- राणा अमरेश सिंह
पटना। लालू यादव बिहार की राजनीति में अपरिहार्य हैं। बिना उनकी भूमिका या नाम का उल्लेख किये बिहार में न तो एनडीए की राजनीति संभव है और न आरजेडी के नेतृत्व में बने महागठबंधन की। लालू जेल में रहें, अस्पताल में रहें या घर पर आराम फरमायें, उनकी भूमिका बरकराहर रहती है। महागठबंधन में राजद के अलावा कांग्रेस, कुशवाहा की पार्टी रालोसपा, जीतन राम मांझी की पार्टी हम के अलावा शरद और मुकेश सहनी की पार्टियों समेत वामपंथी दल प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े हैं। कुछ और छोटी पार्टियों या एनडीए से बिदके नेताओं को भी महागठबंधन से ही उम्मीद है। सभी दलों के नेताओं की निगाहें रांची के अस्पताल रिम्स में सजायाफ्ता होने के बाद इलाज करा रहे लालू प्रसाद पर टिकी हैं। चूंकि लालू ने खरमास बाद टिकट बंटवारे की बात कही थी, इसलिए आज से सबकी बेचैनी बढ़ गयी है। इधर पांच राज्यों में हुए हालिया विधानसभा चुनावों के नतीजे और मायावती-अखिलेश यादव के गठबंधन ने हिंदी पट्टी की सियासत को पेचींदा बना दिया है। खरमास गुजरने के बाद भी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) मुखिया लालू यादव की रहस्यमय चुप्पी बनी हुई है। महागठबंधन के घटक दलों को लालू से मिली मोहलत के दो सप्ताह बीत गए हैं। यहां तक कि दही-चूड़ा खाकर टिकटार्थियों ने अपने ग्रह-नक्षत्र ठीक कर लिये हैं, लेकिन राजद मुखिया लालू यादव की चुप्पी बरकरार है।
ऐसा नहीं कि लालू खामोश बैठे हुए हैं। उन्होंने इस दरम्यान खूब जोड़-घटाव भी किया है, लेकिन नतीजे वहीं के वहीं रह गए। राजद के धुरंधरों की नजर में हिंदी पट्टी में कांग्रेस के बगैर भाजपा को गेम में ड्रा तो किया जा सकता है, परंतु जीता नहीं जा सकता। लालू यादव बार-बार सिर के बाल खुजलाते और शून्य निहारते हैं, मगर मामला वहीं का वहीं उलझा रह जाता है।
जदयू व लोजपा ने भाजपा पर दबिश बना कर मनमानी सीटें हथिया लीं। वहीं कांग्रेस भी राजद से भाजपा-जदयू की तर्ज पर सीटों में हिस्सेदारी चाहती है। राजद चाहता है कि महागठबंधन के घटक दल लालटेन के सहारे रणभूमि में जायें, ताकि कांग्रेस को संतुष्ट किया जा सके। सूत्रों की माने तो राजद कांग्रेस को 10 सीटें देने पर सहमत हो गया है, मगर कांग्रेस कम से कम 14 सीटें चाहती है। असली पेंच यहीं फंसा है।
राजद बिहार में अगर उत्तर-प्रदेश की तर्ज पर कांग्रेस से अलग गठबंधन बनाने की कोशिश करता है तो वोटों का बंटवारा राजग को ही मजबूत करेगा। वहीं रालोसपा, हम और शरद यादव कांग्रेस के साथ खड़े दिख सकते हैं। कांग्रेस को पपू यादव भी मजबूती प्रदान करेंगे। दूसरी ओर मुसलिम समुदाय का मानना है कि नरेंद्र मोदी का विकल्प राहुल गांधी ही हो सकते हैं। यह संदेश हालिया विधानसभा चुनावों के नतीजों से प्रमाणित भी हुआ है।
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कांग्रेस के अलावा भी महागठबंधन में बहुत सारे दल हैं। उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा, जीतनराम मांझी का हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम), शरद यादव का लोकतांत्रिक जनता दल, अरुण कुमार की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी, भाकपा, माकपा और माले भी भाजपा के खिलाफ महागठबंधन के साथ हैं। बदले हालात में अब सपा-बसपा की भागीदारी भी तय है। सबकी अपेक्षाएं भी बढ़-चढ़ कर हैं। दो से कम किसी को नहीं चाहिए। रालोसपा के कुशवाहा ने तो पांच का आफर मिलने पर ही राजग छोड़ा था। हम को तो कुछ ज्यादा ही चाहिए।
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राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह ने जब सभी सहयोगी दलों को राजद सिंबल पर ही चुनाव लड़ने का आग्रह किया तो रालोसपा व हम बिदक गए। रिम्स से लालू यादव से मिलने गए शरद यादव सहित अन्य नेताओं को राजद के टिकट पर ही चुनाव लड़ने का संकेत मिला था।
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