पटना। बिहार में कांग्रेस अपने अंदाज और स्टाइल में चल रही है। महागठबंधन में पिछलग्गू पार्टी बनने के बजाय उसे अकेले चलना रास आ रहा है। सांगठिनक ढांचे को मजबूत करने पर कांग्रेस का पूरा ध्यान लगा है। अभी तक सूबे में कांग्रेस का संगठन काफी कमजोर रहा है। लालू परिवार के लगातार केंद्रीय जांच एजेंसियों के निशाने पर होने और पारिवारिक कलह को देखते हुए कांग्रेस ने खुद को किनारे करने का संकेत देना शुरू किया है। अगर लालू परिवार की मुश्किलें बढ़ती हैं तो कांग्रेस को अपनी अलग राह चुनने में तनिक भी देर नहीं लगेगी। कांग्रेस को 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों का इंतजार है।
कांग्रेस ने लालू प्रसाद के परिवार से दूरी बनानी शुरू कर दी है। लालू खे खिलाफ सीबीआई की साजिश की खबर लीक होने के बाद विपक्ष को जिस मुखरता से इस पर सवाल खड़ा किये जाने थे, वैसा नहीं हुआ। लालू की अस्पताल में बिगड़ती हालत के बावजूद कांग्रेस का कोई कद्दावर नेता उनसे मिलने नहीं गया। राजद अपनी न्याय यात्रा का अभियान चला रहा तो कांग्रेस जन संवाद में जुटी है। यह स्थिति तब है, जब कांग्रेस और राजद ही फिलवक्त महागठबंधन की दो बड़ी पार्टियां हैं। पिछली बार 2015 के विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने महागठबंधन बना कर लड़ा था। तब इसे 30 सीटें मिली थीं। वोट शेयर करीब 6 प्रतिशत था।
कांग्रेस को अपने पक्ष में जो चीजें दिखाई पड़ रही हैं, उनमें पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे होंगे। अभी तक माना यह जा रहा है कि तीन राज्यों में भाजपा को कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिल रही है। अनुमान लगाने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि राजस्थान में तो पक्का कांग्रेस वापसी करेगी। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस कड़ी टक्कर दे रही है भाजपा को। अगर ये नतीजे कांग्रेस के अनुकूल आये तो इसका मनोबल और ऊंचा होगा।
यह भी पढ़ेंः SC/ST मुद्दे पर विपक्ष को धकिया कर आगे निकल गयी भाजपा
राम मंदिर और हिन्दुत्व के मुद्दे पर अल्पसंख्यक समुदाय भाजपा से भड़का हुआ है। एससी-एसटी ऐक्ट के मुद्दे पर सवर्ण भाजपा के खिलाफ है। समाजवादी-साम्यवादी समाज के वोटरों का झुकाव भी कांग्रेस की ओर हो सकता है। ऐसी अनकूल स्थिति में अगर कांग्रेस आ जाती है तो वह बिहार में एकला चलने से शायद ही परहेज करे।
यह भी पढ़ेँः भाजपा ने पूछा, पाकिस्तान में कांग्रेस कैंपेन क्यों चला रही राहुल जी