मलिकाइन के पाती- पूत सपूत त का धन संचय

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पावं लागीं मलिकार। आज मन बड़ा अंउजियाइल रहल बा, एही से नवरातन के पूजा-पाठ में अझुराइल रहला के बादो टाइम निकाल के रउरा के पाती लिखवावत बानी। दुनिया-जहान कहां जा रहल बा मलिकार, हमरा त बुझाते नइखे। सचहूं परलय होई का मलिकार। पहिले त हम एकरा के खाली कथा-परतोख मानत रहनी हां, बाकिर अब बुझाता कि जब पाप बढ़ जाला, त परलय होला भा पापी के नाश करे खातिर राम आउर कान्हा के जनम होला। राम जी पाप के पुजारी रावण के मार देले आ कान्हा पापी कंस के नाश क देले। अब बुझाता मलिकार कि लोग काहें कहेला- पूत सपूत त का धन संचय।

काल्ह एगो खबर सुनवीं आ आज पांड़े बाबा एगो अउरी खबर सुनावत रहनी हां। उहों के ई बात कहत रहवीं कि का हो गइल बा दुनिया में, कइसन जमाना आ गइल। काल्ह उहां के बतावत रहवीं के पटना में पढ़े वाला एगो लड़िका संघतियन से थोर-थोर उधार लेके कर्जा अपना ऊपर साठ हजार चढ़ा लिहलस। लवटावे के उपाय बतवलस अपना संघतियन के। पढ़े गइल त घरे ना लवटल। घरे माई-बाप एने-ओने छिछियाइल फिरत रहे लोग। तबले फोन आइल कि ऊ अगवा हो गइल बा। ओकरा के छोड़ल जाई, बाकिर तीन लाख रुपिया चाहीं। थोड़हीं देर बाद बेटवो फोन कइलस कि ओकर अपहरन हो गइल बा। छोड़े खातिर लोग तीन लाख रुपिया मांगत बा। जल्दी दे दीं ना त मुआ दी लोग। ई सुन के माई-बाप के हालत खराब हो गइल। भागल-पराइल पुलिस के बतावल लोग। पुलिस खोज के ले आइल आ जवन कहानी पता चलल, ऊ सुन के केहू अइसन ना होई जेकर माथा ना ठनकल होई। बेटवे सगरी पलना बनवले रहे। बेटा अगर अइसन हो जा सन त ओकनी से माई-बाप का उमेद क सकेला।

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आज फेर पांड़े बाबा एगो खबर सुनावत रहनी हां। दिल्ली में रहे वाली एगो बंगालिन के बेटा बंगलउर (बेंगलुरू) में नोकरी करेला। ओकर माई दिल्ली में अकेले भाड़ा के घर में रहत रहली हा। उनकर किरनी (किडनी) खराब हो गइल रहल हा। हफ्ता में दू बेर खून बदलात रहल हा। बीस-पच्चीस दिन से उनकर तबियत बेसी खराब हो गइल। ऊ बेर-बेर बेटा के फोन करस कि ए बाबू, जल्दी आ जा। बुझाता अब बांचब ना। बेटा के जवाब होखे कि अबहीं छुट्टी नइखे मिलत, ढेर काम बा। देवराई (दिवाली) में आयेब। काल्ह जब ओह भाड़ा के घर से बदबू आवे लागल त लोग पुलिस बोलवा के घर के दरवाजा तुरवावल। भीतर माई मर के सड़-गल गइल रहली। फोन भइल त बेटा जहाज पर बइठ के आइल। अब अइला से का फायदा। ढेर नाती कइले होइहें त माई के फूंक-ताप दिहले होइहें।

अब बुझाता मलिकार कि लोग काहें कहेला- पूत सपूत त का धन संचय, पूत कपूत त का धन संचय। बाकिर एकरा संगे इहो बुझाता कि धन संचय से का फायदा, जब अइसन मौका पर पूत संगे रहबे ना करे भा माई-बाप के ठगे खातिर कवनो चोर-चुहाड़ का जगहा बेटवे खड़ा हो जाव। रउरा एक बेर बतवले रहनी मलिकार, बिरला जी के एगो कहानी। उहां के अपना बेटा के चिट्ठी लिखले रहनी कि संतान नालायक हो जाव त धन ओकरा के ना देके गरीब-गुरबा में बांट देबे के चाहीं। लोग त संगे रही। हमरा त अब इहे बुझाता मलिकार कि लोग पइसा कमा के का करी, जब आदमीए संगे ना रही। रउरा पर हमार मन एही से खुश रहेला कि रउरा भलहीं पइसा ना कमइनी, बाकिर आदमी एतना उपराज लिहनी कि ओही लोग के मदद से जिनिगी पार लाग जाई। हाथ-गोड़ जबले चली, तबले त कवनो बाते नइखे। आज मन अनमनाइनल बा। थोड़ लिखना, बेसी समझना।

राउरे, मलिकाइन    

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