- डी. कृ।ण राव
हावड़ा (बंगाल)। कट मनी और आम्फान तूफान में राहत की लूट हावड़ा ग्रामीण के 7 विधानसभा क्षेत्रों में सबसे बड़े मुद्दे के रूप में उभर कर सामने आये हैँ। वोटिंग 6 अप्रैल को है। बंगाल के दूसरे हिस्सों की तरह यहां भी एक ही मुद्दा है- कट मनी और आम्फान तूफान में प्रभावित लोगों को सहायता देने के बजाय तृणमूल के नेताओं का अपना पॉकेट भरना। उलुबेड़िया उत्तर से लेकर आमता तक लोगों में तृणमूल कांग्रेस के निचले स्तर के नेताओं के खिलाफ काफी गुस्सा है। हावड़ा ग्रामीण के उलुबेड़िया, आमता, जगतबल्लवपुर, उदयनारायणपुर, श्यामपुर, बाघनान; इन 6 विधानसभा क्षेत्रों में चुनावी खेल मुसलिम वोटरों के हाथ में है। इनकी आबादी 30 से 32% मुसलमान हैं। ये वोटर किसी का भी खेल बिगाड़ सकते हैं। और, यदि भाजपा को रोकने के लिए सारे मुसलमान इकट्ठा होकर तृणमूल कांग्रेस को वोट करते हैं तो 7 में से 6 सीटें पिछली बार की तरह तृणमूल कांग्रेस की झोली में जा सकती हैं। अगर ऐसे हुआ तो जिस हुगली और हावड़ा पर निर्भर होकर आईएसएफ का गठन हुआ था, उसका नामोनिशान मिट सकता है। यानी इंडियन सेकुलर फ्रंट, सीपीएम और कांग्रेस को मिला कर बने तीसरे फ्रंट का सपना चकनाचूर हो जाएगा।
हालांकि ऐसा होने की संभावना कम दिख रही है। बागनान विधानसभा क्षेत्र के तृणमूल उम्मीदवार अरुणा सेन पिछले लोकसभा चुनाव में प्रचंड मोदी लहर के बावजूद अपने केंद्र में 48000 वोटों से आगे थे, लेकिन अब वह भी निश्चित नहीं दिखता है कि इस बार वे इस सीट को जीत सकें। इलाके में अपने काम गिनाते हुए उन्होंने कहा कि उनके पिता को जिस तरह उलुबेड़िया कॉलेज में एसएफआई के लोगों ने बोटी बोटी काट दिया था, वह दिन लोगों को आज भी याद है। लोग इस सीट पर हमारे परिवार के इतिहास को इज्जत देंगे। इस सीट के भाजपा उम्मीदवार अनुपम मलिक का कहना है कि इलाका में तृणमूल नेताओं की दादागीरी, नेताओं के अहंकार उन्हें ले डूबेगा। जिस 48000 मतों की लीड की वे बात कह रहे हैं, वह तो एकतरफा ठप्पे का नतीजा है। स्थानीय देउल्टी गांव के अमित घोषाल का कहना ह- मैं एक पुराना तृणमूल कार्यकर्ता हूं, लेकिन गांव-गांव में कमल खिलने लगा है। ऊपर से डेमोक्रेटिक फ्रंट द्वारा मुसलमानों का वोट काटना इस बार तृणमूल पर भारी पड़ सकता है।
आमता विधानसभा पहुंचते ही राजनीतिक हवा कुछ बदला-बदला सा दिखा। यहां की लड़ाई त्रिकोणीय है। यहां के कांग्रेस विधायक और नेता अजीज मित्रा को लोग काम के आदमी के रूप में जानते हैं। लोगों के घर में पानी, पूरे लॉकडाउन के दौरान घर-घर खाना पहुंचाने समेत कई सारे काम उन्होंने किए हैं। लोग उन्हें भूल पाएं, यह मुश्किल है। भाजपा के उम्मीदवार देवतनु भट्टाचार्य का कहना है कि अजीत बाबू ने जरूर काम किया है, लेकिन साल भर विकास के काम चलने के कारण लोग जरूर भाजपा को वोट देंगे। पिछले लोकसभा इलेक्शन में यहां कांग्रेस को 7000 के आसपास वोट मिले थे। स्थानीय युवक देवांशु का कहना है कि यह विधानसभा का चुनाव है। यहां तो जो काम करता है, पास में रहता है, वही बाजी मारेगा।
आमता पार कर जगतबल्लवपुर घुसते ही आम्फान तूफान में टूटे हुए घर, पीने के पानी की समस्या, हर साल दामोदर नदी में समाते हुए गांव यहां की बड़ी समस्याएं हैं। लोग स्थानीय तृणमूल नेताओं की कट मनी की कहानी सुनाते हुए कहते हैं कि ऊपर से पैसा तो आता है, लेकिन काम नहीं होता। यहां लड़ाई 3 उम्मीदवारों के बीच है। टीएमसी के उम्मीदवार सीता नाथ घोष, भाजपा की उम्मीदवार पूर्ति एमपी के दबंग नेता अनुपम घोष, आईएसएफ के उम्मीदवार पूर्व टीएमसी नेता शब्बीर अहमद हैं। यहां कुल लड़ाई अहमद भाई पर टिकी हुई है। अगर अहमद भाई टीएमसी के मुसलमान वोट 5% भी काटते हैं तो भाजपा का जीतना यहां आसान हो जाएगा।
