कम्युनिस्ट भी टोना-टोटका, भविष्यवाणी में भरोसा रखते हैं!

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ज्योतिष की प्रतीकात्मक तस्वीर
ज्योतिष की प्रतीकात्मक तस्वीर

रामेश्वर टांटिया को याद किया है वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ला ने

कम्युनिस्ट भी टोना-टोटका, भविष्यवाणी में भरोसा रखते हैं। वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ला ने रामेश्वर टांटिया को इसी बहाने याद किया है। रामेश्वर टांटिया की एक किताब पढ़ी थी वर्षों पहले। उसमें उन्होंने अपनी जीवन यात्रा के बारे में लिखा है। राजस्थान के किसी इलाके से बाल्यावस्था में ही वे कमाने निकल पड़े थे। असम का धुबड़ी उनका पहला पड़ाव बना। घर की माली हालत के बारे में उन्होंने लिखा था कि घर में पैसे की कमी होने पर उनके पिता किसी साहूकार से कर्ज लेते थे। एक बार साहूकार बीमार पड़ गये तो हालचाल जानने के लिए उनके पिता साहूकार के घर गये। सामने देखते ही उस साहूकार ने मुंह बिचकाते हुए कहा- पैसे नहीं हैं अभी मेरे पास। मैं अब और नहीं दे सकता। रामेश्वर जी के पिता ने बताया कि वे पैसे के लिए नहीं, बल्कि हालचाल जानने आये थे। बाद में वही रामेश्वर लाल टांटिया कलकत्ता (अभी कोलकाता) आ गये और किसी सेठ के यहां काम संभाला। मेहनत का फल मिला और किस्मत ने साथ दिया, वे बाद में बड़े उद्योगपतियों में शुमार हुए। कांग्रेस से भी जुड़े और राज्यसभा भी पहुंचे।

  • शंभूनाथ शुक्ला                
शंभूनाथ शुक्ला
शंभूनाथ शुक्ला

आजादी के कुछ पहले कलकत्ता में जूट के एक बड़े दलाल थे श्री रामेश्वर टाँटिया। आजादी के बाद वे मिनी कलकत्ता यानी कानपुर आ गए और ब्रिटिश इंडिया कॉरपोरेशन (बीआईसी) के चेयरमैन बने। इसी बीआईसी के अंतर्गत लाल इमली, जूता बनाने वाली कंपनी फ़्लेक्स और एलगिन मिल वग़ैरह थीं। नेहरू जी उन्हें राज्यसभा में भी लिया और कांग्रेस से निकटता के चलते वे कानपुर के मेयर भी रहे।

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वे बिड़ला जी (जीडी बिड़ला) के अत्यंत निकट थे। अनेक बार अनेक देशों की यात्राएँ भी उन्होंने कीं, लेकिन वे एंटी कम्युनिज्म खेमे वाले थे, इसलिए सोवियत संघ के प्रति उनके अंदर घोर नफरत थी। अपनी इन यात्राओं पर उन्होंने एक पुस्तक लिखी है- मेरी विश्वयात्रा के संस्मरण! मैने दुनिया के भूगोल को इसी पुस्तक से समझा है।

अपनी मास्को यात्रा के संदर्भ में उन्होंने लिखा है कि पहली बार जब वे मास्को गए, तो अपने एक परिचित के घर रुके। उनके पड़ोस में एक रूसी महिला रहती थी, जिसका बच्चा कुछ रोज़ पहले मर चुका था। वह महिला बहुत उदास और निराश थी। उसे पता चला कि उसके पड़ोसी भारतीय के घर में कोई हिंदुस्तान से आया है, तो उसे लगा कि भारत से आया यह व्यक्ति ज्योतिष जरूर जानता होगा। वह टाँटिया जी के पास आई और अपना हाथ देखने का आग्रह करने लगी।

टाँटिया जी ने लिखा है, कि उन्होंने उसका मन रखने के लिए बोल दिया कि अगले साल उसके बेटा होगा। कोई चार साल बाद जब टाँटिया जी फिर रूस गए और उन्हीं रिश्तेदार के यहाँ रुके, तब वह पड़ोसी रूसी महिला फिर उनके पास आई और बोली, कि उसके बेटा हुआ और अब तीन साल का हो गया है। वह रूसी महिला उनका बहुत आभार व्यक्त करती रही। टाँटिया जी ने लिखा है कि कम्युनिस्ट रूस में आर्थोडेक्स चर्च और उनके अनुयायियों की भावनाओं को कम्युनिस्ट दबा नहीं पाए। चूंकि टाँटिया जी की मृत्यु गोर्बाच्येव के आने के पूर्व हो गई थी, इसलिए वे सोवियत-विघटन को देख नहीं पाए।

दूसरा उदाहरण हमारे मित्र श्री जगदीश्वर चतुर्वेदी का है। वे विवेकवान और भारतीय इतिहास, पुराण की खूब समझ रखने वाले कम्युनिस्ट हैं। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा संस्कृत में हुई और उन्होंने अपने परिवार की परंपरा के अनुरूप ज्योतिष भी पढ़ा था। इसलिए अधिकतर माकपा नेताओं को जब पता चलता है, कि वे ज्योतिष जानते हैं, तो फौरन अपनी गदेली उनके समक्ष कर देते हैं।

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