पटना। बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने गया पितृपक्ष मेले के उद्घाटन के मौके पर सोमवार को अपराधियों से अनुनय-विनय के अंदाज में अपील की कि पखवाड़े भर अपराध से अपने को अलग रखें। उनकी इस अपील के साफ तौर पर दो मायने हो सकते हैं। अव्वल तो सरकार लाचार हो गयी है और दूसरे यह कि अपराधी अगर अनुनय-विनय और आग्रह-अपील सुन कर ही मान सकते हैं तो इतना बड़ा पुलिस का अमला और इस पर भारी भरकम खर्च के मायने क्या हैं। पुलिस की लापरवाही से ज्यादातर मामलों में अदालतें सजा नहीं दगे पाती हैं। अमेरिका व जापान जैसे देशों में अदालतों ने लगभग शत-प्रतिशत सजा सुनाई हैं।
विकास और सख्त रवैये से सुशासन का आलम कभी इसी गठबंधन सरकार की यूएसपी हुआ करती थी। बाहर के लोग नजीर देते थे कि बिहार में बड़े अपराधी मुकदमों के स्पीडी ट्रायल के जरिये जेल के सीखचों में पहुंच गये। जो रास्ते सूरज के ढलते ही सुनसान हो जाते थे, उन पर रात में भी रौनक लौट आयी थी। अब ऐसा क्या हो गया है कि सरकार में दूसरे दर्जे के मंत्री को अपराधियों की चिरौरी करनी पड़ रही है। क्यों नहीं सरकार की वह सख्ती दिख रही, जो पहले कार्यकाल में थी और उसी आधार पर बिहार ही नहीं, बाहर के लोगों ने भी सुशासन शब्द का ईजाद कर लिया। बल्कि बिहार के लिए सुशासन विशेषण के तौर पर इस्तेमाल होने लगा था।
दरअसल समस्या वहां नहीं है, जहां सुशील जी सोच रहे हैं। पूरे देश की हालत एक जैसी हो गयी है। जब तक क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम पर सही तरीके से काम नहीं हो पायेगा, हालात में सुधार संभव नहीं। भारत में 2016 में अपराधों के लिए अदालतों से सजा दिलाने का प्रतिशत 46.8 रहा, जबकि अमेरिका और जापान जैसे देशों में 99 प्रतिशत आपराधिक मामलों में अदालतों ने सजा सुनाई। बीहार की हालत लगातार बदतर होती रही है। वर्ष 2010 में 14311 मामलों में अदालतों ने सजा सुनाई थी। 2015 आते-आते यह संख्या 4513 रह गयी। यानी पांच साल में सजा दिलाने की दर 68 प्रतिशत घट गयी।
2012 में हत्या की 3566 घटनाएं हुई थीं, जो 2015 में बढ़ 3178 तक पहुंच गयीं। यानी हत्या के मामले 11 फीसद घट गये थे। 2005 से 2015 के बीच 3000-3400 के बीच औसतन हत्या के मामले दर्ज किये गये। दुष्कर्म के मामले 2005-2015 के बीच सबसे कम 2010 में 795 दर्ज किये गये। बाद के वर्षों में इसकी संख्या 1000-1100 के बीच रही है।
सच कहें तो जब तक सजा दिलाने गति तेज नहीं होगी, लोगों में कानून का भय कायम नहीं होगा। रही बात पुलिस के भय की तो वह पिछले डेढ़ साल से सिर्फ अवैध शराब पकड़ कर अपना कालर ऊंचा करने में लगी है। इसलिए कि यह नीतीश जी की महत्वाकांक्षी योजना का अंग है। लोगों की सुरक्षा पुलिस के लिए फिलवक्त कोई मायने नहीं रखता।
शायद यही वजह है कि लोग अब अपराधियों से खुद निपटना पसंद करने लगे हैं। सीतामढ़ी में कुख्यात संतोष झा की कोर्ट में पेशी के दौरान हत्या कर दी गयी तो हफ्ते भर के अंदर एक और व्यक्ति को लोगों ने पैसे छीन कर भागने के आरोप में पीट कर मार डाला। सासाराम में एक अपराधी को पब्लिक ने खुद ठिकाने लगा दिया। बेगूसराय में एक छात्रा का अपहरण करने पहुंचे तीन अपराधियों को लोगों ने पुलिस की परवाह किये बगैर पीट-पीट कर मार डाला। हत्या की ताजा और बड़ी घटना मुजफ्फरपुर में पूर्व मेयर समीर कुमार की है। उन्हें सरेशाम गोलियों से छलनी कर दिया गया। वह भी एके-47 से। हाल के दिनों में बिहार में एके-47 के असेंबलर भी पकड़े गये हैं।
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