धर्म से कुछ न भी प्राप्त हो, तब भी धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए

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प्रवचन करते जीयर स्वामी
प्रवचन करते जीयर स्वामी
  • श्री जीयर स्वामी

धर्म से कुछ न भी प्राप्त हो, तब भी धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए। हमें सत्य बोलने से कुछ नहीं मिलता है, फिर भी हम सत्य बोलते हैं तो आत्मशांति मिलती है। हर व्यक्ति सुख की कामना करता है। कोई भी दुख की कामना नहीं करता है। किसी की भी प्रवृत्ति दुख भोगने की नहीं होती है। जो जहां भी रहता है, वहीं उसे सुख की प्राप्ति होती है। लेकिन वह सुख बिना धर्म के प्राप्त नहीं होता। मानव जीवन में धर्म की बहुत बड़ी उपयोगिता है।

अगर पूर्व जन्म, धर्म, सत्कर्म व परलोक के फल पर किसी प्रकार का संदेह हो भी, तब भी धर्म के कर्तव्य का त्याग नहीं करना चाहिए। क्योंकि धर्म हमारे जीवन का वह सिस्टम, आचरण, व्यवहार व नेचुरल गुण है, जिसके द्वारा इस संसार में हमें आत्मशांति व आत्म आनन्द की प्राप्ति होती है। वेद की निंदा करने वाले नास्तिक को भी धर्म का त्याग नहीं करना चाहिये।

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हम मूर्ति की नहीं, मूर्ति में परमात्मा की पूजा करते हैं। नास्तिक लोग कहते हैं कि मूर्ति की पूजा करने से कोई फायदा नहीं होता। मूर्ति की पूजा हम उनसे कुछ लेने के लिए नहीं करते हैं। जिस परमात्मा की सत्ता पूरी दुनिया में है, वह परमात्मा उस मंदिर व मूर्ति में भी है, यह जानकर हम उनकी पूजा करते हैं।

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जब से सृष्टि है, तब से ही मूर्ति व यज्ञ करने की परंपरा है। सतयुग से हीं मूर्ति पूजा व यज्ञ की परम्परा रही है। उन्होंने कहा कि एकलव्य ने तो मूर्ति की पूजा करके उन शक्तियों को प्राप्त कर लिया, जो पांडव द्रोणाचार्य व कृपाचार्य से भी प्राप्त नहीं कर सके। हम मूर्ति के माध्यम से उस परमात्मा को जानने, समझने, मानने व सम्बन्ध स्थापित करने का अधिकार प्राप्त करते हैं। हम अपनी जमीन के दस्तावेज के द्वारा ही तो अधिकार व हक को प्राप्त करते हैं। उन दस्तावेजों पर हम खेती व घर नहीं बना सकते हैं।

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ध्रुव जी महाराज के वंशज राजा पृथु राष्ट्र व समाज के कल्याण के लिये यज्ञ कर रहे थे। शास्त्र की विधि का त्याग करके कोई कितना भी बड़ा पूजा-पाठ या यज्ञ करता है, वह व्यक्ति इस संसार में कितनी भी ऊंचाई पर चढ़ जाये, आत्मकल्याण को प्राप्त नहीं कर पाता है। शास्त्र में यज्ञ अनेक प्रकार के बताए गए हैं। हमें कभी भी हिंसात्मक यज्ञ व पूजा नहीं करने चाहिए। जिस धर्म व पूजा में हिंसा व पूजा की बात आती है, वह धर्म व पूजा कभी कामयाब नहीं होता है। यद्यकिंचित कुछ समय के लिए यज्ञादि व पूजा से कुछ सुकृति व पुण्य प्राप्त हो जायेगा, लेकिन हमारे द्वारा किया गया हिंसात्मक  पूजा-पाठ, धर्म-कर्म का भोग अंततः भोगना पड़ता है। जिन-जिन जीवों की हत्या व हिंसा करते हैं, वे जीव  भी हिंसात्मक पूजा-पाठ करने वाले लोगों की हत्या करने की प्रतीक्षा में लगे रहते हैं। जिस धर्म में  पूजा-पाठ में हिंसा, तामसी चढ़ावे की बात आती है, वैसी हिंसात्मक पूजा धर्म शास्त्र में मानव का कल्याण करने वाली नहीं बतायी गयी है। ऐसे अहिंसात्मक पूजा व यज्ञ के द्वारा शाश्वत शांति व आनन्द की प्राप्ति नहीं होती है। (रोहतास जिले के शिवसागर प्रखंड के रामपुर तेलरी गांव में आयोजित ज्ञान यज्ञ में जीयर स्वामी के प्रवचन के प्रमुख अंश)

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