और एक दिन बाद होने वाली एनडीए विधायक दल की बैठक में वे देखे गये।
उपेंद्र कुशवाहा को पहला झटका तब लगा था, जब उनका साथ अरुण कुमार ने छोड़ दिया और अलग गुट बना लिया। अब तो उनके महज दो विधायकों और एक बिहार विधान परिषद के सदस्य ने भी उनसे नाता तोड़ लिया। इतना ही नहीं, रालोसपा के असली वारिस वे खुद को बता रहे हैं। चुनाव चिह्न पर भी उन्होंने दावा ठोंक दिया है।
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पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भगवान सिंह कुशवाहा ने कुछ ही दिन पहले कहा था कि उपेंद्र ने एडीए छोड़ने में हड़बड़ी कर दी। यानी अभी खुल कर तो वह किसी ऐक्शन में नहीं दिख रहे, लेकिन अनुमान है कि वे भी जल्दी ही उपेंद्र का साथ छोड़ देंगे। ऐसी स्थिति में कार्यकर्ताओं का रुख क्या रहता है, यह देखने वाली बात होगी।
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उपेंद्र कुशवाहा ने रविवार को पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हाल में बुलायी है। बैठक में कार्यकर्ताओं-नेताओं की उपस्थिति और उनकी राय से इस बात पर मुहर लग जायेगी कि उपेंद्र किस गति को प्राप्त होने वाले हैं। प्रथमदृष्टया उपेंद्र कुशवाहा के राजदनीत महागठबंधन में शामिल होने की उम्मीद है। वह राहुल गांधी से भी मिलने को बेताब हैं, पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह राहुल से भी समय नहीं मिल पा रहा है। बताया जाता है कि 15 दिसंबर से शुरू हो रहे खरमास के पहले ही वह उनसे मिलने की कोशिश करेंगे। देखना यह है कि कुशवाहा कांग्रेस की राह पकड़ते हैं या राजद के सहारे महागठबंधन का हिस्सा बनते हैं।
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