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के. विक्रम राव
कभी नफरत थी, अब सनातनी हिन्दू हो गये हैं दिग्विजय सिंह। रियासत राघोगढ़ के राजाधिराज दिग्विजय सिंह राजपुत्र आजकल हर रीति-नीति से हिन्दू हो गए हैं। कभी धार्मिक ढोंग के कट्टर आलोचक थे, अब आस्था से अतिआग्रही हो गये हैं। भगवाधारियों की वे चरण वंदना करते हैं। फुटपाथी शिवालों पर माथा टेकते हैं। बड़का देवालय मिला तो आठो अंग नवाते हैं। भोपाली विस्मित हैं, चकित भी। माथे पर चन्दन और कुमकुम का लेप, लम्बाई में, गोलाकार भी। उनकी दायीं कलाई पर अभिमंत्रित रक्तिम रक्षासूत्र थोक में लिपटे रहते हैं। मानो इतना अकीदतमंद सनातनी धरा पर पहली बार जन्मा हो। भोपाल का वोटर बड़े असमंजस में है। दिग्गी राजा के प्रिय मुसलमान बड़े पसोपेश में हैं। जुमा-जुमा गत माह तक काषाय वस्त्र को कालिमामयी परिधान कहनेवाले इस नरपुंगव ने हिन्दुओं को आततायी करार दिया था। शांतिभक्त, परम अहिंसावादी इस्लामियों पर आतंक ढाने का आरोप हिन्दू उग्रवादियों द्वारा आयद करना इस क्षत्रिय महारथी को वर्षों से कचोटता रहा। अब वोट के खतरे को भांपकर, दिग्गी राजा भयातुर होकर अपनी जानीमानी सेक्युलर मजहबपरस्ती की छवि दुरुस्त करने में जुटे हैं, ताकि बहुसंख्यकों के वोट कट न जाएँ। याद है उनका बयान बाटला हाउस वाला? इंस्पेक्टर शर्मा द्वारा मुस्लिम आतंकी को गोली मारना उनकी दृष्टि से आतंकी हरकत थी। किन्तु अब चोला बदल रहे हैं।
मगर उनके मित्र अब उनके शत्रु से भी बदतर प्रचार कर रहे हैं। उनमें एक हैं पड़ोसी इस्लामी पकिस्तान के वजीरे-आजम खान मोहम्मद इमरान खान। उन्होंने (दिग्विजय सिंह के इतिहास पुरुष) टीपू सुल्तान की (6 मई 2019) अत्यधिक तारीफ कर दी। दिग्गी राजा जब कांग्रेस के कर्नाटक राज्य में चुनाव पर्यवेक्षक थे तो टीपू सुल्तान के कसीदे पढ़ते थे। उधर इमरान हैं कि पाकिस्तान में एक भी सड़क, बगीचा, भवन अथवा संस्था का नाम बादशाह अकबर के नाम पर नहीं रखा। यह मुग़ल बादशाह पाकिस्तान की नजर में हिन्दूपरस्त काफ़िर है। भोपाल के इस राहुल–कांग्रेसी प्रत्याशी की ही पार्टी के सांसद शशि थरूर ने भी टीपू की तारीफ की। इमरान आज गंभीरता से सोच रहे हैं कि राजा साहब राघोगढ़ के मुकुट पर निशाने-पाकिस्तान अथवा हिलाले-पाकिस्तान का तमगा लगाया जाये।
इसका माकूल कारण भी है। सांप पर पंचमी का दूध पिलाने वाले, चींटी बचाकर कदम रखने वाले भीरू हिन्दुओं को दिग्विजय सिंह ने आतंकवादी और उग्रवादी करार दिया, क्योंकि वे भोले भाले मुसलमानों को बम से उड़ा रहे हैं। बम्बइया फिल्मी लेखक जावेद अख्तर की उक्ति याद आयी कि, “हर मुसलमान आतंकी नहीं होता, पर हर आतंकी मुसलमान होता है।” तो साध्वी प्रज्ञा ठाकुर फिर क्या हैं?
