- मिथिलेश कुमार सिंह
साधो! हम इस देश के नागरिक नहीं हैं। होते तो वोट जरूर करते। कुछ नहीं होता तो ‘नोटा’ बटन ही दबा देते। कह देते, हमें कोई पसंद नहीं। 2019 के आम चुनाव में हम ऐसा कुछ नहीं कर पाएंगे। वर्ष 2008 से हम दिल्ली में हैं। एक बार वोट करने का मौका भी मिल चुका है। किसको वोट दिया, अब यह बताने का कोई तुक नहीं है और आपकी इसमें दिलचस्पी भी नहीं होनी चाहिए। ख़ैर साहब। जब वोट किया, तब दिल्ली के किसी और इलाके में हुआ करते थे हम। अब जब इलाका बदला तो आधार कार्ड में पता चेंज कराओ। वोटर लिस्ट में पता चेंज कराओ। बैंक पासबुक में पता बदलवाओ। और सब तो हो गया, लेकिन वोटर आईडी का झाम फंसा रह गया।
हुआ यूं कि मेट्रो के किसी स्टेशन पर किसी जेबकतरे ने वह सफाई दिखाई कि हम भौचक रह गये। पट्ठे ने बटुआ पार कर दिया। साथ में मोबाइल भी। मोबाइल पार करने का यह कोई पहला वाकया नहीं था। शायद पांचवां या छठा हो। वह भी तब जब तीसरे मोबाइल गर्भपात के बाद से ही सख्त चेतावनी पीछे पीछे घूम रही थी कि आइंदा ऐसा हुआ तो घर न लौटना। लौटे। तब भी हम घर लौटे। मोबाइल से ज्यादा चिंता पर्स में रखे वोटर आईडी की साल रही थी क्योंकि चुनाव तारीखों का एलान होने वाला था और यह लगभग तय हो गया था कि हम अलल एलान किसको वोट करने जा रहे हैं।
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हमने देखा नहीं साधो लेकिन सुना जरूर है कि अमेरिका में सीआईए हेडक्वार्टर की दीवारों पर एक बड़ी ही मशहूरो मारूफ आयत दर्ज है। लिखा है: तुम सच को जान लोगे और सच तुम्हें जीवित छोड़ देगा? सो सच ने, हमारे एलानिया बयान ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा। समय समय पर सूचनाएं मिलती रहीं कि हमारे नये रिहायशी इलाके में अमुक अमुक जगहों पर कैंप लग रहे हैं जहां मतदाता की हर परेशानी का निदान होना है, चाहे वह पता चेंज कराने का मामला हो या नाम में गड़बड़ी को ठीक कराने या वल्दियत सुधरवाने का। हमने हर जगह मत्था टेका। सबसे कहा कि दिक्कत क्या है। सबके हाथ-पैर जोड़े कि पुराना वाला वोटर कार्ड गुम हो गया है, यह रही गुमशुदगी की आनलाइन रिपोर्ट। कुछ नहीं हुआ।
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हर जगह टका सा जवाब- पुराना वाला ले कर आइए। सो, हमने मान लिया कि हम वोटर नहीं रहे। हमारी नागरिकता संदिग्ध है। इस देश के किसी भी नेशनल रजिस्टर में हमारा नाम नहीं है। नाम था जो कट गया। इसलिए कट गया क्योंकि हम हर बदहजमी का इलाज पानी पीकर भरपेट गलियाने में ढूंढ रहे थे और दैव शक्तियों का पूरा जोर इस बात पर था कि इस बार निपटा देना है हम जैसों को क्योंकि दाद-खाज-खुजली जैसी ये पोशीदा ताकतें मौका मिलते ही बेपर्द कर देती हैं।
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भीड़ हो चाहे अकेलापन, इनसे किसी भी किस्म की बावस्तगी भयानक छुतहर बीमारी को दावत देने जैसी है। ना बाबा ना। इन्हें खल्लास करो। सो, उन्होंने कर दिया। अब हम वोट नहीं करेंगे लेकिन लोगों को यह जरूर बताएंगे कि हमें वोट क्यों नहीं डालने दिया जा रहा। रोक सको तो रोक लो। गोली मरवा दो, जेल में डाल दो, सर कलम कर चौराहे पर टांग दो लेकिन हम बोलेंगे। बोलेंगे कि ऐसा क्यों हो रहा है, बोलेंगे, इसलिए बोलेंगे क्योंकि यह मुर्दों का गांव नहीं है साधो। यह रागदरबारियों का गांव नहीं है। यह गांव है अपने हक्कोहुकूक से बेपनाह मोहब्बत करने वालों का, उनकी हिफाजत के लिए जीने-मरने वालों का। हम लड़ेंगे, उस सुबह के लिए जिसका आना अभी बाकी है। साधो, हमारी लाज रखना। हम लौटें, न लौटें- हमारा इंतजार मत करना…..। उन्होंने मोरचा जीता है, हम जंग जीतेंगे।
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