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पटना के सिन्हा लाइब्रेरी वाले सच्चिदानंद सिन्हा का नाम क्या आपने सुना है ? मुझे बिहार की कुछ चुनिंदा विभूतियों के प्रति अतीव सम्मान है। उनमें एक हैं सच्चिदानंद सिन्हा।
प्रेमकुमार मणि  पटना के सिन्हा लाइब्रेरी वाले सच्चिदानंद सिन्हा का नाम क्या आपने सुना है ? मुझे बिहार की कुछ चुनिंदा विभूतियों के प्रति अतीव सम्मान है। उनमें एक हैं सच्चिदानंद सिन्हा। संभव है, आप उन्हें जानते हों; नहीं भी जानते हों। मुझे अधिक विश्वास है कि नयी पीढ़ी उनके बारे में कुछ नहीं जानती। यह मेरे लिए अत्यंत...
ओशो ने कहा था- निंदा रस का धंधा है तुम्हारी पत्रकारिता। पत्रकारों की दृष्टि ही मिथ्या हो जाती है। उनके धंधे का मतलब ही यह है कि जनता जो चाहती है, वह लाओ खोजबीन कर।
ओशो ने प्रवचन में कहा था- निंदा रस का धंधा है तुम्हारी पत्रकारिता। पत्रकारों की दृष्टि ही मिथ्या हो जाती है। उनके धंधे का मतलब ही यह है कि जनता जो चाहती है, वह लाओ खोजबीन कर। पढ़ें, पत्रकारिता पर ओशो के प्रवचन का प्रमुख अंशः तुम्हारे अखबार निंदा से भरे होते हैं। तुम अखबार पढ़ते ही इसीलिए हो कि...
मुक्तिबोध ने 1950 में ही इस बात को अच्छी तरह ताड़ लिया था कि भारत की सामाजिक रूढ़िवादी ताकतें आने वाले समय में राम की राजनीति कर सकती हैं।
मुक्तिबोध ने 1950 में ही इस बात को अच्छी तरह ताड़ लिया था कि भारत की सामाजिक रूढ़िवादी ताकतें आने वाले समय में राम की राजनीति कर सकती हैं। 1950 के दशक में जब प्रगतिशील रामविलास शर्मा भक्तिकालीन  कवि तुलसीदास की सामाजिक रूढ़िवादिता पर मार्क्सवाद का पलोथन लगा रहे थे  और समाजवादी लोहिया 'रामायण मेला' आयोजित कर रहे थे;...
अंधभक्ति में उड़ेले गये विचार को लिबरल लोग कंगना राणावत का ज्ञान मानने का हठ कर रहे हैं। वह 1947 को इग्नोर कहां कर रही। वह तो आजादी की व्याख्या कर रही है। जैसे टुकड़े-टुकड़े गैंग को इस देश से आजादी चाहिए।
अंधभक्ति में उड़ेले गये विचार को लिबरल लोग कंगना राणावत का ज्ञान मानने का हठ कर रहे हैं। वह 1947 को इग्नोर कहां कर रही। वह तो आजादी की व्याख्या कर रही है। जैसे टुकड़े-टुकड़े गैंग को इस देश से आजादी चाहिए। उसी तरह उसे भी लगता है कि देश पहली बार 2014 में तुष्टीकरण के जाल से बाहर...
लोक का सांस्कृतिक पक्ष हमेशा से संवादधर्मी रहा है। भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो तीन संस्कृतियाँ मूलतः देखने को मिलती हैं।
लोक संवाद करता है। उसके अपने तरीक़े हैं। आप किताबी ज्ञान के ज़रिए उससे संवाद स्थापित नहीं कर सकते। उससे संवाद करने के लिए उसके बीच जाना होगा। उसके लहजे में ही उससे संवाद संभव है। उत्सवों को बचाइए! लोक से संवाद का यह सबसे उत्तम माध्यम है। दीपक कुमार लोक का सांस्कृतिक पक्ष हमेशा से संवादधर्मी रहा है। भारतीय...