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इस बीच 2008 को मुम्बई आतंकवादी काण्ड के हीरो हेमंत करकरे का उल्लेख हो जाये, जिन्होंने प्रज्ञा को हत्यारिन साबित करने की ठान ली थी। पर सफल नहीं हो पाये। हेमंत करकरे, कैमरा में अंकित फोटो के मुताबिक, पाकिस्तानी शूटर मोहम्मद कसाब की गोलियों से मरे। दो अन्य पुलिसवाले भी मारे गये, हालांकि कसाब जिन्दा पकड़ा गया। बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने काफी हीला-हवाला के बाद उसे फांसी की सजा दी।
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इस प्रश्न का उत्तर आज तक कोई भी कांग्रेसी नेता नहीं दे पाया कि आखिर उत्तम गुण वाला बुलेट प्रूफ जैकेट पहना हुआ करकरे मारा कैसे गया? दिग्विजय सिंह के अनुसार हिंदूवादी आरएसएस का हाथ उसमें था। मानो नागपुर से दागी गई गोली मुम्बई में करकरे के सीने को बींध गयी। वास्तविकता यह थी कि महाराष्ट्र गृह विभाग ने ये जैकेट खरीदे थे, जो घटिया किस्म के थे। खरीदारी में घोटाले का संदेह था। उसी दौर में मनमोहन सिंह सरकार पर भी कई घोटालों का आरोप लग रहा था, जैसे टू-जी, कोयला, हेलीकाप्टर आदि। तब विलासराव देशमुख कांग्रेस मुख्यमंत्री थे। बुलेटप्रूफ जैकेट घोटाला व्यापक था, जिसमें कई कांग्रेसी शरीक थे, पर जाँच नहीं हुई। भाजपायी देवेन्द्र फड़नवीस ने भी पड़ताल नहीं करायी। अब करकरे के प्रारब्ध को पीड़िता साध्वी भावावेश में अपने श्राप का अंजाम कहें तो यह गुस्से के कारण ही कहा जा सकता है।
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मगर आम आदमी के सामने, विशेषकर भोपाल के नागरिक के सामने, मुद्दा है एक युवती का, जो नौ साल से बिना सबूत के जेल में सड़ाई गई, हिन्दू आतंकी करार दी गई। जिसके गेरुआ वस्त्र उतारकर, फ्राक पहना कर उसके अंगों के साथ पुरुष पुलिस वाले खिलवाड़ करते रहे। मूर्छित अवस्था में न जाने क्या-क्या किया? तो यह नारी अस्मिता का सवाल है।
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सुख-सुविधा से लैस ब्रिटिश जेलों में जवाहरलाल नेहरू दस वर्ष रहे। प्रधानमंत्री बन गये। नौ वर्ष अमानवीय कैद में तनहा कोठरी में नृशंस यातना भोगती प्रज्ञा ठाकुर को कम से कम सांसदी तो मिलनी ही चाहिए। सांसद (राज्य सभा) दिग्विजय सिंह को पुरुषोचित शौर्य दिखलाना चाहिए। वह भी राजपूतनुमा।
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निरीह अबला का क्रूर मान मर्दन अब और कितना होगा? भारत की सात जेलों, पुलिस हिरासतों और कैद में तेरह माह (1976) गुजारकर, मैं अपने निजी अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि बड़े से बड़ा क्षत्रिय महाशूर भी गिड़गिड़ाकर पुलिस की हर बात को कबूल कर लेगा। यातना नहीं झेल पायेगा। फिर यह तो साध्वी थी। थोड़ा बर्दाश्त कर पायी होगी, क्योंकि वह प्रज्ञा सिंह ठाकुर है।
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हिन्दू आतंक नहीं, बल्कि आज भोपाल के वोटरों के समक्ष मसला होना चाहिए कि गत सात दशकों में नेहरू-कांग्रेस से राहुल-सोनिया कांग्रेस तक, सभी सरकारों ने अंतर्राष्ट्रीय यातना-विरोधी संधि पर हस्ताक्षर क्यों नहीं किये? हर सभ्य देश इसे मान्य करार बना चुका है। आज भारतीय पुलिस यातना देने में अद्वितीय दक्षता हासिल कर चुकी है। इसीलिए हिरासत में मृत्यु दर घट नहीं रही है।
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अतः भोपाल में चुनावी मुद्दा मानवता से जुड़ा है। अगर दिग्विजय सिंह जीत भी गये तो अपनी मान्यताओं और सिद्धांतों को तजकर। हिंदूवादी बनकर, चोला बदल कर। विचारधारा भी?
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