सरदार पटेल न होते तो भारत का विभाजन रोकना कठिन था

0
540
नेहरू ने जम्मू-कश्मीर को पटेल के नियंत्रण से निकालकर इसे गोपाल स्वामी अयंगर के नियंत्रणाधीन दे दिया। इससे पटेल की भावनाएं गहराई से आहत हुईं।
नेहरू ने जम्मू-कश्मीर को पटेल के नियंत्रण से निकालकर इसे गोपाल स्वामी अयंगर के नियंत्रणाधीन दे दिया। इससे पटेल की भावनाएं गहराई से आहत हुईं।

पुण्यतिथि पर विशेष

  • नवीन शर्मा

आज हम भारत का जो राजनीतिक मानचित्र देखते हैं, उसे इस रूप में ढालने में सबसे अधिक योगदान सरदार वल्लभ भाई पटेल का है। अंग्रेजों ने 15 अगस्त 1947 को जब मजबूर होकर भारत को आजाद  किया तो वे एक बहुत ही ढीला ढाला देश था। करीब 550 से अधिक छोटी-बड़ी रियासतें देश में थीं। अंग्रेजों ने जाते-जाते भी खुराफात की। इन देशी रियासतों के शासकों को विकल्प दिया गया कि वे भारत व पाकिस्तान में से किसी में भी विलय करने के लिए स्वतंत्र थे। इनके विलय का मुश्किल काम सरदार पटेल ने बड़ी ही कूटनीतिक क्षमता का प्रयोग करते हुए किया। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को ‘भारत का बिस्मार्क’ और ‘लौहपुरुष’ भी कहा जाता है।

सरदार का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ। वे खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई और लाडबा पटेल की चौथी संतान थे। वल्लभ भाई की शादी झबेरबा से हुई। पटेल जब सिर्फ 33 साल के थे, तब उनकी पत्नी का निधन हो गया।

- Advertisement -

सरदार पटेल अन्याय नहीं सहन कर पाते थे। अन्याय का विरोध करने की शुरुआत उन्होंने स्कूली दिनों से ही कर दी थी। नडियाद में उनके स्‍कूल के अध्यापक पुस्तकों का व्यापार करते थे और छात्रों को बाध्य करते थे कि पुस्तकें बाहर से न खरीद कर उन्हीं से खरीदें। वल्लभभाई ने इसका विरोध किया और छात्रों को अध्यापकों से पुस्तकें न खरीदने के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप अध्यापकों और विद्यार्थियों में संघर्ष छिड़ गया। 5-6 दिन स्‍कूल बंद रहा। अंत में जीत सरदार की हुई। अध्यापकों की ओर से पुस्तकें बेचने की प्रथा बंद हुई।

सरदार पटेल को  स्कूली शिक्षा पूरी करने में काफी समय लगा। उन्होंने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की। उनका सपना वकील बनने का था। इस सपने को पूरा करने के लिए उन्हें इंग्लैंड जाना था, लेकि‍न उनके पास इतने भी आर्थिक साधन नहीं थे कि वे एक भारतीय महाविद्यालय में प्रवेश ले सकें। उन दिनों एक उम्मीदवार व्यक्तिगत रूप से पढ़ाई कर वकालत की परीक्षा में बैठ सकते थे। ऐसे में सरदार पटेल ने अपने एक परिचित वकील से पुस्तकें उधार लीं और घर पर पढ़ाई शुरू कर दी। बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहां की महिलाओं ने ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की।  सरदार पटेल वर्णभेद तथा वर्गभेद के कट्टर विरोधी थे।

इंग्‍लैंड में वकालत पढ़ने के बाद भी उनका रुख पैसा कमाने की तरफ नहीं था। सरदार पटेल 1913 में भारत लौटे और अहमदाबाद में अपनी वकालत शुरू की। जल्द ही वे लोकप्रिय हो गए। अपने मित्रों के कहने पर पटेल ने 1917 में अहमदाबाद के सैनिटेशन कमिश्नर का चुनाव लड़ा और उसमें उन्हें जीत भी हासिल हुई।

