भाजपा में मची भगदड़, पहले शत्रुघ्न व कीर्ति बागी बने, अब उदय सिंह

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पूर्णिया के बीजेपी सांसद उदय सिंह के इस्तीफे ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं

पटना। विपक्षी पार्टियों में खोट खोजने वाली भाजपा के लिए बिहार में अच्छे दिन नहीं चल रहे। भाजपा के पुराने सांसद शत्रुघ्न सिन्हा और कीर्ति आजाद ने तो पहले से ही बागी तेवर अपना रखा था, अब पूर्णिया के सांसद उदय सिंह ने तो भाजपा से पल्ला ही झाड़ लिया। शुक्रवार को उन्होंने अपना इस्तीफा ही सौंप दिया। इस्तीफे का कारण भी बताया कि पार्टी अटल जी के सिद्धांतों से भटक गयी है और उनके जैसा कार्यकर्ता भी अगर घुटन महसूस कर रहा है तो सामान्य नेताओं-कार्यकर्ताओं की क्या स्थिति होगी।

भाजपा में भगदड़ की इसे शुरुआत माननी चाहिए। इसलिए कि जिन पांच सांसदों को जदयू से गठबंधन धर्म निभाने में भाजपा शहीद करेगी, वे भी सिर झुका कर आदेश का पालन नहीं करेंगे। उनके भीतर भी खुन्नस होगी और भाजपा से मुंह मोड़ लें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। उदय सिंह को शायद इसका भान रहा हो, शहीद किये जाने वाले लोगों में उनका भी नाम हो सकता है, इसलिए पहले ही उन्होंने अपनी इज्जत बचा ली और खुद ब खुद किनारे हो गये।

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उदय सिंह ने शुक्रवार को बताया कि इस्तीफा उन्होंने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को भेज दिया है। उन्होंने बाजाप्ता प्रेस कांफ्रेंस कर अपने इस्तीफे की जानकारी दी। उन्होंने कहा- मैं राजनीति से दूर नहीं हो रहा हूं।” इसका मतलब साफ है कि वे किसी दूसरे दल से उम्मीदवार हो सकते हैं या निर्दल प्रत्याशी बतौर मैदान में उतरें।

पार्टी में रहना या न रहना उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना पार्टी को छोड़ने से पहले उनका बयान है। श्री सिंह ने कहा कि जिस तरह से भाजपा सत्ता में बने रहने होने के लिए किसी भी हद तक चली गयी है, उससे पार्टी के सभी कार्यकर्ता पूरी तरह से निराश हो गए हैं। अटल जी और आडवाणी जी के समय में सभी पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की चिंताओं को किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले ध्यान में रखा जाता था, लेकिन अब श्री अमित शाह और कुछ अन्य लोग एक निजी जागीर के रूप में पार्टी को चला रहे हैं, जहाँ कार्यकर्ताओं से केवल उनके हुक्म का पालन करने की अपेक्षा की जाती है। पार्टी ने आंतरिक लोकतंत्र की अपनी संस्कृति खो दी है।

उदय सिंह की कोफ्त भी प्रेस कांफ्रेंस के दौरान उभरी। उन्होंने कहा कि रातोंरात जिस नाटकीय ढंग से भाजपा और जदयू एक साथ आए, उसमें न तो कोई राजनीतिक तर्क था और न यह चिंता की गयी कि सत्ता को साझा करने के इस प्रयास का कार्यकर्ताओं के मानस पर क्या असर पड़ेगा।

नीतीश कुमार का हालिया खुलासे ने कि उन्होंने अमित शाह की सलाह पर जदयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर की नियुक्ति की, सभी कार्यकर्ताओं को पूरी तरह चकित कर दिया है।

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कांग्रेस में शामिल होने के अटकलों के जवाब में सिंह ने कहा, “मैं अपने समर्थकों के साथ चर्चा करने के बाद स्वतंत्र हूं कि वे मुझसे क्या चाहते हैं। मैंने अपने लोगों से वादा किया था कि मैं पूर्णिया से चुनाव लड़ूंगा, क्योंकि मैं अपने लोगों की भावनाओं की चिंता करता हूं। राजनीति में किसी नेता के लिए इससे महत्वपूर्ण कोई कारण नहीं होता है।

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