बापू आपको काठियावाड़ी ड्रेस में ट्रेन के डिब्बे से बापूधाम मोतिहारी स्टेशन पर उतरते देखना सुखद लगा। लगा जैसे इतिहास खुद को दुहरा रहा हो। आपके सौ साल पहले चंपारण आने की परिघटना को शासन द्वारा प्रतीकात्मक रूप में जमीन पर उतारने की कोशिश की गयी है। इसकी जितनी सराहना की जाए कम है। लेकिन आपका सिर काठियावाड़ी पगड़ी की जगह भगवा कपड़े से लपेटा जाना थोड़ा आश्चर्यजनक लगा। पड़ताल किया तो पता चला कि शासन आपके तीन बंदरों वाले फार्मूले को आप पर ही आजमाने को आमादा है। इस भगवा पट्टी के द्वारा इस बात का मुकम्मल इंतजाम किया गया है कि आप देख, सुन व बोल नहीं सकें। यकीन मानिए भले ही गोरे चले गए लेकिन हमारी सरकार भी आपसे कम नही डरती है। उन्हें भय है कि एक सदी बाद का संच कहीं आपके समक्ष उजागर न हो जाये, क्योंकि इस भगवा पट्टी के बाहर की दुनिया मे सिर्फ आपके नाम पर मेला लगाने व आपकी यादों को संजोने की कोशिश जरूर हुई है। आपके राह पर चलने की फुरसत किसी को नही है अब।
शासन-प्रशासन,नेता-अभिनेता व आम आवाम सभी आपके नाम से बज रही दुंदुभि के मजे ले रहे हैं, अभिभूत हैं। खासकर मोतिहारी स्टेशन का लुक बदलने से सभी लोग खुश हैं। प्लेटफॉर्म संख्या एक से निकलते ही स्टेशन परिसर में उस ट्रेन के तीसरे दर्जे वाली डब्बे की प्रतिकृति बनाई गई है, जिसमें सवार होकर सौ साल पहले आप चंपारण आये थे। लेकिन इससे उतरते वक्त शासन ने आपके आंखों पर इसलिये पट्टी बांध रखी है कि आप गाँधीमय हो चुके स्टेशन से बाहर की दुनिया नहीं देख सकें। अगर पट्टी के बाहर जोर देकर भी कुछ देखना चाहें तो भगवा ही दिखाई दे। अगर यह पट्टी उतर गई तो सबसे पहले आपके प्राणरक्षक के साथ स्टेशन परिसर में हुई नाइंसाफी आपको व्यथित करेगा। अंग्रेजों के जहर से आपके प्राणों की रक्षा करनेवाले बत्तख मियां के नाम पर बने मुख्यद्वार से उनका नाम शासन ने हटवा दिया है।
एक सदी पहले आपको चंपारण के किसान-मजदूरों की समस्या से लड़ने के लिए आना पड़ा था। आपने किसानों की समस्या हल करने के साथ इस इलाके में स्वास्थ्य, शिक्षा व स्वच्छता के लिये काम किया। लेकिन इस दफे हमारे तारणहार को इसलिये आना पड़ा कि हमे सत्याग्रही के बजाय स्वच्छाग्रही बना सके। गोया जैसे किसानों की सारी समस्याएं स्वतः समाप्त हो गयी है और अब उनके हिस्से में स्वच्छ्ता के अलावा कोई और काम रह ही नही गया हो। संच पूछिये तो भूखे पेट स्वच्छ्ता का जाप जले पर नमक छिड़कने जैसा ही लगा। पूरे मंचन में कभी-कभी तो ऐसा भान हुआ कि सौ साल पहले आप भी चंपारण में सिर्फ स्वछता का पैगाम देने आए थे और सौ साल बाद आपके द्वारा भेजे गुजराती देवदूत भी आपका वहीं संदेशा लेकर आये हैं। देशभर से हजारो स्वच्छाग्रही जुटे हैं। कोई सरकारी तर-माल की स्वच्छ्ता कर रहा है तो कोई इसके एवज में सरकार से नौकरियां मांग रहा है। स्वछता जारी है। सरकारी खाजाने से दो सौ करोड़ से अधिक की राशि आपके नाम पर साफ कर दी गयी है। कहते हैं कि आपको सफाई बहुत पसंद थी तो सरकार खजाने से ही अमल शुरू कर चुकी है।
बात चंपारण सत्याग्रह पर हो रही है तो आपको बता देना जरूरी होगा बापू कि आपके समय से भी बद्दतर हालत आज चंपारण के किसानों की है। एक मात्र नकदी फसल गन्ने की खेती किसानों ने इसलिये छोड़ दिया है कि चंपारण की तीन मिलें बंद पड़ी है। किसान-मजदूरों के बकाया को हड़पने के बाद मिल मालिकान की गिद्धदृष्टि अब मिल की जमीन बेचने की है। चकिया चीनी मिल का चोर मालिक तो समूचा मिल ही बेंच चुका है। उसके ईमारत की लोहा व लकड़ियां तक बेंचने के बाद अब जमीन बेंच रहा है। मोतिहारी मिल भी शासन-प्रशासन से कदमताल करते हुए अंधाधुंध जमीन बेंचने में लगा हुआ है। पिछले वर्ष बकाये भुगतान के लिए लंबे संघर्ष से आजिज आ चुके दो मजदूरों ने आत्मदाह कर लिया। सिस्टम की चकरघिन्नी में पिसते हुए इनलोगों ने आत्मदाह के लिए ठीक 10 अप्रैल को चुना। इसी दिन ठीक 100 साल पहले चंपारण आने के लिये आपके कदम बिहार की धरती पर पड़े थे। आपके देवदूत भी इनकी शहादत के ठीक एक वर्ष बाद 10 अप्रैल को ही मोतिहारी पहुंचे, लेकिन वे इन शहीद मजदूरों के विलाप करते परिजनों की सुधि लेने की बात तो दूर अपने संबोधन में उनकी चर्चा तक नही की। ठीक ही है बापू कि आपके आंखों पर पट्टी थी वरना किसान-मजदूरों की हालत देखकर आपकी आत्मा फट गई होती। बहरहाल शासन-प्रशासन से इतर उम्मीद की आखिरी किरण आप ही है। आपके विराट व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर और परिस्थितियों के दबाव से निर्मित छोटे-छोटे गांधी ही हमारी हर छोटी-बड़ी समस्याओं से जूझेंगे व उसका हल भी निकालेंगे।
- कुणाल प्रताप सिंह