पश्चिम बंगाल बीजेपी में इनदिनों सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है

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पश्चिम बंगाल बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। राज्यसभा सदस्य मुकुल राय पार्टी की बैठक से नदारद रहे। राजीव बनर्जी गवर्नर रूल का विरोध कर रहे हैं।
पश्चिम बंगाल बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। राज्यसभा सदस्य मुकुल राय पार्टी की बैठक से नदारद रहे। राजीव बनर्जी गवर्नर रूल का विरोध कर रहे हैं।
  • डी. कृष्ण राव

कोलकाता। पश्चिम बंगाल बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। राज्यसभा सदस्य मुकुल राय पार्टी की बैठक से नदारद रहे। राजीव बनर्जी गवर्नर रूल का विरोध कर रहे हैं। शुभेंदु अधिकारी बंगाल में गवर्नर रूल यानी धारा 356 लागू करने की बात कर रहे है। वे दिल्ली में कल से हैं। कल उनकी मुलाकात गृह मंत्री अमित शाह से हुई थी। प्रधानमंत्री से भी मिलना था। इस बीच अर्जुन सिंह, सौमित्र खान समेत अपने 3 सांसदों को बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने दिल्ली बुलाया है। वीरभूम में बीजेपी समर्थक नारा लगाते घूम रहे हैं कि उनसे भूल हो गयी, वे टीएमसी का समर्थन करना चाहते हैं। राजीव बनर्जी की ममता बनर्जी के प्रति सहानुभूति से लग रहा है कि वे वापस टीएमसी में जाना चाहते हैं। लेकिन उनके ही इलाके में उन्हें गद्दार का पोस्टर टीएमसी ने लगाया है।

बीजेपी के कई कद्दावर नेता, जो पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के पहले तृणमूल छोड़कर आये थे, वे वापसी की हड़बड़ी में हैं। बीजेपी के राज्यसभा सदस्य मुकुल राय और सांसद सौमित्र खान का मन भी डोल रहा है। हाल ही दोनों की मुलाकात हुई थी। अर्जुन सिंह भी पार्टी से नाराज बताये जाते हैं। उन्होंने राजनीतिक हिंसा पर कहा भी था कि अपने लोगों की हिफाजत वे नहीं कर पा रहे। ऐसे में सांसद बने रहने का कोई मतलब नहीं। शायद यही वजह है कि आज सौमित्र खान और अर्जुन सिंह पार्टी के बुलावे पर दिल्ली गये हैं।

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बीजेपी सांसद मुकुल राय के बेटे ने तृणमूल में वापसी के रास्ते खोल लिए हैं। तृणमूल की ओर से भी इसके लिए कोशिशें भी की गईं। मुकुल राय की पत्नी कोरोना पीड़ित होकर अस्पताल में भर्ती हैं। उनका कुशलक्षेम जानने ममता बनर्जी के भतीजे और तृणमूल के नवनियुक्त पार्टी महासचिव अभिषेक बनर्जी मुकुल राय के घर गये थे। हालांकि बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी फोन कर हाल चाल जाना था। मुकुल के बेटे ने जिस तरह का बयान दिया, उससे यह बात साफ हो गई है कि आने वाले दिनों में बाप-बेटे अगर तृणमूल का हिस्सा बन जाएं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।

इसी बीच भारतीय जनता पार्टी द्वारा बनाए गए व्हाट्सएप ग्रुप से सांसद सौमित्र खान का निकल जाना और राज्य के प्रमुख दिलीप घोष की बैठक में शामिल न होने को भी उनकी नाराजगी माना जा रहा है। उसके बाद ही मुकुल राय से उनकी मुलाकात हुई थी। लगता है कि कोई खिचड़ी पक रही है। इससे लगता है कि ये दोनों नेता तृणमूल में वापसी के लिए बेचैन हैं और वापसी का तरीका क्या हो, इसी की तलाश में जुटे हैं।

वैसे भी तृणमूल कांग्रेस के नेता दावा कर रहे हैं कि बंगाल में बीजेपी का नामो निशान मिट जाएगा। उसके 75 विधायकों में उस 33  टीएमसी में लौटने के लिए तैयार हैं। तृणमूल के जो नेता चुनाव हार चुके हैं, उनमें सोनाली गुहा से लेकर कई नेताओं ने तो ममता बनर्जी से जिस तरह की अपील की है, उससे लगता है कि सच में बीजेपी बंगाल में बुरे दौर से गुजर रही है। दरअसल यह स्थिति इसलिए पैदा हुई है कि विधानसभा चुनाव में एमसी की प्रबल जीत के बाद बीजेपी समर्थकों पर जिस तरह के हमले शुरू हुए, उनके बचाव में बीजेपी का कोई नेता सामने नहीं आया। राज्यपाल स्वीकार करते हैं कि एक लाख से ज्यादा लोगों ने टीएमसी समर्थकों के हमले के भय से पलायन किया है। वे सुरक्षित ठिकानों पर चले गये हैं। आम कार्यकर्ताओं को छोड़ भी दें तो बीजेपी के विधायक-सांसद भी खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे। भले ही उन्हें केंद्रीय सुरक्षा मिली है। बैरकपुर से बीजेपी के सांसद के घर के आसपास रोज ही फायरिंग व बमबाजी की घटनाएं हो रही हैं। कार्यकर्ताओं के मरने और घायल होने का सिलसिला जारी है।

इसके बावजूद बीजेपी की ओर से ऐसा कदम नहीं उठाया जा रहा है, जो बीजेपी के नेताओं और उनसे जुड़े समर्थकों में यह भरोसा जाग सके कि उनकी सुरक्षा पार्टी कर सकती है। बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने बस एक ही काम जरूर किया कि अपने विधायकों-सांसदों और हारे हुए उम्मीदवारों में अधिकतर को केंद्रीय सुरक्षा दे दी है। लेकिन विरोधियों ने इसे यह कह कर प्रचारित किया कि केंद्रीय सुरक्षा बल के जवान नेताओं की मुखबिरी के लिए लगाए गए हैं।

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हालांकि केंद्रीय नेतृत्व के इशारे पर बीजेपी ने राजनीतिक हिंसा के खिलाफ राज्यव्यापी आंदोलन छेड़ने की घोषणा की है, लेकिन कार्यक्रताओं में भय की जो स्थिति बनी है, उसे देखते हुए इसकी कामयाबी की कम ही गुंजाइश बनती है। हां, गवर्नर रूल जैसा कोई सख्त कदम बीजेपी उठाये तो कुछ हद तक कार्यकर्ताओं में भरोसा जाग सकता है। हालांकि इसे लेकर बीजेपी में दो राय बतायी जाती है। पहली राय यह है कि अभी पश्चिम बंगाल में गवर्नर रूल लगाना बीजेपी के लिए नुकसानदेह होगा। यूपी में अगले साल चुनाव है। विरोधी इसे बीजेपी की कांग्रेस पैडर्न की कार्यशैली बता कर प्रचार करेंगे। दूसरी राय है कि गवर्नर रूल के लिए इतने सबत गवर्नर के पास हैं कि राष्ट्रपति शासन लगाना ही रास्ता बचता है। बहरहाल, अपने तीन सांसदों और नेता प्रतिपक्ष को बुला कर बीजेपी क्या बात करती है, इसकी प्रतीक्षा करनी चाहिए।

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