झारखंड की राजनीति में अगले कुछ दिन काफी सनसनीखेज हो सकते हैं

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कोरोना की रिपोर्टिंग में मीडिया पर दुमका उपायुक्त ने कई तरह की पाबंदी लगा दी है। उल्लंघन पर केस करने की चेतावनी भी दी है। इसको लेकर तीखी आलोचना हो रही है। भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने भी इसकी आलोचना की है
कोरोना की रिपोर्टिंग में मीडिया पर दुमका उपायुक्त ने कई तरह की पाबंदी लगा दी है। उल्लंघन पर केस करने की चेतावनी भी दी है। इसको लेकर तीखी आलोचना हो रही है। भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने भी इसकी आलोचना की है
  • ओमप्रकाश अश्क
सरयू राय
सरयू राय

रांचीः झारखंड की राजनीति में अगले कुछ दिन काफी सनसनीखेज हो सकते हैं। कई बड़े राजनीतिक बदलाव के संकेत मिल रहे हैं। चुनाव बाद राजनीति फिर गरमा सकती है। झारखंड विकास मोरचा के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी व भाजपा से बागी होकर रघुवर दास को परास्त करने वाले सरयू राय चौंका सकते हैं। वही 2 सीटों से जीत हासिल करने वाले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दुमका सीट भले छोड़ चुके हैं,पर इसे वे अपने ही घराने में रखना चाहते हैं। उनकी पत्नी कल्पना सोरेन इस सीट से झामुमो की उम्मीदवार बन सकती हैं।

बाबूलाल मरांडी थाम सकते हैं भाजपा का झंडा, बन सकते हैं नेता प्रतिपक्ष

झारखंड विकास मोर्चा के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी समेत तीन विधायक चुने गये हैं। प्रदीप यादव राजद और झामुमो से संपर्क बनाये हुए हैं। बंधु तिर्की की नजर झामुमो की ओर है। खुद सुप्रीमो भाजपा के संपर्क में हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि बाबूलाल मरांडी की भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से बात हो चुकी है। अगर वह भाजपा में शामिल होते हैं तो उन्हें विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाया जा सकता है।

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भाजपा को एक मुखर और कद्दावर आदिवासी चेहरे की विधानसभा में सख्त जरूरत है। भाजपा के पास महज दो आदिवासी चेहरे फिलवक्त हैं- नीलकंठ सिंह मुंडा और कोचे मुंडा। लेकिन ये बाबूलाल मरांडी के मुकाबले कम मुखर हैं। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व यह जान चुका है कि पार्टी में बतौर मुख्यमंत्री किसी आदिवासी चेहरे को पेश न कर पाने की उसे कीमत चुकानी पड़ी है।

सरयू राय की हो सकती है भाजपा में वापसी, मिल सकती है संगठन की कमान

तीसरी बड़ी सूचना अगर सच है तो सरयू राय की भाजपा में वापसी हो सकती है। इसके लिए भाजपा के भीतर ही दबंगता से बात उठ रही है। आरएसएस बैकग्राउंड और पार्टी के समर्पित नेता के रूप में उनकी पहचान रही है। वह कई बार कह भी चुके हैं कि एक आदमी की वजह से झारखंड में भाजपा जैसे सशक्त संगठन को दुर्गति झेलनी पड़ी है। उन्होंने यहां तक कहा है कि भाजपा के संस्कार उनके भीतर इस तरह भरे पड़े हैं कि बाहर रहते हुए भी उसे छोड़ या भुला पाना उनके लिए आसान नहीं। पार्टी में उनके समर्थकों-पैरोकारों की कमी नहीं है। समझा जाता है कि भाजपा उन्हें ससम्मान पार्टी में वापस लाना चाहती है। अगर वह लौटते हैं तो उन्हें पार्टी प्रदेश अधियक्ष की जिम्मवारी सौंप सकती है।

हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन हो सकती हैं दुमका से झामुमो प्रत्याशी

तीसरी राजनीतिक बदलाव हेमंत सोरेन को लेकर है। वे दुमका और बरहेट सीटों से चुनाव जीते हैं। बरहेट उनकी पारंपरिक सीट है। इस बार उन्होंने दुमका में भाजपा की लूइस मरांडी को करीब 13 हजार वोटों से पराजित किया था। पिछली बार इस सीट पर हेमंत को हार का सामना करना पड़ा था। हेमंत ने दुका सीट खाली कर दी है, लेकिन वहां के लोगों के स्नेह और सहयोग को देखते हुए अपरोक्ष तौर पर वे इस सीट को भी अपने पास ही रखना चाहते हैं। इसलिए दबी जुबान यह चर्चा जोरों पर है कि दुमका सीट पर हेमंत सोरेन अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को उम्मीदवार बनायेंगे। इससे हेमंत सोरेन को दो फायदे होंगे। पहला यह कि झुमका सीट छोड़ने के बावजूद पत्नी के बहाने उस सीट पर उनकी मौजूदगी बरकरार रहेगी।

अब आते हैं हेमंत सरकार बिना शर्त बाहर से समर्थन दे रहे तीन सदस्यों वाले झारखंड विकास मोर्चा पर। बाबूलाल मरांडी अब यह मान चुके हैं कि वे अकेले अपना राजनीतिक कैरियर बरकरार नहीं रख सकते। उनके दो साथियों में एक प्रदीप यादव झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर चुनकर विधानसभा जरूर पहुंचे हैं, लेकिन उनकी दलीय निष्ठा पर संदेह जताये जा रहे हैं। चुनाव जीतने के तुरंत बाद वे रिम्स के पेयिंग वार्ड में भर्ती लालू प्रसाद से मिलने पहुंचे थे। पिछले अनुभव और ताजा हालात भी इसी बात की ओर इशारा करते हैं कि झाविमो के विधायक पाला बदल में माहिर हैं। अंदेशा है कि प्रदीप यादव भी पाला बदल सकते हैं। राजनीतिक कैरियर के आखिरी पड़ाव पर पहुंचे बाबूलाल मरांडी अब और जोखिम नहीं लेना चाहते हैं। सूचना है कि बाबूलाल मरांडी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से बातचीत कर ली है। प्रधानमंत्री राजी भी हैं। उनकी दिली इच्छा भी है कि बाबूलाल मरांडी अपने मूल कैडर भाजपा में लौट आएं। नई विधानसभा का सत्र शुरू होने के दिन तक प्रमुख विपक्षी दल भाजपा की ओर से किसी नेता का नहीं चुना जाना इस बात का संकेत है कि पार्टी किसी बड़ी योजना पर काम कर रही है।

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