प्यार में तोरे उड़े चुनरिया’ की हिरोइन गुंजन पंत को भा गया बिहार

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भोजपुरी के सुपरस्टार अभिनेत्री गुंजन पंत की सिने यात्रा की कहानी उनकी जुबानी

मैं उत्तरांचल की रहनेवाली हूँ लेकिन मेरी परवरिश हुई है भोपाल (म.प्र.) में, जबकि मेरा कर्मक्षेत्र बन गया मुंबई। कभी सोचा नहीं था कि एक्ट्रेस बनूँगी। डॉक्टर बनना चाहती थी, हार्ट स्पेशलिस्ट (कार्डियोलॉजिस्ट), लेकिन नसीब मेरा मुझे दर्शकों का दिल चुराने फिल्म इंडस्ट्री में ले आया। तब डांस का बहुत रुझान था तो स्कूल-कॉलेज के कार्यक्रम में अक्सर हिस्सा लिया करती थी। बहुत सारे कल्चरल एक्टिविटीज में पार्टिशिपेट किया करती थी, मगर ये सब कुछ शौकिया था।एक बार मैं एक शो करने बाहर गयी तो उन लोगों को मेरा काम अच्छा लगा। उन्होंने वीनस कम्पनी का म्यूजिक वीडिओ ऑफर कर दिया। मैंने ऑडिशन दिया और सेलेक्ट होने के बाद मेरी पहली शूटिंग वीनस के एलबम के साथ हुई। एलबम से थोड़ा एक्टिंग की तरफ इंट्रेस्ट आने लगा, लेकिन फिर भी म्यूजिक वीडियो में काम करना अलग होता है और सीरियल-मूवी में काम करना अलग होता है। क्यूँकि उसमें डायलॉग डिलीवरी वगैरह होता है।

फिर मुझे सुनील अग्निहोत्री जी का दूरदर्शन का एक सीरियल ऑफर हुआ- ‘जिंदगी एक सफर’ तो मैंने वो किया। उसके बाद बालाजी का ‘करम अपना-अपना’, परीक्षित साहनी जी का सीरियल ‘कल्पना’, ‘सावधान इण्डिया’ जैसे कई सारे सीरियल्स किये। सीरियल की बात करूँ तो ‘जिंदगी एक सफर’ का कॉन्सेप्ट सामाजिक मुद्दों पर आधारित था। उसमें कई अलग-अलग ट्रैक चलते थे और मेरे वाले ट्रैक में मैं लीड रोल कर रही थी। बिंदु दारा सिंह मेरे बड़े भाई बने थे। उसमें मुझे कुछ डिफरेंट करने को मिला था। वैसे सच कहूं तो शुरुआत से ही मुझे बहुत सारे बड़े-बड़े प्रोजेक्ट नहीं मिले, बल्कि बहुत ही हार्डवर्क कर के स्टेप-बाइ-स्टेप मैं आगे बढ़ी हूँ।

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तब ना मैं भोजपुरी बोल पाती थी और न ये जानती थी कि भोजपुरी फिल्में भी होती हैं। जब मुझे एक फिल्म में फाइनल किया गया तो खुश हुई कि चलो अब मैं हिंदी फिल्म करने वाली हूँ। तभी डायरेक्टर ने अचानक से बोला- “बेटा, तुम अच्छे से भोजपुरी कर लोगी।” यह सुन कर मैं तो हिल गयी कि ये क्या मिल गया मुझे। फिर मैंने तुरंत मना कर दिया कि “मैं काम नहीं करुँगी, मुझे भोजपुरी नहीं आती.” तब भी वे चाहते थे कि उनकी फिल्म में मैं ही काम करूँ क्योंकि उस कैरेक्टर में मैं ही शूट हो रही थी। उन्होंने मुझे बोला- “आप स्क्रिप्ट लेकर जाओ तैयारी करो और आप हमारी फिल्म करेंगी।” तब मैंने भी बोल दिया- “ठीक है” फिर उस फिल्म की तैयारी में जुट गयी। हालाँकि वह फिल्म ‘पिरितिया के डोर’ बन ही नहीं पायी, लेकिन तब तक भोजपुरी मुझे आ गयी थी, क्योकि मैंने खूब रिहर्सल किया था।

उसके बाद पहली भोजपुरी फिल्म की ‘प्यार में तोरे उड़े चुनरिया’, उसी दौरान कई और भी भोजपुरी फिल्मों के ऑफर मिलने लगे। ‘प्यार में तोरे उड़े चुनरिया’ के डायरेक्टर थे जगदीश सिंह। हीरो नया लड़का था। फिल्म की शूटिंग के लिए हम लोग मुंबई से बिहार के हाजीपुर, महुआ गए। तब मेरा बिहार आना पहली बार हो रहा था और मैं बहुत डरी हुई थी, क्योंकि  उन दिनों बिहार के बारे में कई निगेटिव बातें सुन रखी थीं कि ऐसा है, वैसा है। लेकिन जब तक आप कोई चीज को देख-जान न लो, वह समझ में नहीं आती है।

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जब मैं शूटिंग के लिए बिहार आयी तो देखा कि ऐसा तो कुछ भी नहीं है जैसा हौवा बना दिया गया है, जिससे लोगों को लगता है कि बहुत ही डिफिकल्ट है बिहार जाना, लेकिन वहां तो लोग बहुत ही अच्छे हैं, बहुत प्यार देते हैं, बहुत कॉपरेट करते हैं। मुझे तो बिहार बहुत अच्छा लगा और उसके बाद से तो मैं कितनी फिल्मों में बिहार आई। पहली भोजपुरी फिल्म के वक़्त काफी गर्मी में हम शूटिंग कर रहे थे। बिहार के खेत मुझे बहुत अच्छे लगे और वहां जो केरियां (कच्चे आम) लगती हैं. बड़ी-बड़ी सी तो हम लोग जहाँ पर शूटिंग करते थे, वहां खूब सारा तोड़कर खाना होता था। पहली शूटिंग में मैंने पूरे गांव को इंज्वाय किया था, उसको एक्सपीरियंस किया मुझे अच्छा लगा।

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पहली बार मैंने उसी फिल्म में एक्शन किया था। बाइक चलाना, फाइट करना, वगैरह सारे एक्शन किये थे। बाइक चलानी तो थोड़ी आती थी मुझे, क्योंकि जब मैं भोपाल रहती थी, वहां एक-दो बार चला चुकी थी। उसमें तो प्रॉब्लम नहीं हुई, लेकिन फाइटवाले एक्शन सीक्वेंस करना थोड़ा डिफिकल्ट था, लेकिन वह भी अच्छे से हो गया।

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