बिहार में अकेले लड़ने के लिए कमर कस रही है कांग्रेस

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कांग्रेस का “बी” प्लान, राजद से नहीं बनी बात तो छोटे दलों के सहारे लड़ेगी चुनाव

  • राणा अमरेश सिंह

पटना। खरमास बीते और कई दौर की बैठकों के बाद महागठबंधन में सीट शेयरिंग का फार्मूला अब तक हल नहीं हो सका है। नतीजतन कांग्रेस वैकल्पिक प्लान पर विचार कर रही है। कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक पार्टी वैकल्पिक रास्ते अख्तियार करने के रास्ते पर होम वर्क कर रही है। सूबे के खास प्रभाव वाली पार्टियों के सहारे मैदान-ए-जंग में जायेगी। सूत्र कहते हैं कि राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू यादव 22  सीटें राजद के हिस्से में रखना चाहते हैं। राहुल गांधी की 3 फरवरी की रैली के बाद सीट संबंधी तस्वीर साफ होने की उम्मीद जताई गई है। वहीं, राजग के बीच सीटों का बंटवारा हुए पांच सप्ताह बीत गए हैं।

बिहार में अलग-अलग प्रभाव क्षेत्रों में दावे करने वाले दलों का महागठबंधन तो हो गया, लेकिन लालू यादव के सामने किसी की बोलती नहीं निकल रही। कारण स्पष्ट है कि बिहार में लालू यादव का “एमवाई” समीकरण फिलहाल दमखम के साथ फिट है। राजद के हिस्से में एमवाई समीकरण के तकरीबन 30 फीसदी वोट तो उसकी बुनियादी पूंजी मानी जाते हैं। जबकि कांग्रेस के पास अपने बेसिक वोट के नाम पर किसी क्षेत्र या जाति का दावा करने की कुव्वत नहीं है। तीन राज्यों में मिली सफलता को लालू यादव ने कांग्रेस डेलिगेट को यह कह कर निरूत्तर कर दिया कि वे तीनों क्षेत्र कांग्रेस प्रभाव वाले हैं। इसलिए वहां मुसलमानों को अना वोट कांग्रेस को देना मजबूरी थी। रही सही कसर ममता बनर्जी ने कोलकाता की रैली में निकाल दी। यह कि जिसका जहां वजन भारी, वह करेगा वहां दावेदारी।

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रिम्स के प्राइवेट वार्ड में भर्ती लालू यादव बिहार की सियासी सूझ-बूझ किसी भी राजनेता से कहीं अधिक मानी जाती है। वे आज की तारीख में बिहार के सबसे जनाधार वाले नेता हैं। लालू यादव के जेल में रहने की कमी को उनके बेटे दम-खम से भरपाई करने की कोशिश कर रहे हैं।

बिहार में कांग्रेस किसी भी सूरत में 12 सीटों पर अपना प्रत्याशी देना चाहती है। कांग्रेस का मानना है कि बिहार में महागठबंधन बनाने में उसने अहम रोल अदा की है। इसलिए वह मजबूर नहीं, मजबूत होकर मैदान ए जंग में जायेगी। रालोसपा मुखिया उपेंद्र कुशवाहा और सांसद पप्पू यादव के अलावा अन्य पार्टियों के सहारे कांग्रेस मैदान में जाने का ताल ठोक रही है।

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यूं तो कांग्रेस अकेले भी चुनाव लड़ सकती है, लेकिन उसके लिए गठबंधन जरूरी है। गठबंधन बना कर वह संदेश देना चाहती है कि वह अकेले और अलग-थलग नहीं है। छोटी पार्टियों के गठबंधन के साथ चुनावी समर में उतरने पर उसे मज़बूत सीटों पर मुसलिम वोट भी मिल सकते हैं। कांग्रेस को भी इस बात का एहसास है, लिहाजा कांग्रेस ने एक समानांतर रणनीति बनानी शुरू की है और वह महागठबंधन में जगह पाने से छूट जाने वाली छोटी पार्टियों को साधने में जुटी हुई है।

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उपेंद्र कुशवाहा को होगी खुशी

अगर कांग्रेस अपने इस प्लान पर अमल करती है तो इससे रालोसपा और पप्पू यादव को खुशी होगी। कारण यह है कि उपेंद्र कुशवाहा लोकसभा चुनाव से कहीं अधिक 2020 के बिहार विधान सभा चुनाव की तैयारी में हैं। वे अपने को मुख्यमंत्री का फेस मानते हैं। वहीं राजद में मुख्यमंत्री का फेस तेजस्वी यादव ने अख्तियार कर लिया है। इसलिए स्पेश अब कांग्रेस में रिक्त है। वहीं, कुशवाहा का तर्क है कि बिहार में पिछड़ी जाति के यादव और कुर्मी ने 15-15 साल राज कर लिए, इसलिए अब कुशवाहा जाति की बारी है। वे पूरे कुशवाहा का एकछत्र नेता होने का दावा करते हैं।

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पप्पू यादव की महत्वपूर्ण होगी भूमिका

दूसरी ओर सांसद पप्पू यादव उत्तर बिहार में खासा प्रभाव रखते हैं। वे कोशी पुत्र के नाम से भी पहंचान बनाये हुए हैं। उत्तर बिहार में लालू यादव के बाद दूसरे लोकप्रिय नेता माने जाते हैं। लालू यादव को पप्पू यादव अपना नेता मानते हैं, लेकिन वे उनके बेटे तेजस्वी यादव को अपना सीनियर नेता कतई स्वीकार नहीं करते। आजकल दलित व पिछड़ों के बीच किसी भी अत्याचार की खबर मिलते ही पप्पू यादव सबसे पहले पहुंचते हैं और उसे आर्थिक व शासकीय मदद करते हैं। कांग्रेस के सूत्रों का दावा है कि राजद से ज़्यादा सीटों पर लड़ने की वजह से छोटी पार्टियां उसके साथ आ सकती हैं। कांग्रेस के साथ आने पर उन्हें पूरा सम्मान और ज़्यादा सीटें मिलेंगी। इसलिए कांग्रेस का गठबंधन ज़्यादा मजबूत होगा।

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उत्तर-प्रदेश के सपा-बसपा गठबंधन का प्रभाव

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बीएसपी के बीच चुनावी गठबंधन के एलान के साथ ही यह साफ हो गया है कि कांग्रेस इस गठबंधन का हिस्सा नहीं होगी। इस घोषणा से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की नींद उचट गई थी। मायावती ने जिस तरह बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस पर तीखे हमले किए, उससे चुनाव के बाद की परिस्थितियों में इस गठबंधन के कांग्रेस को समर्थन देने में भी आनाकानी करने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। इसके तीसरे दिन ही राजद के कर्ता-धर्त्ता तेजस्वी यादव  ने मायावती और अखिलेश यादव को बधाई देने पहुंचे थे। तब अटकलें लगाई जा रही थीं कि कहीं बिहार में यह फार्मूले को अमली-जामा नहीं पहनाया जाये!

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