- फ्लेम के अध्यक्ष डा. ए.ए. हई ने पहले दिन के सम्मेलन की वर्कशाप में की घोषणा, साक्षरता दर में वृद्धि के बाद अब गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए की जायेगी पहल
- दूसरे और तीसरे दिन का सम्मेलन एस.के. मेमोरियल हाल में, बिहार समेत देश भर के 150 टापर बच्चे किये जायेंगे सम्मानित, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर भी की जायेगी चर्चा
पटना। फोरम फार लिटरेसी अवेयरनेस एंड मुस्लिम एडुकेशन (फ्लेम) अंतर्राष्ट्रीय संस्था अमेरिकन फेडरेशन आफ मुस्लिम आफ इंडियन ओरिजन (एएफएमआई-एफमी) की तरह बिहार में हर साल एक सम्मेलन कर बिहार की दसवीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा में सबसे अधिक अंक लाने वाले मुस्लिम छात्र-छात्राओं को मेडल देकर सम्मानित करेगा। यह सम्मान तीन वर्गों प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय श्रेणी के छात्र-छात्राओं को दिया जायेगा। यह घोषणा फ्लेम के अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध सर्जन डा. ए.ए. हई ने शुक्रवार को संस्था द्वारा आयोजित वर्कशाप के उद्घाटन के मौके पर की। फ्लेम ने बिहार सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के साथ मिल कर यूनीसेफ और यूएनएफपीए के सहयोग से इस कार्यशाला का आयोजन किया था। बिहार सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के प्रधान सचिव अमीर सुबहानी ने कहा कि बिहार सरकार अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए कई योजनाएं चला रही हैं। हर जिले में एक आवासीय विद्यालय खोला जा रहा है। मदरसों के भवनों के निर्माण का काम चल रहा है।
डा. हई ने कहा कि जब हम लोगों ने 1996 में एफमी का पांचवां सम्मेलन बिहार में कराया था, उस समय बिहार के मुस्लिमों में शिक्षा दर मात्र 30 प्रतिशत थी। तब हमने मुस्लिम बच्चे-बच्चियों में साक्षरता दर बढ़ाने के लिए फ्लेम संस्था का गठन किया। तब से यह संस्था मुस्लिम बच्चे-बच्चियों की साक्षरता दर बढ़ाने के लिए काम कर रही है। अब हम लोग मुस्लिम बच्चों की शिक्षा, उनके उत्थान तथा महिलाओं के सशक्तीकरण पर भी काम कर रहे हैं।
यूएनएफपीए के मो. नदीम नूर ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि बिहार में साक्षरता की दर अवश्य बढ़ी है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या है कि मुस्लिम बच्चे-बच्चियां 10वीं कक्षा के पहले पढ़ाई छोड़ देते हैं। इससे इस समुदाय की आर्थिक वृद्धि में गिरावट आती है। बिहार में अभी मुस्लिम की प्रति व्यक्ति आय दर 839 रुपये है, जबकि अन्य की आय इनसे कहीं ज्यादा 12 फीसदी है। अब समय आ गया कि साक्षरता का मुद्दा छोड़ कर हम गुणवत्र्तापूर्ण शिक्षा पर जोर दें, ताकि वे नौकरी या व्यवसाय में जाएं और प्रति व्यक्ति आय बढ़े।
यूनीसेफ के असदुर रहमान ने कहा कि सभी मुस्लिम बच्चे-बच्चियों को विकास का समान अवसर मिलना चाहिए। बिना भेदभाव के इनका विकास होना चाहिए। इसके अलावा दिव्यांग बच्चों को भी विकास में भागीदार बनाना चाहिए। छात्राओं की शिक्षा आर्थिक विकास के लिए जरूरी है। इन छात्र-छात्राओं की शिक्षा पर काम कर रही संस्थाओं को सरकार से अनुदान मांगना चाहिए, ताकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का प्रचार-प्रसार हो सके।
डीआरडी, यूएनएफपीए के वेंकटेश श्रीनिवास ने कहा कि मदरसा के पाठ्यक्रम में सुधार लाने की जरूरत है। जामिया मीलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय जैसी संस्थाओं से मिल कर मदरसा के पाठ्यक्रम में सुधार लाना चाहिए। तभी मुस्लिम बच्चे-बच्चियां आज की गला काट प्रतियोगिताओं में अपना स्थान सुनिश्चित कर पायेंगे।
