जयप्रकाश के आंदोलन (जेपी मूवमेंट) में लगातार विपक्षी नेताओं और युवाओं का साथ मिलता गया. इससे जयप्रकाश आंदोलन के सेनानी उत्साहित थे, लेकिन चंद्रशेखर सशंकित थे. उन्होंने उन्हीं दिनों जयप्रकाश नारायण को चिट्ठी लिखी. चिट्ठी में लिखा था, ‘आप सोचते हैं कि ये लोग व्यवस्था परिवर्तन के लिए आ रहे हैं तो आप गलत हैं. दरअसल ये लोग सत्ता की चाह में आ रहे हैं. ये लोग व्यवस्था में बदलाव नहीं करेंगे, बल्कि आने वाले दिनों में अपनी-अपनी जातियों के नेता साबित होंगे.’ चंद्रशेखर कितने सही थे, इसका उदाहरण लालू, मुलायम या उस दौर में उभरे तमाम नेता हैं, जो समाज बदलने का सपना दिखाते-दिखाते अपनी-अपनी जातियों के नेता बन गये हैं.
- ओमप्रकाश अश्क
5 जून 1974 को जब जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने पटना के गांधी मैदान में दो शब्दों- संपूर्ण क्रांति- का नारा दिया था, उसके बाद तकरीबन ढाई साल में इन दो शब्दों ने देश की सियासत में भूचाल ला दिया. सबसे पहले इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 की आधी रात इमरजेंसी की घोषणा कर दी और विरोधी विचारधारा वाला नेताओं की गिरफ्तारी शुरू हो गयी. हालांकि उनकी इस दमनकारी चाल के बावजूद आजादी के बाद से सत्ता पर काबिज कांग्रेस के आखिरकार पांव उखड़ गये थे. जनता ने 1977 में विपक्षी दलों के गंठजोड़ से बनी जनता पार्टी के हाथ में सत्ता की बागोडार सौंप दी. संपूर्ण क्रांति की इस बड़ी सफलता को याद करने के लिए गैर कांग्रेसी दल हर साल 5 जून को संपूर्ण क्रांति दिवस मनाते हैं. बिहार के पटना में जेपी ने यह नारा दिया था, इसलिए वहां राष्ट्रीय राजनीति में बदलाव के लिए समय-समय पर इसका राजनीतिक इस्तेमाल भी होता रहा है. इस बार बिहार की दूसरी बड़ी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने संपूर्ण क्रांति दिवस पर नीतीश सरकार के कामकाज पर रिपोर्ट कार्ड जारी कर उनकी विफलताएं गिनायीं.
क्या था संपूर्ण क्रांति का उद्देश्य
वर्ष 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश के निर्माण तक तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की लोकप्रियता ने उन्हें उसी साल भारी बहुमत से सत्ता सौंपी थी. पहले से ही महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से तबाह जनता ने पाकिस्तान को तोड़ कर बांग्लादेश बनाने की इंदिरा की कूटनीतिक पहल की कामयाबी पर सत्ता का तोहफा तो दे दिया, लेकिन उसकी समस्याओं का समाधान यथावत रहा. समय के साथ इंदिरा गांदी के शासन के प्रति जनता में आक्रोश पलता-बढ़ता रहा. जन आक्रोश पहली बार मुखर तब हुआ, जब फीस वृद्धि और बढ़ती महंगाई के मुद्दे पर गुजरात में छात्रों आंदोलन शुरू हुआ. इस आंदोलन की गूंज देश के दूसरे राज्यों में भी सुनाई देने लगी, लेकिन बिहार में गुजरात से बड़ा आंदोलन कुलबुला रहा था.
बिहार के छात्रों ने छात्र वाहिनी बना कर सरकार के खिलाफ आंदोलन तो शुरू किया, लेकिन उनके पास सर्वस्वीकार्य नेतृत्व का अभाव था. छात्रों ने जेपी यानी जयप्रकाश नारायण से संपर्क किया. उन दिनों वे सक्रिय राजनीति से अलग होकर सामाजिक कार्यों में अपना समय बिता रहे थे. आखिरकार नेतृत्व के लिए वे तैयार हुए और 5 जून 1974 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में विशाल रैली हुई. उस वक्त के लोग बताते हैं कि उतनी भीड़ उसके बाद कभी भी गांधी मैदान में नहीं जुटी. उसी रैली में जेपी ने दो शब्दों- संपूर्ण क्रांति का नारा दिया. इसके चार अहम उद्देश्य थे. पहला यह कि राजनीतिक क्रांति हो, दूसरा- सामाजिक क्रांति हो, तीसरा सांस्कृतिक क्रांति हो और चौथा- वैचारिक क्रांति हो. राम मनोहर लोहिया की सप्त क्रांति के तर्ज पर जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया.
और इसके साथ ही विपक्ष की गोलबंदी शुरू हो गयी
संपूर्ण क्रांति के आह्वान के साथ ही विपक्ष दलों की गोलबंदी शुरू हुई. अभी की भाजपा और तत्कालीन जनसंघ के साथ समाजवादी पार्टियां एक मंच पर आयीं. गुजरात से शुरू हुए छात्र आंदोलन की आग बिहार होते हुए पूरे देश में फैल गयी. जनता महंगाई और भ्रष्टाचार से तो तबाह होकर पहले से ही बदलाव के लिए बेचैन थी. इसी बीच इंदिरा गांधी के चुनाव को चुनौती देने वाली समाजवादी नेता राजनारायण की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुना दिया. इंदिरा की सदन की सदस्यता खत्म हो गयी. उन्होंने बौखलाहट में 25 जून 1975 की आधी रात से देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी. विपक्ष के तमाम बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर जेलों में ठूंसा जाने लगा. जेपी को भी जेल में डाल दिया गया. पहले से ही नाराज जनता का गुस्सा इस पर भड़क उठा और 1977 के आम चुनाव में न सिर्फ इंदिरा गांधी हारीं, बल्कि कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया.