सरदार पटेल गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की सफलता से काफी प्रभावित थे। 1918 में गुजरात के खेड़ा खंड में सूखा पड़ा। किसानों ने करों से राहत की मांग की, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने मना कर दिया। गांधीजी ने किसानों का मुद्दा उठाया, पर वे अपना पूरा समय खेड़ा में अर्पित नहीं कर सकते थे, इसलिए एक ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रहे थे, जो उनकी अनुपस्थिति में इस संघर्ष की अगुवाई कर सके। इस समय सरदार पटेल स्वेच्छा से आगे आए और संघर्ष का नेतृत्व किया।

आजादी के बाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में सरदार वल्लभभाई पटेल की दावेदारी काफी मजबूत थी। वे देश के पहले प्रधानमंत्री होते, लेकिन महात्मा गांधी ने जवाहर लाल नेहरू को आगे किया। इस पर गांधीजी की इच्छा का सम्मान करते हुए इस पद से पीछे हट गए और नेहरूजी देश के पहले प्रधानमंत्री बने। देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उपप्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। सरदार पटेल के निधन के 41 वर्ष बाद 1991 में भारत के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान भारतरत्न से उन्‍हें नवाजा गया। यह अवॉर्ड उनके पौत्र विपिनभाई पटेल ने स्वीकार किया।

गृहमंत्री के रूप में पटेल की पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था। इस काम को उन्होंने बिना खून बहाए करके दिखाया। केवल हैदराबाद के ‘ऑपरेशन पोलो’ के लिए उन्हें सेना भेजनी पड़ी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिए उन्हे भारत का ‘लौहपुरुष’ के रूप में जाना जाता है। सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना। विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ, जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी।

यह भी पढ़ेंः ओमप्रकाश अश्कः सामाजिक सरोकार में सराबोर एक पत्रकार

आजादी से पहले जूनागढ़ रियासत के नवाब ने 1947 में पाकिस्तान के साथ जाने का फैसला किया था, लेकिन भारत ने उनका फैसला स्वीकार करने से इंकार करके उसे भारत में मिला लिया। भारत के तत्कालीन उपप्रधानमंत्री सरदार पटेल 12 नवंबर 1947 को जूनागढ़ पहुंचे। उन्होंने भारतीय सेना को इस क्षेत्र में स्थिरता बहाल करने के निर्देश दिए और साथ ही सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का आदेश दिया।

यह भी पढ़ेंः बिहार आने वाले पर्यटकों को लुभाते हैं मुगलकालीन धरोहर

जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ़ तथा हैदराबाद के राजाओं ने शुरू में भारत के साथ विलय करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भाग कर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ़ भी भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया, तो सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया। कश्मीर मामले में पाकिस्तान ने हस्तक्षेप किया था। कबालियों के भेष में सैनिक भेज कर कश्मीर के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था। वहां के शासन क हरि सिंह ने जड विलय के.दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए तब भारतीय सेना कश्मीर गई और.शेष कश्मीर का भारत में विलय हुआ। यह मामला संयुक्त राष्ट्र में जाने के कारण यथास्थिति बरकरार रखने के दवाब के कारण पाकिस्तान का कश्मीर पर कब्जा हो गया जिसे आज.हम पाक अधिकृत कश्मीर कहते हैं।

यह भी पढ़ेंः राज कपूरः जीना यहां मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां

अन्य राजनेताओं से अलग हटकर उनकी शख्यियत थी। सरदार पटेल के पास खुद का मकान भी नहीं था। वे अहमदाबाद में किराए एक मकान में रहते थे। 15 दिसंबर 1950 में मुंबई में जब उनका निधन हुआ, तब उनके बैंक खाते में सिर्फ 260 रुपए मौजूद थे।

यह भी पढ़ेंः अभी तो वेंटिलेटर से आईसीयू में आई है पोलियोग्रस्त कांग्रेस

- Advertisement -