- डी. कृष्ण राव
कोलकाता। बंगाल में बादशाहत की जंग बीजेपी के लिए अब आसान नहीं दिख रही है। तृणमूल कांग्रेस के लिए मुश्किलें कम हो रही हैं, जबकि बीजेपी की बढ़ती जा रही है। टिकट बंटवारे को लेकर मचे घमासान ने बीजेपी के शीर्ष नेताओं की नींद उड़ा दी है। कल देर रात से आज तड़के तक अमित शाह ने जेपी नड्डा व स्थानीय नेताओं की कोर कमेटी के साथ बैठक की। “बाहरी” व “कमजोर” उतारने को लेकर बीजेपी में भारी असंतोष है। स्थानीय, निष्ठावान, पुराने व बेदाग चेहरों को टिकट न मिलने के कारण बीजेपी कार्यकर्ताओं-नेताओं में भारी गुस्सा है।
बीजेपी के दूसरे और तीसरे चरण के उम्मीदवारों की सूची जारी होने के बाद पिछले 48 घंटों में राज्य के विभिन्न स्थानों पर जिस तरह बीजेपी कार्यकर्ताओं ने सड़क पर उतर कर घोषित प्रत्याशियों के खिलाफ नारेबाजी की और विरोध प्रदर्शन किया, उससे राज्य में सत्ता दखल करने का सपना देखने वाले भाजपा नेताओं की चिंता बढ़ गयी है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बंगाल में उभर रही इस स्थिति के कई सारे कारण हैं। इसमें सबसे बड़ा कारण है तृणमूल कांग्रेस और अन्य पार्टियों से पार्टी छोड़े नेताओं को बिना सोचे-समझे बीजेपी में शामिल करना। जो आया, उसी को ही पार्टी में ले लिया गया। भाजपा नेताओं में तो यह होड़ सी मच गयी कि कौन तृणमूल कांग्रेस के कितने नेताओं को अपनी पार्टी में ला सकता है। इसी का नतीजा आज सड़कों पर दिख रहा है।
पार्टी कार्यकर्ताओं का आरोप है कि जिन टीएमसी (तृणमूल कांग्रेस) नेताओं ने उन्हें पीटा, झूठे केस में फंसाया, उन्हीं नेताओं को स्थानीय स्तर के नेताओं से बातचीत किए बिना पार्टी में शामिल करा लिया जा रहा है। पार्टी में शामिल करने के पहले निचले स्तर के कार्यकर्ताओं से बातचीत तक नहीं की जा रही है। उनकी राय ली जाती तो शायद हकीकत से बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व अवगत हो पाता।
कार्यकर्ताओं का यह भी कहना है कि भाजपा के निचले स्तर के नेताओं-कार्यकर्ताओं से तृणमूल के जिन नेताओं को पार्टी में शामिल न कराने की बात कही जा रही है, तृणमूल के वही नेता भाजपा के किसी बड़े नेता का हाथ पकड़ कर पार्टी में शामिल हो जा रहे हैं। इससे जमीनी स्तर के पार्टी कार्यकर्ताओं में काफी नाराजगी है। उन्हें आम जनता को समझाना मुश्किल हो रहा है। भाजपा के निचले स्तर के संगठन के साथ शीर्ष नेताओं के तालमेल का अभाव पार्टी के डूवने का कारण बन सकता है।
बंगाल के 10 से 15% फ्लोटिंग मतदाता, जो अंतिम समय पर निर्णय लेते हैं, वे उसी को वोट करते हैं, जो पार्टी जीतने के करीब होती है। भाजपा की अंदरूनी लड़ाई अब सड़क पर उतर चुकी है। यह स्थिति कुछ दिन और बनी रही तो फ्लोटिंग 10 से 15% मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा या तो बिखर जाएगा, नहीं तो तृणमूल में वापस चला जाएगा। यह सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रही भाजपा के लिए काफी खतरनाक हो सकता है।
इधर प्रत्याशियों को चुनने में भाजपा इतना समय लगा रही है कि तृणमूल को खुला मैदान मिल रहा है। बंगाल की अधिकतर दीवारें टीएमसी ने दखल कर ली हैं। दीवारों पर टीएमसी अपने प्रत्याशियों के नाम लिख चुकी है, क्योंकि भाजपा के प्रत्याशियों के नाम की घोषणा होने में इतनी देर हो रही और परीक्षा परिणाम की तरह नाम को इतना गोपनीय रखा जा रहा है कि इससे जमीनी कार्यकर्ताओं में दीवार दखल को लेकर कोई उत्साह ही नहीं है। घोषमा से पहले किसी को यह पता ही नहीं चल रहा है कि उम्मीदवार किसे बनाया जाएगा।
बीजेपी में उम्मीदवार के चयन में भी काफी गलत तरीका अपनाया गया है। जमीनी स्तर के लोगों से बात किए बिना कोलकाता में बैठे कुछ नेताओं की सलाह पर शीर्ष नेतृत्व भरोसा कर रहा है। उन नेताओं को उम्मीदवार बनाया गया, जिनसे आज की समस्या उत्पन्न हुई है। इस सूची में बहुत सारे ऐसे उम्मीदवार हैं, जिनकी छवि इलाके में साफ-सुथरी नहीं है।
नीचे स्तर पर भी ऐसे-ऐसे लोगों को भाजपा शामिल कर रही है, जिनसे माकपा, तृणमूल, भाजपा समेत सभी दल के लोग परेशान हैं। केवल ऐसे ही चेहरों को परास्त करने के लिए इस बार लोग भी भाजपा को वोट देने के लिए तैयार थे। लेकिन जब उसी चेहरे को पार्टी में शामिल कर लिया जा रहा है तो लोगों में और कार्यकर्ताओं में काफी गुस्सा फैल रहा है।
इधर उम्मीदवारों की सूची की घोषणा में इतनी देरी होने के कारण प्रचार के लिए 2 या 3 सप्ताह से ज्यादा पार्टी के सामने नहीं बच रहा है। इससे उम्मीदवारों या कार्यकर्ताओं को लोगों तक पहुंचना मुश्किल होगा। राजनीतिक जानकारों का यह भी कहना है कि भाजपा के एक वर्ग के नेताओं में जीत को लेकर इतना आत्मविश्वास है कि वे घर बैठे खाली हिसाब लगा रहे हैं।