जब जेनरल मैनेजर पंचोली जी ने अश्क को शो काज नोटिस थमाया

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ओमप्रकाश अश्क
ओमप्रकाश अश्क
वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क की प्रस्तावित पुस्तक- मुन्ना मास्टर बने एडिटर- की अगली कड़ी। आपको अगर यह सीरीज पसंद आ रही है तो उनके मेल पर सीधे अपनी प्रतिक्रिया भेज सकते हैं। मेल आईडी है- [email protected]

मुझे अच्छी तरह पता है दंभ और दावे का फर्क। तभी तो मैं सिर्फ दावा करता हूं कि जब जो काम मिला, मैंने बड़ी ईमानदारी से किया। ट्यूशन, कोचिंग, स्कूल, अखबार यानी अब तक मिले हर काम को मैं बड़ी जिम्मावारी-जवाबदेही से करता रहा हूं। हां, चूक स्वाभाविक है, इसलिए कि आदमी हूं। अगर भूल-चूक किसी से न हो तो वह आदमी नहीं, ईश्वर का अवतार कहलायेगा। मुझे हरिवंश जी ने जिम्मेवारी सौंपी थी कि आकलन कर बतायें कि पटना संस्करण को कैसे चलाया जा सकता है। और, मैं इस काम में आने के साथ ही जुट गया था। अखबार के संपादकीय कामों के अलावा मैं इन्हीं कामों में अपना वक्त बिताता।

मेरा आकलन था कि कई गैरजरूरी पदों पर आरके पंचोली जी ने नियुक्तियां की हैं। कुछ कम पैसे वालों को हटा कर उन्होंने नियुक्तियां की थीं, जिससे नाहक खर्च बढ़ गये थे। तब तकरीबन छह-साढ़े छह लाख रुपये का खर्च प्रभात खबर के पटना संस्करण पर होता था। विज्ञापन से आमद तीन लाख के आसपास थी। राज्य सरकार के विज्ञापन सूची में प्रभात खबर शामिल नहीं हो पाया था। इसके पीछे भी एक कहानी है। बाद में इस प्रसंग पर विस्तार से जिक्र करूंगा। वैसे इतना संकेत काफी है कि प्रभात खबर से तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के संबंध अच्छे नहीं थे। सबका मानना था कि जब तक लालू प्रसाद मुख्यमंत्री रहेंगे, तब तक विज्ञापन शुरू नहीं हो पायेगा।

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मैंने खर्च घटाने के बिंदु तलाशने शुरू किये। डाक के कुछ संस्करण उन इलाकों में भेजे जाते थे, जहां अखबार का बंडल कभी खुलता ही नहीं था। जैसे दरभंगा। वहां के तत्कालीन संवाददाता की यह अक्सर शिकायत रहती कि अखबार या तो यहां आता नहीं और आता भी है तो बंटता नहीं। इसलिए कि एजेंट बंडल ही नहीं खोलता। सीधे रद्दी वाले के यहां महीने में बिकता है। ऐसे कम प्रसार संख्या वाले या समय पर न पहुंचने वाले संस्करणों की मैंने पहचान की। मैंने अपनी पूरी रिपोर्ट तैयार कर ली थी। समय-समय पर हरिवंश जी को बताता भी रहता था।

इसी दौरान का एक वाकया याद आता है। हमारे एक संवाददाता होते थे भुवनेश्वर वात्स्यायन (अभी दैनिक जागरण के पटना संस्करण से जुड़े हैं)। वह क्राइम बीट के साथ बिजनेस की रिपोर्टिंग भी करते थे। तब अखबार की प्रसार संख्या इतनी कम थी कि शायद ही कोई कमर्सियल विज्ञापन प्रभात खबर को मिलता। चूंकि कोलकाता में कारोबार खबर के दौरान मैंने एक नुस्खा अपनाया था कि पहले किसी कंपनी की खबर को बढ़िया से छापो और कुछ दिन बाद उससे विज्ञापन की बात करो। किसी कंपनी का कोई प्रेस कांफ्रेंस होने वाला था। उसका इनविटेशन आया था। मैंने भुनेश्वर से कहा कि इसे बढ़िया से छापो। उन्होंने चार कालम की खबर बनायी और वह छप गयी। तब तक दबी जुबान दफ्तर में यह बात सब लोग समझ गये थे कि मैं ही संपादकीय प्रभारी बन कर आया हूं।

