कंटेंट और प्रोफाइल में एक नायाब प्रयोग रहा कारोबार खबर

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पत्रकार ओमप्रकाश अश्क की प्रस्तावित पुस्तक- मुन्ना मास्टर बने एडिटर- की अगली कड़ी के रूप में कारोबार खबर की 1995-97 की अल्पावधि की अंतिम कड़ी के रूप में आज पेश है- कैसे कंटेंट की किसी अखबार की सफलता में भूमिका होती है।

पत्रकारिता के धुरंधर कहते हैं कि कंटेंट इज किंग। इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस दक्षिण के लोगों के बारे में माना जाता है कि वे हिन्दी के प्रबल विरोधी हैं, लेकिन वर्षों पहले देवकीनंदन खत्री के लिखे उपन्यास- चंद्रकांता संतति का कंटेंट इतना समृद्ध साबित हुआ कि उन दक्षिण भारतीय लोगों को इसे पढ़ने के लिए हिन्दी सीखनी पड़ी थी।

अखबार को आज के बाजार की भाषा में प्रोडक्ट कहने पर मतभिन्नता हो सकती है। प्रोडक्ट की क्वालिटी ही उसे ब्रांड बनाती है। और, अखबार जैसे प्रोडक्ट की क्वालिटी का कोई पैरामीटर तय किया जाये तो कंटेंट का स्थान सबसे ऊपर होगा। कारोबार खबर के संदर्भ में यह बात बिलकुल फिट बैठती है। कंटेंट में प्रयोगों ने एक अहिन्दी भाषी प्रदेश से निकलने वाले बिजनेस हिन्दी साप्ताहिक की स्वीकार्यता इसके कंटेंट की वजह से ही बनी थी।

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प्रोफाइल बनाने में पिता तुल्य और आजीवन अपने अभिभावक पद्मश्री कृष्णबिहारी मिश्र जी की सलाह को मैं कभी भूल नहीं सकता। उन्होंने व्यवसायी वर्ग को आकर्षित करने के लिए दो स्तंभ सुझाये थे। पहला था- एक व्यवसायी का सामाजिक सरोकार और दूसरा स्तंभ था- शून्य से शिखर की ओर। दोनों की उपयोगिता और आवश्यकता को उन्होंने मेरे मानस पटल पर रेखांकित किया था। उन्होंने कहा था कि जिन व्यवसायियों को हम मुनाफाखोर, मिलावट करने वाले या डंडी मार के रूप में चिह्नित कर उनके एक पक्ष पर अपना सारा ध्यान केंद्रित करते हैं, उनके सिर्फ स्याह पक्ष ही नहीं होते। उनके श्वेत पक्ष पर किसी का ध्यान नहीं जाता। उनका दिया उदाहरण भी अब तक याद है। उन्होंने कहा था कि विश्वभारती (शांतिनिकेतन) में हिन्दी भवन इन्हीं व्यवसायियों ने बनाया। कोलकाता में साहित्यिक गतिविधियों का प्रामाणिक केंद्र भारतीय भाषा परिषद इन्हीं व्यवसायियों की देन है। लाइब्रेरी, अस्पताल, गरीबों के बीच वस्त्र वितरण जैसे कई मानवीय और समाज सेवा के कार्य तो इन्हीं व्यवसायियों ने किये हैं। इसलिए समाजसेवा में लगे उन व्यवसायी के सिर्फ श्वेत पक्ष को उजागर करने का काम करना चाहिए। इससे न सिर्फ अखबार की जगह भरेगी, बल्कि समाज को एक सकारात्मक संदेश मिलेगा। इसके व्यावसायिक लाभ स्वतः सुलभ हो जाएंगे। दूसरा स्तंभ था- शून्य से शिखर की ओर। इसके बारे में उन्होंने कहा कि उन युवा या गतिशील व्यवसायियों को केंद्र कर उनकी उपलब्धियों का बखान होना चाहिए कि किन हालात और मुश्किलात के दौर से वे शून्य से शिखर की ओर अग्रसर हो रहे हैं।

मिश्र जी के दोनों सुझाये स्तंभ कारोबार खबर में काफी हिट हुए। इमामी समूह के मालिक राधेश्याम अग्रवाल, सिंप्लेक्स समूह के विट्ठल दास मूंधड़ा, मीनू साड़ीज के मामराज अग्रवाल (अब स्वर्गीय), गौरीशंकर कायां, शारदा फतेहपुरिया, आनंद लोक अस्पताल समूह के संस्थापक देव कुमार सर्राफ, रीगा चीनी मिल के मालिक ओमप्रकाश धानुका जैसे कुछ नाम याद आ रहे हैं, जिनके सामाजिक सरोकार को रेखांकित करते हुए कारोबार खबर ने लिखा। यह अखबार के प्रसार का सबसे बड़ा टूल था और विज्ञापन का जरिया भी। इस काम में दो लोग लगे थे। कृष्ण बिहारी मिश्र जी के बड़े बेटे कमलेश मिश्र और पुरुषोत्तम तिवारी। कमलेश जी तब सरकारी नौकरी में थे और पुरुषोत्तम तिवारी फ्रीलामसर। बाद में पुरुषोत्तम को शिक्षक की नौकरी मिल गयी। अपरोक्ष तौर पर उनकी नौकरी में कारोबार खबर के बहाने बने संपर्क की बड़ी भूमिका रही थी।

