पटना। बिहार एनडीए के घटक दलों में लोकसभा चुनाव के लिए सीटों को लेकर एक ओर जद्दोजहद जारी है, तो इसी बीच नीतीश कुमार चुपचाप विधानसभा चुनाव की तैयारी में लगे हुए हैं। उनकी तैयारियों को देखते हुए अनुमान यही लगाया जाता है कि कहीं 2020 की जगह 2019 में ही लोकसभा चुनाव के साथ बिहार विधानसभा का चुनाव न करा लिया जाये। वैसे भी नीतीश कुमार और जदयू के वरिष्ठ नेता वशिष्ठ नारायण सिंह काफी पहले यह संकेत दे चुके हैं कि वे दोनों चुनाव साथ कराने के पक्षधर हैं।
लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव का अनुमान लगाने के पीछे आधार यह है कि नीतीश को छोड़ न तो एनडीए के दूसरे दल और न विपक्ष की पार्टियां ही विधानसभा चुनाव का मानस अभी तक बना सकी हैं। ऐसे में नीतीश कुमार अपनी उपलब्धियों, नीतियों, कार्यक्रमों के साथ लगातार जनता के बीच जा रहे हैं। अलग-अलग सम्मेलन आयोजित किये जा रहे हैं। दलित सम्मेलनों की शृंखला अब भी चल ही रही है। पिछड़ों के सम्मेलन हो रहे हैं। अपनी जाति के समर्थकों से वह अपने आवास पर ही मुलाकात कर चुके हैं। अल्पसंख्यकों, दलितों-पिछड़ों, महिलाओं, छात्रों और युवाओं के सम्मेलनों का सिलसिला जारी है। उनके के कल्याँ की योजनाओं की लगातार घोषणाएं भी हो रही हैं। इसे देख कर साफ तौर पर लगता है कि यह लोकसभा की तैयारी कम, बल्कि विधानसभा चुनाव की तैयारी ज्यादा लग रही है।
अगर ऐसा होता है तो यकीनन सर्वाधिक लाभ में नीतीश कुमार रहेंगे। अब तक वह जितनी बार विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे, उसमें कोई न कोई पार्टनर जरूर रहा। दो बार तो भाजपा के साथ ही चुनाव लड़ कर उन्हें तब कामयाबी मिली, जब केंद्र में कांग्रेसनीत यूपीए की सरकार थी। तीसरी बार उन्होंने राजद के साथ मिल कर चुनाव लड़ा और कामयाब रहे। बीच में राजद का साथ छोड़ उन्होंने भाजपा से हाथ मिला लिया। अब तो केंद्र में भाजपानीत एनडीए की सरकार है तो बिहार में जदयूनीत एनडीए की सरकार। यानी नीतीश विधानसभा का चुनाव आसानी से निकाल सकते हैं।
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पिछली बार जितनी सीटें विपरीत परिस्थियों में भाजपा को मिली थीं, इस बार नीतीश के कारण उसमें इजाफा होता है और नीतीश पिछली बार जितनी सीटें भी ले आते हैं तो सरकार बनाना मुश्किल काम नहीं होगा। वह ऐसा कर पाये तो बिहार में बड़े भाई की उनकी दावेदारी पर सवाल उठाने वालों की बोलती भी बंद हो जायेगी। एनडीए के ही दो घटक दल रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा और लोजपा के रामविलास पासवान यह तंज कसने से बाज नहीं आते कि लोकसभा में दो सीटें जीतने वाले दल को भाजपा बराबर का दर्जा दे रही है और उससे अधिक सीटें लाने वाले किनारे छोड़ दिये गये हैं।
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