अगले दिन सुबह 10.30 बजे मैं दफ्तर रिपोर्टर्स मीटिंग के लिए आया तो पहले भुवनेश्वर ने बताया कि पंचोली जी हम से पूछ रहे थे कि इतनी बड़ी खबर क्यों छापी। इतने स्पेश का पैसा विज्ञापन की दर पर तुम्हारी तनख्वाह से काटेंगे। उन्होंने सपाट जवाब दिया कि खबर बनाना मेरा काम है और छापना डेस्क का। संपादक जी से पूछिए। वैसे भी मेरी तनख्वाह से काटते रह जाएंगे, इसलिए कि मेरी तनख्वाह ही कितनी है। तब उन्हें 1200 या 1500 रुपये ही मिलते थे। पंचोली जी को इस तरह के जवाब की अपेक्षा नहीं थी। शायद उनकी मंशा रही हो कि वह उनके सामने गिड़गिड़ा कर माफी मांग लें। बहरहाल, जब मैं दफ्तर आया तो अशोक (आज भी पिउन के ही स्टेटस में प्रभात खबर, पटना में हैं) ने हाथ से लिखा एक शो काज नोटिस मुझ से रिसीव कराया। उसमें लिखा था- इतनी बड़ी खबर कैसे छप गयी, 24 घंटे के अंदर कारण बताएं। मैंने नोटिस रिसीव तो कर लिया, लेकिन चुप ही रहना बेहतर समझा।

शाम को घर निकलते वक्त पंचोली जी को मैं एडिटोरियल में दिख गया तो उन्होंने मुझसे कहा- आपने नोटिस का जवाब नहीं दिया अब तक। मैंने कहा- दे दूंगा समय पर। तब तक उन्होंने तेज आवाज में मुझे हड़काने की कोशिश की। मैं बचपन से ही परिस्थिवश शांत रहा। इसलिए अब भी मैं मानता हूं कि बचपन, जवानी और बुढ़ापे की दहलीज पर पहुंचने के बावजूद मुझे इन तीनों अवस्थाओं का अलग-अलग अहसास कभी समझ नहीं आया। बचपन में ही पिता की मौत और घर-परिवार की जिम्मेवारियों ने सीधे बुढ़ापे की बेचारगी बख्श दी थी।

इतने सहनशील स्वभाव के बावजूद मैंने भी करारा जवाब दे दिया। दो तथ्य अपने जवाब के याद आते हैं। पहला यह कहा कि तेज आवाज में चिल्लाना मुझे भी आता है। दूसरा कहा कि आप मैनेजर हैं और मैनेजमेंट की पढ़ाई कर मैनेजर बने हैं तो नोटिस को दोबारा पढ़ लीजिए। 24 घंटे में अभी 12 घंटे भी नहीं बीते हैं। उसके बाद वह इस कदर तुनके कि लगा उनकी इज्जत भरी महफिल किसी ने उतार दी। वह घर जाने के बजाय उल्टे पांव अपने चैंबर में लौटे, यह कहते हुए कि मैं अभी हरिवंश जी से बात करता हूं। फिर दो मिनट बाद ही लौटे और अभय सिन्हा जी के कमरे में घुसे। फिर उधर से निकल मुझे प्रेम से बुला कर अपने कमरे में ले गये। कहा कि हरिवंश जी से मैंने बात की। वह बहुत चिंतित हैं। आप एक बार बात कर कह दीजिए कि सब ठीक है। हमलोगों ने बात कर ली है। उन्होंने लैंडलाइन से हरिवंश जी को फोन भी मिला दिया। वक्त 6-6.30 बजे शाम का रहा होगा। फोन मिला कर पंचोली जी ने कहा- सर, अश्क जी आप से बात करेंगे। मैंने फोन कान से लगाया तो उधर से उन्होंने कहा कि अश्क तुम इंतजार करो, मैं परसों पहुंच रहा हूं। सिर्फ हूं, हां, जी में जवाब सुन कर ही पंचोली जी को लग गया कि बेकार का पंगा उन्होंने मुझसे ले लिया है। उनके पास एक मारुति 800 कार थी। मुझे साथ लिया और अपने घर चाय पिलाने ले गये। बीच-बीच में यह पूछते रहे कि क्या बात हुई। मैंने भी सामान्य ढंग से बता दिया कि कुछ नहीं, बोले हैं कि आते हैं तो बात करते हैं। पंचोली जी मेरे प्रति इतना पसीज गये थे कि आफिस भी छोड़ने आये।