कंगना रनौत पर चारों तरफ से हमले जारी हैं। उन्हें कोई पागल कह रहा है। कोई सांप्रदायिक कह रहा है। कोई देशद्रोही कह रहा है। उन्हें कोई बेवकूफ कह रहा है, कोई जेलों में डालने के लिए कह रहा है।
कंगना रनौत पर चारों तरफ से हमले जारी हैं। उन्हें कोई पागल कह रहा है। कोई सांप्रदायिक कह रहा है। कोई देशद्रोही कह रहा है। उन्हें कोई बेवकूफ कह रहा है, कोई जेलों में डालने के लिए कह रहा है। उनसे कोई पदमश्री का पुरस्कार वापस लेने की मांग कर रहा है। ‘ये आजादी झूठी है‘ की थाप पर...
छठ पर्व एकमात्र ऐसा पर्व है जो स्त्रियों का है। इसमें पुरोहित ब्राह्मणों, पितृसत्ता तथा जाति भेदभाव का कोई स्थान नहीं है।
शंभुनाथ छठ पर्व एकमात्र ऐसा पर्व है जो स्त्रियों का है। इसमें पुरोहित ब्राह्मणों, पितृसत्ता तथा जाति भेदभाव का कोई स्थान नहीं है। यह ऐसी पूजा है जो खुद की जाती है। इसमें ब्राह्मण पुजारी नहीं होता। छठ के दिन नदियों, झीलों, सरोवरों के किनारे जैसे मेला लग जाता है। हर तरफ स्त्रियां ही स्त्रियां और उनके केंद्र में...
YUVA हजारीबाग में बिरहोर समुदाय के लोगों को जागरुकत करने के साथ-साथ कर रहा टीकाकरण
हज़ारीबाग हज़ारीबाग ज़िले के बिरहोर जनजातीय समुदाय के लोगों को कोविड-19 टीकाकरण के लिए जागरूक किया गया। गिव इंडिया के सहयोग से YUVA (युवा, Youths Union for Voluntary Action) इस कार्य में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस दौरान बिरहोर जनजातीय समुदाय के लोगों को वाहन एवं राहत सामग्री प्रदान कर उप-स्वस्थ्य केंद्र खीरगाओं हज़ारीबाग ले जाया गया। इस अभियान के तहत...
पद्मश्री डॉ. कृष्णबिहारी मिश्र का प्राण अपने गांव में बसता है। इससे कुछ बचता है तो वह बनारस में  बसता है। बनारस में वे अपने बनारस का पता ढूंढते हैं और गांव में अपने गांव का पता।
कृष्णबिहारी मिश्र का प्राण अपने गांव में बसता है। इससे कुछ बचता है तो वह बनारस में  बसता है। बनारस में वे अपने बनारस का पता ढूंढते हैं और गांव में अपने गांव का पता। न उन्हें बनारस मिलता है न ही गांव।  मृत्युंजय लेखक तीन तरह के होते हैं। एक वे जो लिखते हैं, मगर लेखक नहीं होते। दूसरे...
गांधी के बारे में सभी बात करते हैं। उनके गुणों का बखान करते हैं। पर, गांधी के निर्माण में उनकी अर्धांगिनी कस्तूर बाई के त्याग, सांाजिक आंदोलनों में सहभागिता भूल जाते हैं।
गांधी के बारे में सभी बात करते हैं। उनके गुणों का बखान करते हैं। पर, गांधी के निर्माण में उनकी अर्धांगिनी कस्तूर बाई के त्याग, सामाजिक आंदोलनों में सहभागिता भूल जाते हैं। वरिष्ठ राजनीतिक चिंतक प्रेमकुमार मणि ने कस्तूर बाई यानी क्सतूरबा या बा के बारे में विस्तार से चर्चा की है। प्रेमकुमार मणि  1983 में मैंने आठ ऑस्कर पुरस्कारों...