बिहार सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के प्रधान सचिव अमीर सुबहानी ने कहा कि अब मदरसों को अनुदान देने की भी योजना है। अल्पसंख्यक बच्चों के लिए छात्रवृत्ति दी जा रही है, लेकिन मैट्रिक के बाद छात्रवृत्ति की संख्या कम हो जाती है। इस पर भी सरकार विचार कर रही है कि छात्रवृत्ति की कुल राशि बढ़ायी जाए। वक्फ बोर्ड की जमीन पर कामर्शियल काम्प्लेक्स, विवाह भवन बनाने की योजना है, ताकि किराये से मिली रकम को अल्संख्यकों के कल्याण कार्यक्रम पर खर्च किया जा सके। उन्होंने कहा कि हज भवन में इनके कल्याण के लिए कोचिंग स्कीम चलायी जा रही है। वक्फ बोर्ड अभी 34 आवासीय हास्टल भी चला रहा है।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति लेफ्टीनेंट जेनरल जमीर उद्दीन शाह ने फ्लेम के द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों की सराहना की। उन्होंने कहा कि सरकार जब तक अल्पसंख्यकों की भागीदारी सुनिश्चित नहीं करेगी, तब तक देश का सम्पूर्ण विकास नहीं हो पायेगा। मुस्लिम समुदाय के विकास के लिए अच्छी शिक्षा की जरूरत है। इसके अलावा कौशल विकास का भी कार्यक्रम चलाना होगा। मुस्लिम समुदाय को भी अपने बलबूते अच्छे स्कूलों तथा कालेजों की स्थापना करनी चाहिए, ताकि उनके बच्चे-बच्चियां भी राज्य और देश की प्रतियोगिता परीक्षा में क्वालीफाई कर सकें। समुदाय के उत्थान के जिम्मेवारी सरकार के अलावा समुदाय पर भी निर्भर है।
एफमी के फाउंडर ट्रस्टी डा. ए.एस. नाकादार ने कहा कि जब एफमी की स्थापना 1989 में की गयी, तब भारत में मुस्लिमों की शिक्षा दर मात्र 30 फीसदी थी। एफमी के लगातार प्रयास के बाद 2001 की जनगणना में यह दर 42 फीसदी हुई। 2011 में यह दर 62 फीसदी तक पहुंची। अभी पूरे देश में साक्षरता दर 70 फीसदी है। एफमी 10वीं और 12वीं के राज्य बोर्ड परीक्षा के देश के प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय स्थान पाने वाले छात्र-छात्राओं को अपने सम्मेलन में मेडल देकर सम्मानित करती है। अब एफमी मुस्लिम बच्चे बच्चियों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर काम कर रही है। निकट भविष्य में शिक्षण संस्थान भी खोलने का विचार है।
एफमी के वर्तमान अध्यक्ष मो. कुतुबद्दीन ने कहा कि हम लोग मुस्लिम समुदाय में साक्षरता बढ़ाने तथा सामाजिक जागरूकता लाने का प्रयास कर रहे हैं और हम अपने लक्ष्य में आगे बढ़ते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि दूसरे समुदायों में चल रहे कार्यक्रमों पर हम गौर करेंगे और यदि हमारे लिए वह फायदेमन्द निकला तो हम उसे अपनाने का प्रयास भी करेंगे। एफमी के होनेवाले अगले अध्यक्ष शिराज ठकोर ने कहा कि हम अपने मातृभूमि की सेवा करने के लिए हर साल यहां आते हैं। एफमी का अगला सम्मेलन ओडिशा में होगा।
प्रमुख शिक्षाविद् फरहत हसन ने महिलाओं के सशक्तीकरण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि महिलाएं अगर शिक्षित होंगी तो उनकी निगरानी में बच्चे अच्छा करेंगे और ये बच्चे अपने समुदाय के अन्य बच्चों को भी शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित करेंगे।
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आयोजन समिति के सचिव खुर्शीद अहमद ने कहा कि फ्लेम द्वारा आयोजित कार्यशाला में कई काम की बातें निकलकर सामने आयी हैं जिसका एक रोडमैप तैयार किया जायेगा। मुस्लिम बच्चे-बच्चियों की शिक्षा के लिए यह रोडमैप अहम होगा। फ्लेम इस रोडमैप पर काम करेगा ताकि बिहार के बच्चे-बच्चियां राज्य और देश की प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफल होकर आनेवाली पीढ़ी के लिए नजीर बन सकें। इस मौके पर आईपीएस जे. के. सिन्हा, मोतिउर रहमान, कवियित्री जाकिया मसहदी, मौलाना अनिसुर रहमान, मैग्सेसे अवार्ड विजेता अंशुल गुप्ता, परिवर्तन की सेतिका सिंह और हाफिज मो. शाहबाज को मेडल देकर सम्मानित किया गया।
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