यहां बताना उचित समझता हूं कि पंचोली जी की कारगुजारियां लिखित तौर पर मैंने हरिवंश जी को भेजी अपनी रिपोर्ट में बता दी थीं। उनमें तीन महत्वपूर्ण मुद्दे थे। खर्च घटाने के बजाय ऊंची तनख्वाह पर आपने आदमी क्यों बहाल किये। दूसरा, कम पैसे का आदमी हटा कर आपने ज्यादा पैसा देकर किसी को क्यों रखा। तीसरा, आपको आमदनी बढ़ाने की शर्त पर लाया गया था तो निजी तौर पर आपने इस दिशा में क्या प्रयास किये।

हरिवंश जी अपने शिड्यूल पर पटना आये। अपने कमरे में मुझे बुलाया। पंचोली जी भी उसी कमरे में बैठते थे। हरिवंश जी ने मेरी भेजी रिपोर्ट निकाली और एक-एक बिंदु पर उनसे मेरे सामने ही सवाल करना शुरू किया। उनके अपने तर्क थे, लेकिन सार्थक नहीं। सिर्फ पूछने पर कुछ बताने की मजबूरी जैसे उनके जवाब होते थे। हरिवंश जी ने साफ कहा कि आप डीटीपी इनचार्ज, मशीनमैन और इलेक्ट्रिशियन को तुरंत हटाइए। आज ही उनका हिसाब कर विदा कीजिए। फिर उनसे विज्ञापन के मुद्दे पर बात की। उनसे पूछा कि आपका आउटपुट क्या है। वह कुछ बोल रहे थे, तभी हरिवंश जी ने टोका- आपको आमदनी बढ़ाने के लिए बुलाया गया था। आपने अपने स्तर से कितना विज्ञापन किया। इसका उनके पास जवाब नहीं था। दीपावली आने वाली थी। उन्होंने कहा कि मैं मध्यप्रदेश जा रहा हूं, जहां से दीपावली के लिए अच्छा-खासा विज्ञापन जुटा लूंगा।

उन्होंने आफिस से टूर के नाम पर शायद 25 हजार रुपये एडवांस लिये और अगले दिन मध्यप्रदेश की यात्रा पर निकल गये। उसके बाद वह नहीं लौटे। हां, महीने भर बाद एक फोन काल इंदौर के किसी होटल से आया था कि पंचोली जी वहां ठहरे थे और बिल चुकाने के वक्त कह दिया था कि आफिस से डायरेक्ट पेमेंट आपके पास आ जायेगा। फोन मैंने ही रिसीव किया था। मैंने होटल वाले को साफ-साफ बता दिया कि वह कभी हमारे साथ थे, अब नहीं हैं। यह भी बता दिया कि हमारे यहां जो टूर पर जाता है, उसे खर्च के लिए पैसे एडवांस दे दिये जाते हैं। आपका पैसा फ्राडिज्म की वजह से डूब गया। उसके बाद से वह कहां हैं, अब तक मुझे पता नहीं चला। (जारी)

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