गणेश शंकर विद्यार्थी ने कबीरी ढंग से लिखा था, “अजां देने, शंख बजाने, नाक दबाने और नमाज पढ़ने का नाम धर्म नहीं है। शुद्धाचरण और सदाचार ही धर्म के स्पष्ट चिह्न हैं।
गांधी जी की धर्म-धारणा का समर्थन करते गणेश शंकर विद्यार्थी ने कबीरी ढंग से लिखा था, “अजां देने, शंख बजाने, नाक दबाने और नमाज पढ़ने का नाम धर्म नहीं है। शुद्धाचरण और सदाचार ही धर्म के स्पष्ट चिह्न हैं। दो घंटे तक बैठकर पूजा कीजिए और पांच वक्त नमाज भी अदा कीजिए, परंतु ईश्वर को इस प्रकार की रिश्वत दे चुकने के पश्चात यदि आप अपने को दिन भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ पहुंचाने के लिए आजाद समझते हैं, तो इस धर्म को, अब आगे आने वाला समय कदापि नहीं टिकने नहीं देगा। अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगा।
सबके कल्याण की दृष्टि से, आपको अपने आचरण को सुधारना पड़ेगा, और यदि आप अपने आचरण को नहीं सुधारेंगे, तो नमाज और रोजे, पूजा और गायत्री आपको देश के अन्य लोगों की आजादी को रौंदने और देश भर में उत्पातों का कीचड़ उछालने के लिए आजाद न छोड़ सकेंगी। ऐसे धार्मिक और दीनदार आदमियों से, तो वे ला-मजहब और नास्तिक आदमी कहीं अधिक अच्छे और ऊंचे हैं, जो दूसरों से सुख-दुख का ख्याल रखते हैं और जो मूर्खों को किसी स्वार्थ सिद्धि के लिए उकसाना बहुत बुरा समझते हैं।
ईश्वर इन नास्तिकों और ला-मजहब लोगों को अधिक प्यार करेगा, और वह अपने पवित्र नाम पर अपवित्र काम करने वाले से यह कहना पसंद करेगा, ‘मुझे मानो या ना मानो, तुम्हारे मानने से ही मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो।”
26 अक्टूबर 1924 के “प्रताप” में प्रकाशित गणेश शंकर विद्यार्थी के “धर्म की आड़” शीर्षक अग्रलेख का यह अंश है। डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र की पुस्तक “गणेश शंकर विद्यार्थी” के पृष्ठ संख्या 79 पर प्रकाशित यह अंश आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना उस वक्त था।
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