- महेश खरे
इन दिनों मीडिया में फेक न्यूज की खूब चर्चा हो रही है। फेक न्यूज का मुद्दा सीधे-सीधे मीडिया की विश्वसनीयता से जुड़ा है। जब चुनाव हों तो लोगों की सन्देह दृष्टि मीडिया पर स्वाभाविक रूप से पड़ने लगती है। यह चुनाव काल है। हिंदी पट्टी के प्रमुख राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव की बेला में मीडिया के दुरूपयोग पर चुनाव आयोग और जागरूक मतदाताओं की नजर है।
फेक न्यूज का तात्पर्य झूठी और सोद्देश्य परोसी गई खबरों से है। चुनाव के मौके पर ऐसी सूचनाएं राजनीतिक दलों और भाग्य आजमा रहे उम्मीदवारों के लिए ज्यादा फायदेमंद होती हैं। आज के राजनीतिक परिदृश्य में चूँकि मीडिया की विश्वसनीयता तमाम सारी आलोचनाओं और दाग लगने के बाद अब भी बरकरार समझी जाती है, इसीलिए चुनावी हित में मीडिया के दुरूपयोग के प्रयास तेज और योजनाबद्ध तरीके से शुरू हैं। सोशल मीडिया की व्यापकता को ध्यान में रखते हुए इसके दुरूपयोग की सम्भावनाएं ज्यादा और आसान हैं।
सोशल मीडिया के दुरूपयोग के लिए सुनियोजित कोशिशें चल रही हैं। किसी दल विशेष को लाभ पहुंचाने वाली सूचनाएं परोसने के लिए तंत्र विकसित किये गए हैं, वहीं फेक आईडी बनाकर ऐसी सूचना वायरल की जा रही हैं, जिनसे दल या प्रत्याशी विशेष को लाभ हो। इस पर नियंत्रण पाना मुश्किल नहीं तो आसान भी नहीं है। क्योंकि जब तक ऐसी सूचनाओं का खंडन आता है, तब तक फेक न्यूज हजारों लाखों तक पहुँच चुकी होती है। इस कारण पहले से ही कसौटी पर कसे जा रहे सोशल मीडिया पर अविश्वासनीयता का संकट बढ़ता जा रहा है।
यह भी पढ़ेंः 25% पिछड़ी जातियों का नौकरियों व दाखिलों में 97% पर कब्जा
ऐसे प्रयासों से जहां सतर्क रहने की जरूरत है, वहीं ऐसे तरीके भी खोजने होंगे, ताकि फेक आईडी की वृत्ति पर अंकुश लगाया जा सके।
यह भी पढ़ेंः मो. इलियास हुसैन : जनतंत्र को रखा ठेंगे पर रखा, सबको समझा रियाया!
यह भी पढ़ेंः राम मंदिर पर अध्यादेश आया तो भाजपा से बिदक सकते हैं नीतीश