- कुरान का कर रहे हैं भोजपुरी अनुवाद
- बिस्मिल्लाह खां पर लिख चुके हैं पुस्तक
- वीर कुंवर सिंह और धरमन बीबी के प्रेम पर लिख चुके हैं पुस्तक
20 साल से रोजा रख रख रहे हैं मुरली मनोहर श्रीवास्तव हैं। लेखक सह वरिष्ठ पत्रकार मुरली मनोहर हिन्दू-मुसलिम एकता की मिसाल पेश कर रहे हैं। हिंदु-मुस्लिम एकता को एक परिवार और आपसी मिल्लत की मिसाल मानने वाले इस शख्स को जितनी हिंदू पर्व त्योहारों में आस्था है, उतनी ही श्रद्धा रमजान में भी है। हिंदू धर्म के प्रति आस्था रखने वाले इस भक्त की खासियत यह है कि नवरात्र से लेकर रोजा रखने तक में अपनी आस्था रखते हैं।
यह भी पढ़ेंः अजीम प्रेमजी को मुसलमान से अधिक भारतीय होने पर गर्व है
मुरली मनोहर श्रीवास्तव पेशे से लेखक और पत्रकार हैं। इन्होंने बिस्मिल्लाह खां पर पुस्तक लिखी, उनके ऊपर डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनायी। साथ ही अन्य कई पुस्तकें अभी और आने वाली हैं, जिनमें “वीर कुंवर सिंह की प्रेमकथा” प्रमुख है। इस पुस्तक में 1857 के वीर सेनानी बाबू कुंवर सिंह और धरमन बीबी के मुहब्बत और देशभक्ति को दिखाया है, जो देशभक्ति और आपसी मिल्लत की मिसाल है। इसके अलावा दर्जनों डॉक्यूमेंट्री भी बना चुके हैं। इतना ही नहीं, बिस्मिल्लाह खां पर विश्वविद्यालय खोलने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। इन्हें पूरा भरोसा है कि एक न एक दिन अल्लाह ताला इनकी हसरत को जरूर पूरी करेंगे।
यह भी पढ़ेंः भारत के प्रगतिशील बुद्धिजीवियों ने राष्ट्रवाद को कमजोर किया
रोजा रखने के संदर्भ में पूछे जाने पर मुरली बताते हैं कि रोजा करने के लिए किसी ने इन्हें कहा या दबाव नहीं बनाया बल्कि एक बार अचानक लगा कि कोई इन्हें रोजा करने के लिए कह रहा है। मगर आज तक पता नहीं चला कि वो कौन था और अचानक से कहां चला गया। फिर क्या मुरली ने रोजा रखना शुरु कर दिया। शहनाई नवाज भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के साथ लंबा समय गुजारने वाले मुरली मनोहर श्रीवास्तव कई बार तो रमजान के महीने में उनके पास भी पहुंचकर रोजा रखा करते थे। हां, ये बात अलग है कि तीस रोजा रख पाना अब इनके लिए मुमकिन नहीं हो पाता है, जबकि अलविदा शुक्रवार को करना कभी नहीं भूलते हैं। हलांकि कोशिश करते हैं कि शुक्रवार को कभी न छोड़ें।
यह भी पढ़ेंः यह वही रांची हैं, जहां एक ईसाई संत ने रामकथा लिखी
कहते हैं जहां आस्था है वहीं भगवान है। जहां विश्वास है वहीं संपूर्ण ब्रह्मांड है। चाहे कोई भी धर्म हो लेकिन खुदा की इबादत बस यही सीखाती है कि मानवता में विश्वास रखो। हर इंसान की कदर करना सीखो। रमजान में रोजे को अरबी में सोम कहते हैं, जिसका मतलब है रुकना। रोजा यानी तमाम बुराइयों से परहेज करना। रोजे में दिन भर भूखा व प्यासा ही रहा जाता है। इसी तरह यदि किसी जगह लोग किसी की बुराई कर रहे हैं तो रोजेदार के लिए ऐसे स्थान पर खड़ा होना मना है। रोजा झूठ, हिंसा, बुराई, रिश्वत तथा अन्य तमाम गलत कामों से बचने की प्रेरणा देता है।
यह भी पढ़ेंः घोषणा के बावजूद अब तक नहीं बना बिस्मिल्लाह खां विश्वविद्यालय