माणिक सरकार ने त्रिपुरा का सीएम रहते 9700 में समय बिताये

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त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार
त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार

माणिक सरकार ने त्रिपुरा का सीएम रहते 9700 में समय बिताये। माणिक सरकार लगातार चार टर्म त्रिपुरा के मुख्यमंत्री रहे। अब निवर्तमान हैं। माणिक सरकार 1998 से 2018 तक लगातार मुख्यमंत्री रहे तो इसकी असल वजह उनकी सादगी, ईमानदारी और बदलती दुनिया के साथ सरकार के कदमताल बड़े कारण रहे। लगातार चार बार मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाने वाले माणिक सरकार सादगी और ईमानदारी के कारण जनता की पसंद बने रहे। इसके बावजूद अगर यह कहा जाए कि वे देश में अब तक के तमाम वर्तमान-निवर्तमान मुख्यमंत्रियों में सबसे गरीब हैं तो कोई अतिशयोक्ति न होगी।

उनके बारे में जो तथ्य सार्वजनिक हैं, उसे जान कर आज के धन बटोरू राजनीतिक आचरण से आक्रोशित-उकताए लोगों की जुबान बंद हो जाएगी। लोग कुछ देर के लिए आश्चर्यचकित जरूर हो जाएंगे यह सुन-देख कर कि राजनीति में ऐसा भी कोई व्यक्ति होता है।

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आमतौर पर नेताओं की संपत्ति बढ़ती है, लेकिन मुख्यमंत्री रहने के बावजूद मानिक सरकार की संपत्ति बढ़ने के बजाय लगातार घटती रही। फरवरी 2018 में विधानसभा चुनाव के लिए उन्होंने जनवरी में नामांकन के लिए जो हलफनामा दायर किया था, उसमें उनके हाथ में महज 1520 रुपये थे और उनके बैंक खाते में 20 जनवरी 2018 तक 2410 थे। ठीक 5 साल पहले यानी 2013 में उनके पास ₹9720.38 थे। यह बताने के लिए काफी है कि अमूमन नेताओं की संपत्ति हर पांचवें साल गुनी बढ़ जाती है, वहीं उनकी संपत्ति में पांच बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद कमी आई। उन्हें वेतन के रूप में ₹26315 मिलते थे, जो वह पार्टी फंड में दे देते थे। पार्टी उन्हें ₹9700 हर महीने घर खर्च के लिए देती थी। उनके पास 0.01 अमीन थी, जो खेती लायक नहीं थी। इस पर भी उनके भाई का भी हक है। वह मोबाइल फोन तक नहीं रखते हैं। माणिक सरकार की ईमानदारी की बानगी बताने के लिए यह पर्याप्त है।

राजनीति में विरला कोई व्यक्ति होगा, जिसका अपना कोई घर न हो, उसके पास जमीन का कोई टुकड़ा न हो। नकद, बैंक खातों या दूसरे निवेश माध्यमों में भारी भरकम रकम की बात तो दूर, जिसके खाते में हजार-दो हजार से कम की राशि बची हो। देश  के राजनीतिज्ञों को ऐसे नेता से सीख लेनी चाहिए। वे अत्यंत गरीब, पर बेहद ईमानदार छवि वाले माने जाते रहे। यही वजह रही कि जनता ने उन्हें पसंद किया और लगातार चार बार उनके सिर सीएम का सेहरा लोगों ने बांधा।

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उनकी गरीबी का आलम यह कि उनके पास अपना घर तक नहीं है। जहां राजनीतिज्ञ करोड़ों-अरबों में खेल रहे हैं, वहां उनके खाते में उस वक्त मामूली रकम थी। मुख्यमंत्री के रूप में मिलने वाली तनख्वाह वह नहीं लेते थे। जिस दल से जुड़े थे (माकपा), उसे अपनी तनख्वाह दान कर देते थे। पार्टी उन्हें हर माह घर खर्च के लिए 9700 रुपये देती थी। उसी से उनका घर चलता था। निवर्तमान मुख्यमंत्री होने के बाद भी उनकी आमदनी और खर्च का तकरीबन यही आलम है।

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उनके मुख्यमंत्री रहते उनकी पत्नी ने कभी सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल नहीं किया। उन्हें अक्सर रिक्शे पर अगरतला की सड़कों पर देखा जाता है। पहले भी और अब भी। मानिक सरकार के विरोधी भी यह मानते हैं कि आज के राजनीतिज्ञों में उनकी तरह विरले ही कोई व्यक्ति हो सकता है।

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वामपंथी होने के बावजूद मानिक सरकार ने सूबे के विकास के लिए नए अंदाज में काम किया। पब्लिक- प्राइवेट-पार्टनरशिप के जरिए आईटी सेक्टर के विकास के उनके काम को देखा जा सकता है। उन्होंने सड़क बिजली पानी जैसी मूलभूत जरूरतों पर जितना काम किया, उससे कम निजी क्षेत्र के उद्योग लगाने में भी उनकी भूमिका नहीं रही।

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