उदयनारायणपुर विधानसभा क्षेत्र के लोग बाढ़ से पीड़ित रहते हैं। बाढ़ से बचाने के लिए स्थानीय तृणमूल के विधायक समीर पांजा वादा तो कई बार कर चुके हैं, लेकिन इस बार लोग उन पर कितना भरोसा करते हैं, यह देखने की बात है। समीर बाबू का कहना है कि सारे कागजात रेडी हो चुके हैं। दामोदर नदी पर बांध बनने वाला है। यहां के एक व्यापारी का कहना है कि समीर बाबू हर साल चुनाव आते ही बांध बनाने का वादा करते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होते ही सब कुछ भूल जाते हैं। भाजपा के उम्मीदवार सुमित रंजन को लेकर यहां के नाराज भाजपाइयों ने कोलकाता दफ्तर में 3 दिन तक लगातार धरना दिया था। स्थानीय लोगों का कहना है कि भाजपा के कुछ पुराने लोगों ने काम करना बंद कर दिया है, लेकिन यह भी कहते हैं कि सुमित बाबू को इलेक्शन जीतना बखूबी आता है।
श्यामपुर विधानसभा के चार बार के विधायक तृणमूल के दबंग नेता काली मंडल के खिलाफ जोरदार एंटी इनकंबैंसी (Anti Incumbency) है, लेकिन काली बाबू का कहना है कि दीदी और दीदी के विकास के काम उनके साथ हैं। भाजपा ने जान-बूझकर यहां फिल्म अभिनेत्री तनुश्री चक्रवर्ती को टिकट दिया। तनुश्री का आरोप है कि यहां लोगों के लिए न अस्पताल है, न पीने के पानी की व्यवस्था। दूसरी ओर काली बाबू का कहना है कि जल्दी ही यहां सुपर स्पेशलिटी अस्पताल बनेगा। यहां के युवक अरुण मंडल का कहना है कि अस्पताल तो दूर की बात, हावड़ा सदर के साथ बस की यात्रा व्यवस्था भी ठीक नहीं है। यातायात व्यवस्था न होने की बात लगभग सभी विधानसभा क्षेत्रों के लोग कर रहे हैं।
शाम होते-होते पहुंचे उलबेड़िया पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में। यहां के तृणमूल उम्मीदवार राज्य के पूर्व मंत्री व मेडिकल डायरेक्टर निर्मल माझी है। यहां के लोग इन्हें डायलिसिस के नाम से जानते हैं, क्योंकि कोलकाता के पीजी अस्पताल में अपने कुत्ते की किडनी की डायलिसिस कराने और मेडिकल डायरेक्टर के रूप में अपनी बेटी को गैरकानूनी तरीके से मेडिकल में भर्ती कराने का आरोप है। एक रोड शो के दौरान आमने-सामने होते ही उनसे पूछ लिया कि इतने सारे आरोप के बीच आप जीतेंगे कैसे? उन्होंने अपने हाथ में लिए हुए स्वास्थ्य साथी कार्ड दिखाते हुए कहा कि इस बार का मूल मंत्र यही है। भाजपा की उम्मीदवार चिरॉन बेहरा को आम आदमी पहचानता भी नहीं, लेकिन जीतने का वह दावा कर रहे हैं। केवल कमल छाप के निशान के भरोसे उनके रहने की एक बड़ी वजह सीपीएम है। सीपीएम उम्मीदवार अगर तृणमूल का वोट काटता है तो चिरॉन बाबू इस बार विधानसभा जरूर पहुंचेंगे।
हावड़ा ग्रामीण के अंतिम विधानसभा उलबेड़िया दक्षिण है। यहां के तृणमूल उम्मीदवार तृणमूल ग्रामीण जिला के अध्यक्ष पुलक राय है। तृणमूल उम्मीदवार के खिलाफ पार्टी में बहुत सारे ग्रुप हैं। सबको एक साथ लेकर चलना ही इनके लिए सबसे बड़ा इम्तिहान है। ऊपर से बीजेपी के उम्मीदवार एक समय की स्टार अभिनेत्री पापिया अधिकारी हैं। पापिया अधिकारी के हाल ही हुए रोड शो में वैसी भीड़ उमड़ी, जैसी प्रधानमंत्री मोदी की जनसभा में जनसैलाब उमड़ पड़ा था। अगर भीड़ वोट में परिवर्तित होती है तो तृणमूल उम्मीदवार के लिए परेशानी होगी। पापिया अधिकारी का कहना है कि लोग इस बार नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट देंगे। ऑटो चालक किरण का कहना है कि बेरोजगारी यहां का सबसे बड़ा समस्या है। साथ में तृणमूल नेताओं का अहंकार भी उसके लिए मुश्किल खड़ा कर रहा है।
हावड़ा ग्रामीण के सातों विधानसभा क्षेत्रों में दिन भर चक्कर लगाने के बाद एक बात तो समझ में आ ही गयी कि कट मनी के कारण तृणमूल के खिलाफ जोरदार एंटी इनकंबेंसी है, जो गुस्से में परिवर्तित हो चुकी है। अगर विपक्ष का मैनेजमेंट लोगों को बूथ तक ले जाने में कामयाब रहा तो हावड़ा ग्रामीण में काफी कुछ उथल-पुथल हो सकता है। और एक बात साफ है कि कोई भी अपनी जीत को लेकर दावा ठोकने की स्थिति में नहीं है।
हावड़ा ग्रामीण के तहत 7 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 6 अप्रैल को वोट पड़ना है। 2016 के विधानसभा चुनाव में यहां की 7 में 6 सीटें तृणमूल कांग्रेस के पास थीं। एक सीट पर कांग्रेस की जीत हुई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी तृणमूल सभी 7 सीटों पर दूसरे दलों से आगे थी। कट मनी और आम्फान तूफान का मुद्दा कितना असर डालता है, देखना बाकी है।