बुढ़उती, भोजपुरी और गांधी जी के बारे में कृष्ण बिहारी मिश्र की बेबाक बतकही
- निराला
केहू कहल कि भोजपुरी आठवां अनुसूची में शामिल हो जाई तो हिंदी के कमर टूट जाई। हम कहनी कि जब हिंदी के कमर एतना नाजुक बा, त ओकरा टूटिये जाये में भलाई बा।…यह कहना है कोलकाता की एक साहित्यिक कुटिया में विराजने वाले साहित्यकार व पद्म पुरस्कार प्राप्त कृष्ण बिहारी मिश्र का। उनसे मिल-बतिया कर निराला ने अपने फेसबुक वाल पर एक पोस्ट डाला है।
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उन्होंने लिखा है- अपने बेहद प्रिय, आत्मीय, आदरणीय कलकत्तावाले कृष्ण बिहारीजी से अभी-अभी बात हुई। किसी विषय पर फंसने पर, द्वंद्व-दुविधा होने पर या कि किसी विषय को लेकर नैराश्य भाव आने पर कुछ लोगों को मार्गदर्शक के साथ ही ऊर्जा का केंद्र बना कर रखे हैं जिंदगी में। उनसे बतिया लेते हैं तो द्वंद्व-दुविधा खत्म होने के साथ ही आगे के लिए उर्जा मिल जाती है। कृष्ण बिहारीजी को हालचाल के लिए फोन किया था। ऐसे लोगों को हालचाल के लिए भी फोन करते हैं आप तो ढेरों बात हो जाती है। जो बातें हुई, वह नीचे है-
बुढ़उती नू आ गइल बा हो निराला। बुढ़उती तो ससुरा ढेरे दिन से आइल रहे, बाकिर हावी ना होवे देत रहनी। अब हावी होखे लागल बा। लड़ाई चल रहल बा बुढ़उती से। रोग-बेयाध के त हरवले बानी, नइखी फटके देत अपना लगवा, बाकिर अंखिया के रोशनी कमजोराह हो गइल बा। अउर रोशनिया नइखे त पढ़ नइखीं पावत। अउर पढ़ नइखीं पावत तो बूझs कि धर्मविहीन जिनगी गुजर रहल बा। धरम से जब आदमी कट जाव त ओकर जीयल, मरले बराबर बूझs! हमनी के धरम पढ़ले-लिखल नू ह। बुझलs नू।
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जानत बाड़s, कुछ दिन पहिलवा तू लोगिन जवन हिंदी-भोजपुरी के बतिया करत रहलs जा त खबरिया हमरा लगे आवत रहे। हमरा लगे कलकता के एगो प्रोफेसर अइले। एक जना के चिट्ठी देखनी, जे लिखले रहले कि भोजपुरी अगर आठवां अनुसूची में शामिल हो जाई त हिंदी के कमर टूट जाई। हम कहनी कि ए मरदवा, जब हिंदी के कमर एतना नाजुक बा तो ओकरा टूटिये जाये में नू भलाई बा।
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एक से एक विद्वान लोग पनप गइल बा हिंदी में अउरी उहे रोग भोजपुरी के लाग गइल बा। बुरा जन मनिहs, बाकिर कुछ के छोड़ दs जवन भोजपुरी के नाम पर आंदोलन अउरी का-का चलावत बा लोग, ओहनी के भोजपुरी से मतलब नइखे। आपन खेला में लागल बाड़े सन। भोजपुरी के चिंता रहित त बतावs कि आज गांवों में बढ़िया भोजपुरी गीत नइखे बाजत। जवन गीत-गाना बन रहल बा, उ का बन रहल बा, के नइखे जानत। खाली संविधान के आठवीं अनुसूची रटला से होखी कि भोजपुरी के गीतन के दुनिया, जे ओह भाषा के एगो मजबूत आधार ह, ओकरो के लेके कुछ करे के चाहीं, आवाज उठावे के चाहीं। देखबs कि जवन मय भोजपुरी गीतन के दुनिया के नाश करत बाड़े सन, ओकरे संगे लोग फोटो खिंचवावत रही, ओकरे के बोलावत रही अउरी फेरू तुरंत सांझी खा छाती पीटी- आहि रे दादा, आठवीं अनुसूची में ना आइल अब ले हो दादा। तमासा करत बाड़े सन।
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गांधीजी पर तोहरा से बतकही होखी। अभी तनी फोफिया बाझ रहल बा गला के। कहनी हां ना, बुढ़उतिया हमरा से लड़ के हमरा के अपना आगोश में लेबे चाहत बा, हमरा से जीतल चाहत बा, बाकिर हमहूं डटल बानी। बतियाइब गांधीजी पर। मय जगह त गांधी के नाम पर तमाशा शुरू होइये गइल बा। जोर-जोर से बोलल जात बा गांधी के बारे में, गांधी के नाम ले के। मुरुख हवन सन। बुरबकाह। गांधी के सुनले बाड़s कि ना कबो टेप में। सुनिहs। गांधी मातृभाषा अउरी हिंदी के पकिया समर्थक रहले। हिंदी जीवन भर सीखत रह गइले। बढ़िया से बोल ना पावत रहले, बाकिर हिंदी बोले के हमेशा कोशिश करत रहले।
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बढ़िया वक्ता ना रहले गांधी। बढ़िया से बोल ना पावत रहले। कम बोलत रहले, बाकिर उनकर बोलला के असर ना नू रहे हो। चरित्र के, कर्म के असर रहे कि कवनो तरीका से तनिका बोल देत रहले त करोड़न लोग सुन लेत रहे, समझ लेत रहे, फॉलो करे लागत रहे। अउरी अब गांधी के नाम पर देखs कि का हो रहल बा। चिल्ला-चिल्ला के बोलत बाड़े सन। एयर कंडिशन से फ्रेश होके जात बाड़े सन अउरी लागत बा कि मंचे पर चिल्ला के फाड़ दिहन सन धरती के। तमाशा ना ह त का ह हो! वक्ता मंच पर कुछ अउरी बोलेला, अउरी मंच से उतरते जीवन में दोसर व्यवहार राखेला। अब साल भर अइसनके गांधी पर बोलिहन सन। चानी कटिहें सन गान्ही के नाम पर। जाये द, बाद में बतियाइब। गाला बाझ गइल बा।
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