फिल्म नगरी के रूप में विकसित हो रहा बिहार का बेगूसराय

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पटना। कौन कहता है आसमां में सुराख़ नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो। दुष्यंत कुमार की इस चर्चित कविता पंक्ति को बेगूसराय के सिनेमा उद्योग से जुड़े कलाकारों ने साबित कर दिखाया और छोटे शहरों में नामुमकिन जैसे लगने वाले “सिनेमा उद्योग” को न सिर्फ स्थापित कर दिखाया, बल्कि नित दिन नई ऊंचाई छूने की लगातार कोशिश भी जारी है। आज बेगूसराय में दर्ज़न से ज़्यादा फ़िल्म निर्माण कंपनियां फीचर फिल्म, शार्ट फ़िल्म एवं डॉक्युमेंट्री फिल्में बनाने में लगातार सक्रिय हैं और इसके सार्थक परिणाम भी आ रहे हैं। टूटे न सनेहिया के डोर” की शूटिंग हुई, जिसके निर्माता अरुण सिंह एवं निर्देशक बेगूसराय के ही मूल निवासी विनोद कुमार सिंह थे।

पिछले दिनों बेगूसराय में ही बनी शार्ट फ़िल्म “स्वच्छता” को सूबे में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ तो लगभग दर्ज़नभर हिंदी, भोजपुरी व मैथिली फीचर फिल्मों के निर्माण होने से बिना मुंबई गए ही यहाँ के सैकड़ों कलाकारों को उनकी प्रतिभा के अनुसार अवसर भी मिले। आज बेगूसराय में “मिनी सिनेमा इंडस्ट्री” फल-फूल रही है तो इसके पीछे दस वर्षों से भी ज़्यादा का संघर्ष है।

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2006 में पहली बार ज़िले के पहले बॉलीवुड अभिनेता अमिय अमित कश्यप के प्रयास से ज़िले के कई हिस्सों में भोजपुरी फीचर फ़िल्म “टूटे न सनेहिया के डोर” की शूटिंग हुई, जिसके निर्माता अरुण सिंह एवं निर्देशक बेगूसराय के ही मूल निवासी विनोद कुमार सिंह थे। प्रदर्शित होने के बाद ज़िले के अलका सिनेमा घर में एक सौ दिन पूरे करने का रिकॉर्ड भी इसी फिल्म के नाम है। उसके बाद ही उत्साहित हो अमिय कश्यप ने बेगूसराय में सिनेमा इंडस्ट्री स्थापित करने का संकल्प लिया एवं शहर के शनिचरा स्थान इलाके में “राष्ट्रकवि दिनकर फिल्म सिटी” की स्थापना कर अपना मुख्यालय बनाया। उसके बाद फ़िल्म निर्माण में कई चर्चित लोगों के सहयोग ने इस इंडस्ट्री के विकास को बल दिया। अभी ए पतंग फिल्म्स, दिनकर्स फ़िल्म प्रोडक्शन, श्रीराम जानकी फिल्म्स, जलसा मूवीज, यू.पी.एस. इंटरटेनमेंट, माँ टुसा फिल्मस, गांधी इंटरटेनमेंट, जयमाला इंटरटेनमेंट, ऑडियो जंक्शन सहित लगभग डेढ़ दर्जन प्रोडक्शन कंपनियां बेगूसराय फ़िल्म उद्योग को सक्रिय रखे हुई हैं।

मुम्बई एवं हैदराबाद के बाद संभवतः बेगूसराय देश का ऐसा तीसरा प्रमुख केंद्र है, जहाँ हिंदी, भोजपुरी, मैथिली, बज्जिका, अंगिका सहित कई भाषाओं में दर्ज़नों फिल्मों का निर्माण हो चुका है। अनिल पतंग, दिनकर भारद्वाज, विष्णु पाठक, रजनीकांत पाठक, भूमिपाल राय, ज्योतिनाथ सिंह, विश्वनाथ पोद्दार, अमित कुमार, पप्पू कुमार, विपिन कुमार, शैलेन्द्र कुमार, प्रभकार कुमार राय, सागर सिन्हा, राकेश महंथ, अरविंद पासवान आदि निर्माता लगातार फ़िल्म निर्माण में सक्रिय हैं।

यहां बनी हिंदी फीचर फिल्म “चौहर” देश के ढ़ाई सौ से ज़्यादा सिनेमाघरों में प्रदर्शित की जा चुकी हैं तो जट जटिन (हिंदी) ने कुल 75 राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड्स प्राप्त कर एक कीर्तिमान ही स्थापित कर दिया। इसके अलावा गुलमोहर (हिंदी), टूटे न सनेहिया के डोर, सईयां ई रिक्शावाला, बलमा रंगरसिया, गंगा किनार पिरितिया हमार, सनम दिल ले गइल, कर्तव्य, चोर नम्बर वन (भोजपुरी), लव यू दुल्हिन (मैथिली) सहित दर्ज़नों फिल्में यहाँ बन चुकी हैं। प्रख्यात अभिनेता रज़ा मुराद, भोजपुरी के महानायक कहे जाने वाले कुणाल सिंह, तीन सौ से ज़्यादा फिल्में कर चुके हास्य कलाकार बीरबल, सुप्रसिद्ध टी. वी. व फ़िल्म अभिनेता पंकज बेरी सहित दर्ज़नों मुम्बई के नामचीन कलाकार यहाँ आकर फिल्मों की शूटिंग कर चुके हैं। दर्जनभर हिंदी, भोजपुरी एवं मैथिली फिल्मों के सुप्रसिद्ध अभिनेता और बिहार सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन की स्थापना कर बिहार में सिनेमा इंडस्ट्री के विकास को सतत प्रयत्नशील अमिय अमित कश्यप के अनुसार जब मुम्बई से कलाकार यहाँ आकर फिल्मों में काम करने लगेंगे, तब जाकर उनका संकल्प पूरा होगा।

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