- नवीन शर्मा
ओलंपिक में भारत को पहला मेडल दिलाने वाले नार्मन प्रिचार्ड थे। अंग्रेजों ने भले भारत पर बेइंतहा जुल्म ढाये, पर अंग्रेज ने ही यह गौरव दिलाया। वैसे तो अंग्रेजों ने हमारे देश और यहां के लोगों पर इतना जुल्म किया है और आर्थिक शोषण किया है कि वह दिल दहलाने वाली दास्तान है। खैर, उस पर बात फिर कभी। आज हम ऐसे अंग्रेज के बारे में बता रहे हैं, जिसने भारत के खेल के इतिहास में यादगार योगदान किया था। उसके लिए हमें उन्हें याद करना चाहिए। मैं बात कर रहा हूं ओलंपिक खेलों के इतिहास में भारत के लिए व्यक्तिगत वर्ग में पहला पदक दिलाने वाले शख्स की। ये जनाब थे नार्मन प्रिचार्ड। हां, इन साहब की एक और दिलचस्प बात यह है कि ये जनाब आगे चलकर एक हॉलीवुड के एक्टर भी बने।
भारत ने पेरिस ओलंपिक में 1900 में ब्रिटिश झंडे के तले पहली बार हिस्सा लिया था, जिसमें भारत के खाते में दो सिल्वर मेडल आए थे। ये दोनों ही मेडल एथलेटिक्स में नॉर्मन प्रिचार्ड ने दिलाए थे। प्रिचार्ड ने 200 मीटर हर्डल और 200 मीटर में ये मेडल जीते थे। वह ओलंपिक में मेडल जीतने वाले पहले भारतीय होने के साथ-साथ पहले एशियाई भी थे। हालांकि प्रिचार्ड द्वारा जीते गए मेडल्स को भारत के मेडल में गिना जाएं या नहीं इस पर काफी विवाद रहा था।
साल 2004 में इंटरनेशनल एथलेटिक्स एसोसिएशन ने प्रिचार्ड को ब्रिटिश बताया था, लेकिन इंटरनेशनल एथलेटिक्स एसोसिएशन के बाद अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने अपने रिकॉर्ड में प्रिचार्ड को भारतीय बताया। यही नहीं, प्रिचार्ड द्वारा जीते गए दोनों सिल्वर मेडल्स भारत के नाम पर ही दर्ज हैं। ऐसे में ये पुख्ता हो जाता है कि ओलंपिक में मेडल जीतने वाले नॉर्मन प्रिचार्ड ही पहले भारतीय एथलीट थे।
नॉर्मन प्रिचार्ड का जन्म 23 जून 1877 को कोलकाता (उस वक्त के कलकत्ता) में जॉर्ज पीटरसन प्रिचार्ड और हेलेन मेनार्ड प्रिचर्ड के घर में हुआ था। कलकत्ता रजिस्टर के रिकॉर्ड के मुताबिक, नॉर्मन के पिता अलीपुर में अकाउंटेट थे। नॉर्मन को बचपन से ही खेल-कूद का काफी शौक था और वह कोलकाता में आयोजित फुटबॉल और एथलेटिक्स के कई बड़े टूर्नामेंट में भाग लेते थे। यहीं नहीं नॉर्मन ने 1894 से 1900 के बीच लगातार 7 बार बंगाल 100 गज़ स्प्रिंट का खिताब भी जीता था।
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प्रिचार्ड ने कोलकाता के सेंट जेवियर कॉलेज से ग्रेजुएशन किया और साल 1897 में ओपन फुटबॉल टूर्नामेंट में अपने कॉलेज की ओर से सोवाबाजार के खिलाफ हैट्रिक भी बनाई थी, जिसे भारतीय फुटबॉल की पहली हैट्रिक माना जाता है। पेरिस ओंलपिक में 2 सिल्वर मेडल जीतने के बाद नॉर्मन ने खेल से किनारा कर लिया और बतौर स्पोर्ट्स एडमिनिस्ट्रेशन काम करने का फैसला किया। वे 1900 से 1902 तक इंडियन फुटबॉल असोसिएशन के सेक्रेट्री रहे।
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साल 1905 में वह ब्रिटेन चले गए और वहां कुछ साल रहने के बाद वह अमेरिका शिफ्ट हो गए। इस दौरान उन्होंने हॉलीवुड में एक्टिंग में हाथ अजमाने का फैसला किया, जिसमें वह काफी सफल रहे। उन्होंने बतौर एक्टर 25 प्ले और 27 साइलेंट फिल्मों में काम किया। आखिरी बार वह साल 1929 में आई फिल्म टूनाइट एट ट्वेल्व में नजर आए और इसी साल बीमारी की वजह से 31 अक्टूर को लॉस एंजलिस में उनका निधन हो गया।
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