नयी दिल्ली। भाजपा ने अपनी कमजोरी कबूल कर ली है। वह काफी दबाव में है। यह किसी राजनीतिक विश्लेषक की टिप्पणी नहीं है। यह बात कही है राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने। उन्होंने कहा है कि भाजपा खुद को असुरिक्षित महसूस कर रही है। इसका जीता-जागता उदाहरण है बिहार में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को भाजपा द्वारा बराबर सीटें देना।
भाजपा के भीतर किसी कद्दावर नेता द्वारा इस तरह की टिप्पणी अभी तक नहीं आई है, लेकिन यह बात किसी को भी आसानी से समझ में आ जायेगी कि भाजपा के लिए हालात वाकई गंभीर हैं। भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में जीतीं अपनी पांच सीटें काट कर बिहार में जदयू को अपने बराबर 17 सीटें दी है। राम विलास पासवान को 6 सीटें दी गयी हैं। लोकसभा की कुल 40 सीटें बिहार में हैं।
राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पराजय के बाद भाजपा में भारी घबराहट है। घबराहट की एक और वजह कुछ साथियों का पहले ही कन्नी काट लेना भी है। तेलुगू देश पार्टी (टीडीपी), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) और शिवसेना ने भी भाजपा का साथ छोड़ दिया है। भाजपा ने शायद इसी घबराहट में पिछली बार दो सीटें लोकसभा में जीतने वाली पार्टी जदयू को 17 सीटें देने का फैसला किया है।
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पायलट के मुताबिक पिछली बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनायी थी। इस बार अपने दम पर सरकार बनाने का भरोसा उसका नहीं रहा। अगर ऐसा नहीं होता तो वह अपने हिस्से की सीटें किसी को क्यों देती। भाजपा खुद को कमजोर स्थिति में पा रही है। दूसरी ओर कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई शिद्दत से लड़ रही है। तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में उसकी जीत ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि भाजपा के लिए मुश्किल के दिन आ गये हैं।
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केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी ने भी कहा है कि भाजपा नेतृत्व को ती राज्यों में पराजय की जिम्मेवारी लेनी चाहिए। पायलट ने कहा कि जब कांग्रेस हारी तो राहुल गांधी ने सीधे इसकी जिम्मेवारी अपने ऊपर ली, जबकि भाजपा नेतृत्व ऐसा करने से कतराता रहा है।
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