- डी. कृष्ण राव
कोलकाता। सन् 1990 के 25 सितंबर को पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में राज्य के उस समय के मुख्यमंत्री ज्योति बसु के आदेश पर भाजपा के जुझारू नेता लालकृष्ण अडवाणी के रथ को रोका गया था। उस घटना के बाद पश्चिम बंगाल में अभी तक किसी तरह की रथयात्रा किसी राजनेता ने नहीं निकाली, लेकिन आगामी 3 दिसंबर को बीरभूम जिला की शक्तिपीठ तारापीठ से भाजपा की रथयात्रा की शुरुआत करेंगे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह। यह रथयात्रा 5 दिसंबर को दक्षिण 24 परगना के गंगासागर व 7 दिसंबर को उत्तर बंगाल के कूचबिहार से निकाली जाएगी। राज्य के 42 लोकसभा क्षेत्रों में 22 से 25 सीटों पर भाजपा की जीत की उम्मीद शाह पाले हुए हैं।
राज्य के 42 लोकसभा क्षेत्रों को पार करते हुए कोलकाता पहुंचेगी यह रथयात्रा। राज्य भाजपा की ओर से मिली खबर के मुताबिक इस रथयात्रा से लोकसभा चुनाव प्रचार की शुरुयात करना चाह रही है भाजपा। इस रथयात्रा में कई बड़े केन्द्रीय नेताओं के अलावा उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव देव, केन्द्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो भी शामिल होंगे। इधर इस रथयात्रा के शुरू होने के एक माह पहले ही गुजरात से सात सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल कोलकाता पहुंचेगा, जिसमें अमित ठाकुर, प्रदीप सिंह बाघेला, पृथ्वीराज पटेल जैसे नेता मौजूद रहेंगे।
राज्य के भाजपा नेताओं का कहना है कि यह एक मेगा पालिटिकल इवेंट होने जा रहा है, जिससे आगामी लोकसभा चुनाव में इसका व्यापक असर दिखेगा। राज्य के राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए यह एक बड़ा चैलेंज होगा, क्योंकि ममता खुद महागठबंधन बनाने की बात जोर-शोर से कह रही हैं। दिल्ली में उनकी ताकत भी बढ़ी है। इस परिस्थिति में वह खुद अगर अमित शाह की रथयात्रा रोक देती हैं तो पूरे राज्य में भाजपा व्यापक उत्पात मचा सकती है। उसे आसानी से प्रचार भी मिल जाएगा। यह राष्ट्रीय मुद्दा भी बन जायेगा।
दिल्ली समेत पूरे देश में भाजपा इस घटना को प्रचारित करेगी। अगर नहीं रोकती हैं तो राज्य के 42 लोकसभा क्षेत्रों में भाजपा कार्यकर्ताओं को आक्सीजन मिलेगा, जिससे संगठन मजबूत होगा और 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में भाजपा की सीटों की संख्या बढ़ेगी। अमित शाह बंगाल से 22 से 25 सीटों की आस लगाए बैठे हैं। फिलवक्त यह असंभव लगता है, लेकिन पिछली बार की तुलना में सीटें बढ़ने की संभावना पूरी है।
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