इस प्रयोग का सार्थक परिणाम प्रथमदृष्टया प्रसार बढ़ाने में दिखता। जिस पर्सनाल्टी के बारे में हम लिखते, वे हजार-पांच सौ कापी स्पांसर कर देते और उसका निःशुल्क वितरण मार्निंग वाक के लिए रोज विक्टोरिया मैदान जाने वाले बड़े व्यवसायियों-उद्योगपतियों के बीच होता। कारोबार खबर को आज भी कोलकाता में अगर याद किया जाता है, उसका एक बड़ा व वाजिब कारण यही है।

कारोबार खबर मेरे पत्रकारिता जीवन की प्रयोगशाला साबित हुआ। प्रसार, विज्ञापन, संपादकीय जैसे महत्वपूर्ण कामों के साथ इसका समग्र प्रबंधन हरिवंश जी ने मुझे सौंप दी थी। यानी जेब में जितने पैसे हों, उतने ही खर्च करो या दूसरे शब्दों में कहें तो कमाओ और खाओ। निजी तौर पर मैं मानता हूं कि कारोबार खबर किसी पनसारी की दुकान की तरह मेरे लिए था, जिसके लिए सामान खरीदने के पैसे कंपनी से उधार तो मिल जाते, लेकिन उसे चुकाने और दुकान को आगे बढ़ाने की जवाबदेही-जिम्मेवारी भी मेरी ही होती। यही वजह रही कि तब पांच-सात सौ रुपये की तनख्वाह पर ही लोगों से काम कराने की मजबूरी थी। साथियों में इतने कम पैसे पाने के बावजूद अगर काम का जुनून था तो इसकी एक ही ब ड़ी वजह थी- पारदर्शिता। हमने कितनी कमाई की और कितना खर्च किया, यह सबको पता होता था।

कारोबार खबर के साथियों में कुछ के नाम का जिक्र नहीं कर पाया था। नवीन श्रीवास्तव डेस्क पर थे सब एडिटर की भूमिका में। वह इनदिनों प्रभात खबर के कोलकाता संस्करण से जुड़े हैं। कंपोजिंग के लिए पार्ट टाइम दो साथी विश्वमित्र अखबार से राजेश मिश्र और सुबोध कुमार आते थे। पेस्टिंग के लिए आर्टिस्ट आनंद गुइन पार्ट टाइम जनसत्ता से आते थे। अंतम वक्त में अजय विद्यार्थी भी आये, जो अभी प्रभात खबर के कोलकाता संस्करण में सीनियर न्यूज कोआर्डिनेटर हैं। केंद्र सरकार की नौकरी में थे अशोक सिंह जी, जो अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद के लिए आते थे। अशोक जी पूरी टीम में आर्थिक रूप से अधिक समृद्ध थे। इसलिए रोज सिंघाड़े-और चाय का जिम्मा उनका होता। जाहिर है कि उन्हें कारोबार खबर से जितना मिलता, उससे अधिक खर्च तो वह हम साथियों पर नहीं करते, लेकिन उन्हें कुछ बचता भी नहीं होगा।

हिन्दी ग्रेजुएट को हरिवंश जी ने बिजनेस अखबार का प्रभारी बना दिया

कारोबार खबर के दिनों को याद करने के क्रम में लांचिंग की तारीख मेरे लिए काफी महत्व रखती है। कार्यक्रम में उषा मार्टिन समूह के मौजूदा सीएमडी राजीव झवर (तब वह कंपनी के ज्वाइंट एमडी थे शायद), सौ से ज्यादा उद्योगपति और शेयर मार्केट की कोलकाता में रहने वाली बड़ी हस्तियां, तत्कालीन केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री देवी पाल, बंगाल के उद्योग राज्यमंत्री विद्युत गांगुली और उन्ही दिनों नंबर 10 सिगरेट बनाने वाली कंपनी का अधिग्रहण करने वाले उद्योगपति सुंदरलाल दुगड़ आये थे। गांगुली दा तो उद्घाटन के नियत समय से घंटा भर पहले ही श्यामनगर से बाईरोड आ गये थे, लेकिन देवी पाल देर से आये। गांगुली दा ने पूछा कि कार्यक्रम शुरू क्यों नहीं कर रहे हो तो मैंने कहा कि देवी बाबू का इंतजार कर रहे हैं। इस पर उन्होंने बनावटी गुस्सा दिखाया- तब हमको इतना पहले क्यों बुला लिया। फिर प्रेम से कहा, जाओ अपना काम देखो, मैं वेट कर लूंगा।

(कल पढ़ें- सब कुछ समेट कर तब आना पड़ा पटना प्रभात खबर)

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