जेपी ने सात क्रांतियों को संपूर्ण क्रांति में शामिल किया
जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का नारा देते हुए इसे स्पष्ट भी किया था कि इसके दायरे में क्या-क्या बातें आएंगी. इसमें उन्होंने सात क्रांतियों का जिक्र किया- राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक क्रांति. इन सभी क्रांतियां से ही क्रांति संपूर्ण होगी. इन क्रांतियों का मकसद भी उन्होंने बताया- ’संपूर्ण क्रांति से मेरा तात्पर्य समाज के सबसे अधिक दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना है.’ जेपी के इस आह्वान के बाद जातिगत भेदभाव मिटाने के अबियान के तहत ही कई लोगों ने अपने नाम से जाति सूचक उपाधियां हटा ली थीं. इनमें लालू प्रसाद, नीतीश कुमार बिहार के प्रमुख नेता थे. जनेऊ तोड़ो अभियान की शुरुआत तो उसी वक्त गांधी मैदान में शुरू हो गयी, जब जेपी ने इसका आह्वान किया- जाति छोड़ो-जनेऊ तोड़ो. आंदोलनरत छात्र वाहिनी के लोगों ने जाति तोड़ कर तिलक-दहेज रहित शादियां भीं कीं. लालू, नीतीश, सुशील कुमार मोदी, रामविलास पासवान उसी छात्र वाहिनी से निकले हुए नेता रहे, जो जेपी की संपूर्ण क्रांति को सफल बनाने के लिए घर-घर अलख जमाने के काम में उस वक्त जुटे थे.
जेपी के जाति तोड़ो क्रांति की हवा निकल गयी बिहार में
बिहार में जेपी की जाति तोड़ो क्रांति की हवा निकल गयी. इस क्रांति के ध्वज वाहक लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी ने एम-वाई जैसे जातीय समीकरण के बूते चुनाव लड़ना शुरू कर दिया. अब तो जातीय जनगणना की मुखर मांग करने वाली पार्टी भी आरजेडी हो गयी है. जातीय विषमताओं की नींव तो तभी पड़ गयी थी, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का फैसला किया. बिहार में इसे लागू कराने वालों में मुख्य भूमिका लालू प्रसाद की रही. अगड़े-पिछड़ों के बीच खूनी खेल उस वक्त के लोगों ने देखा है. कई वर्षों बाद शांति लौटी थी.
इमरजेंसी त्रासदी बयां करती चंद्रशेखर की जेल डायरी
25 जून 1975 को आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (मीसा) के तहत चंद्रशेखर को गिरफ्तार किया गया. उन्होंने डायरी में विस्तार से लिखा है कि कैसे राजनीतिक बंदी होते हुए भी जेल में सभी को जरूरी सुविधाओं से वंचित रखा गया था. 26 जून, 1975 को उन्होंने लिखा है- ‘प्रातः 3.30 बजे टेलीफोन की घंटी बजी. खबर लगी कि जेपी को गिरफ्तार करने पुलिस पहुंच गयी है. सोये से उठते ही यह खबर विचित्र लगी. फिर न जाने तुरंत ख्याल आया कि कहीं हमारे यहां भी पहरा नहीं हो. त्यागीजी से बाहर देखने को कहा, पर कुछ भी नहीं था। दयानंद और त्यागीजी के साथ जेपी के वहां गया. वे पुलिस की गाड़ी में बैठ गये थे. उनके साथ ही पीछे-पीछे टैक्सी से पार्लियामेंट थाने गया. थाने में एक उच्च पुलिस अधिकारी ने जब मेरे वारंट की बात की, तो बड़ा अच्छा लगा. एक संतोष हुआ. सिविल लाइन थाने में एक-एक करके लोग आते गये. राजनारायण, पीलू मोदी, बीजू, रामधन, समर, जयपालजी बक्शी, भाई महावीर और मलकानीजी.
चंद्रशेखर ने आशंका सच साबित हुई
जयप्रकाश के आंदोलन (जेपी मूवमेंट) में लगातार विपक्षी नेताओं और युवाओं का साथ मिलता गया. इससे जयप्रकाश आंदोलन के सेनानी उत्साहित थे, लेकिन चंद्रशेखर सशंकित थे. उन्होंने उन्हीं दिनों जयप्रकाश नारायण को चिट्ठी लिखी. चिट्ठी में लिखा था, ‘आप सोचते हैं कि ये लोग व्यवस्था परिवर्तन के लिए आ रहे हैं तो आप गलत हैं. दरअसल ये लोग सत्ता की चाह में आ रहे हैं. ये लोग व्यवस्था में बदलाव नहीं करेंगे, बल्कि आने वाले दिनों में अपनी-अपनी जातियों के नेता साबित होंगे.’ चंद्रशेखर कितने सही थे, इसका उदाहरण लालू, मुलायम या उस दौर में उभरे तमाम नेता हैं, जो समाज बदलने का सपना दिखाते-दिखाते अपनी-अपनी जातियों के नेता बन गये हैं.
यह भी पढ़ेंः संपूर्ण क्रांति की याद दिलाता इंदिरा गांधी का आपातकाल
यह भी पढ़ेंः संपूर्ण क्रांति के लिए जेपी ने पुलिस से जो कहा, वही अमेरिका में हो रहा
यह भी पढ़ेंः जयप्रकाश जी ने कहा था- आग तो तुम्हारी कुर्सियों के नीचे सुलग रही है