- डी. कृष्ण राव
कोलकाता। CPM हेडक्वार्टर अलीमुद्दीन स्ट्रीट में विधानसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे पर कांग्रेस और इंडियन सेकुलर फ्रंट की बैठक मतीजा रही। सीट बंटवारे को लेकर लेफ्ट फ्रंट, कांग्रेस और अब्बास सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेकुलर फ्रंट के बीच 4 घंटे तक बैठक चली। पेंच इंडियन सेकुलर फ्रंट के नेता अब्बास सिद्दीकी द्वारा 70 सीटों की मांग को लेकर फंसा है। हालांकि CPM ने उम्मीद जतायी है कि अगली बैठक में इस पेंच को सुलझा लिया जाएगा।
इंडियन सेकुलर फ्रंट के नेता अब्बास सिद्दीकी ने थर्ड फ्रंट में 70 सीटों की मांग की है। लेफ्ट फ्रंट और कांग्रेस 45 सीटें देने को तैयार हैं। लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन को उम्मीद है कि अगली बैठक में बात बन जाएगी। आज हुई बैठक में 28 फरवरी को ब्रिगेड परेड ग्राउंड में जनसभा की तैयारियों को लेकर भी चर्चा हुई। इस जनसभा में लेफ्ट फ्रंट और कांग्रेस के केंद्रीय नेताओं को आमंत्रण भेजा गया है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को भी सभा में उपस्थित होने का न्यौता भेजा गया है।
बैठक के बाद कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी व लेफ्ट फ्रंट की ओर से विमान बसु ने पत्रकारों को बताया कि विधानसभा चुनाव इस बार त्रिकोणीय होने जा रहा है। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि मीडिया के लोग इस चुनाव को टीएमसी और भाजपा के बीच बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन असल में यह लड़ाई त्रिकोणीय होने जा रही है।
उन्होंने यह भी बताया कि आरजेडी, एनसीपी जैसे छोटे दल भी थर्ड फ्रंट के नाम पर साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाह रहे हैं। इसी वजह से सीटों के बंटवारे में विलंब हो रहा है। इधर बैठक से बाहर निकलते ही अब्बास सिद्दीकी ने पूछे जाने पर बताया कि वह राज्य में तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ साथ मिल कर लड़ने के पक्ष में हैं। सबकी एक ही इच्छा है कि किसी भी परिस्थिति में टीएमसी और भाजपा को चुनाव जीतने से रोका जा सके। लेकिन उनकी मांग के मुताबिक सीटें नहीं मिलीं तो वह अकेले ही चुनाव मैदान में उतरेंगे।
इधर सूत्रों से मिली खबर के मुताबिक इंडियन सेकुलर फ्रंट के नेता अब्बास सिद्दीकी ने सोमवार को लेफ्ट फ्रंट के नेता विमान बसु व मोहम्मद सलीम से बात कर 70 सीटों की मांग रखी थी, लेकिन CPM नेता और लेफ्ट फ्रंट के चेयरमैन विमान बसु ने 45 सीटों से अधिक देने में असमर्थता जतायी। दरअसल कांग्रेस अपने गढ़ मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर दिनाजपुर में अब्बास सिद्दीकी को एक भी सीट देना नहीं चाहती है। इन जिलों की 43 सीटों पर मुसलमान मतदाताओं की संख्या 60% से ऊपर है, जो हमेशा कांग्रेस के साथ रहे हैं। अधीर रंजन चौधरी चाहते नहीं हैं कि कांग्रेस के इस गढ़ में अब्बास सिद्दीकी या उनके सहयोगी ओवैसी को एक भी सीट मिले।
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इधर वाम मोर्चा खासकर CPM के नेताओं को यह भी पता है कि पूरे दक्षिण बंगाल में 66 ऐसी सीटें हैं, जहां मुसलमानों का काफी दबदबा है। हावड़ा, उत्तर व दक्षिण 24 परगना, हुगली व कुछ अन्य जिलों में अब्बास सिद्दीकी काफी मजबूत संगठन बना चुके हैं। भाईजान के नाम से मशहूर अब्बास सिद्दीकी के इन जिलों के मुसलमान दीवाने हैं। गांवों में भाईजान के नाम पर बिरादरी के लोग पागल हैं और इन जिलों के विधानसभा क्षेत्रों में 40% से ज्यादा मत मुसलमानों के हैं। विमान बोस को यह भी पता है कि अगर अब्बास सिद्दीकी उनके साथ रहे तो मुसलमान थर्ड फ्रंट के साथ होंगे। इन इलाकों में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा को कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ेगा।
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हालांकि सिद्दीकी की पार्टी के साथ तीसरे मोर्चे के गठन से सबसे बड़ा नुकसान तृणमूल कांग्रेस को ही होगा, क्योंकि तृणमूल कांग्रेस की निर्भरता दिन प्रतिदिन मुसलमान वोटों पर बढ़ती जा रही है। 2016 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल को कुल 211 सीटें मिली थीं, जिनमें से 82 सीटें ऐसी हैं, जहां मुसलमानों का दबदबा है। यानी 41% सीटें मुसलमान बहुल इलाके की हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों के मुताबिक तृणमूल कांग्रेस 163 सीटों पर आगे थी, जिनमें 97 सीटें ऐसी हैं, जहां मुसलमान वोटों की संख्या बहुत ज्यादा है। तृणमूल ने 57% वैसी सीटों पर जीत दर्ज की थी, जहां मुसलमानों की संख्या ज्यादा है। इन आंकड़ों से साफ दिखता है कि मुसलमान वोटों पर तृणमूल कांग्रेस की निर्भरता ज्यादा बढ़ गयी है। वाम मोर्चा और कांग्रेस की ओर से त्रिकोणीय लड़ाई का ऐलान करने के बाद भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ऐसा नहीं मानते कि उससे भाजपा को कोई नुकसान होगा। उल्टे उनका दावा है कि कांग्रेस और वाम मोर्चा को पिछली बाहर से भी कम सीटें मिलेंगी।
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