इंदिरा गांधी का चुनाव भ्रष्ट तरीके के आरोप में आज ही रद हुआ था

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25 जून भारतीय राजनीति में एक उल्लेखनीय तारीख है। इसी रोज 1975 में, तत्कालीन इंदिरा सरकार ने इमरजेंसी लगाई थी। दरअसल वह आपातकाल नहीं, आतंककाल था।
25 जून भारतीय राजनीति में एक उल्लेखनीय तारीख है। इसी रोज 1975 में, तत्कालीन इंदिरा सरकार ने इमरजेंसी लगाई थी। दरअसल वह आपातकाल नहीं, आतंककाल था।

इंदिरा गांधी का चुनाव भ्रष्ट तरीके अपनाने के आरोप में 12 जून, 1975 को रद हुआ था। यही जजमेंट इमरजेंसी का कारण बना। इसलिए आज का दिन ऐतिहासिक है। जज जगमोहन लाल सिन्हा ने पहले प्रलोभन और बाद में बड़ा पद ठुकरा दिया था।

  • सुरेंद्र किशोर
सुरेंद्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार
सुरेंद्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार

इंदिरा गांधी के चुनाव पर फैसले के लिए यदि हर साल 12 जून को दिवंगत जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा को याद किया जाये तो इस देश की न्याय प्रणाली को प्रेरणा मिलती रहेगी। जगमोहन लाल सिन्हा इलाहाबाद हाईकोर्ट के यशस्वी जज थे। उन्होंने तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी का चुनाव 12 जून, 1975 को खारिज कर दिया था। इंदिरा गांधी सन् 1971 में राय बरेली से लोकसभा के लिए चुनी गई थीं। उनके खिलाफ संसोपा के राज नारायण चुनाव लड़ रहे थे। राज नारायण ने इस चुनाव के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।

इंदिरा गांधी पर चुनाव में भ्रष्ट आचरण का आरोप लगाया था। चुनावी भ्रष्ट आचरण के दो आरोपों को सही मानते हुए जस्टिस सिन्हा ने इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द कर दिया। इस ऐतिहासिक फैसले के कारण ही  इंदिरा गांधी ने देश पर इमरजेंसी थोप दी। पूरे देश को खुले जेल में तबदील कर दिया। उनको लगता था कि ऐसा करके ही उन चुनाव कानूनों को बदलवाया जा सकेगा, जिनके तहत उनका चुनाव रद्द हुआ था। आपातकाल में यही हुआ भी।

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जब पूर्व प्रभाव से तत्संबंधी चुनाव कानून ही बदल दिए गए तो सुप्रीम कोर्ट भी क्या करता! उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजमेंट को उलट दिया। पर, इस बीच जगमोहन लाल सिन्हा ने जिस गरिमा, निष्पक्षता और निर्भीकता से इस महत्वपूर्ण मुकदमे की सुनवाई की, उससे न्यायपालिका की इज्जत लोगों के दिल में काफी बढ़ गई थी। उन पर इस बात का कोई असर नहीं था कि वह एक ऐसे मुकदमे की सुनवाई कर रहे हैं, जिसकी प्रतिवादी प्रधान मंत्री यानी देश की सबसे ताकतवर व्यक्ति हैं।

जज ने पहले प्रलोभन ठुकराया और बाद में पद 

जगमोहन लाल सिन्हा सन् 1982 में रिटायर हुए। उनका 2008 में निधन हो गया। सेवा निवृत्ति के बाद और पूरी तरह अस्वस्थ व अशक्त हो जाने से पहले तक वे किताबें पढ़ते थे और बागवानी करते थे। अवकाश ग्रहण करने के बाद उन्होंने कोई पद स्वीकार ही नहीं किया। स्वाभाविक ही था कि जनता सरकार ने उन्हें पद का आफर किया था। जब केस की सुनवाई कर रहे थे, उनके यहां केंद्र सरकार की ओर से प्रलोभन दिए गए थे।

ऐसा जज जो प्रधान मंत्री से भी तनिक नहीं डरा

इंदिरा गांधी के खिलाफ मामले की सुनवाई के दौरान भी न तो जस्टिस सिन्हा डरे और न ही बाद में इंदिरा-विरोधियों से कोई लाभ लिया। यानी, एक निष्पक्ष जज को अपने जीवन में जैसा आदर्श उपस्थित करना चाहिए, वैसा ही उन्होंने किया। ऐसे न्यायमूर्ति को ऐसे समय में हर साल याद करना उचित ही रहेगा, जब न्यायपालिका में बढ़ रहे भ्रष्टाचार को लेकर खुद न्यायपालिका में शीर्ष पर बैठे लोग भी इन दिनों चिंतित रहते  हैं।

जस्टिस सिंहा ने जब अदालत की गरिमा बचायी 

एक दृश्य की कल्पना कीजिए। प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी जगमोहन लाल सिन्हा की अदालत में उपस्थित होने वाली थीं। जस्टिस सिंहा ने रजिस्ट्रार को निदेश दे रखा था कि कोई पुलिस कर्मी या निजी सुरक्षा कर्मी कोर्ट रूम में प्रवेश नहीं करेगा। इंदिरा गांधी को कोर्ट रूम में एक कुर्सी जरूर दी गई, पर वह जज की कुर्सी से नीची और वकीलों की कुर्सियों से ऊंची थी। जस्टिस सिंहा ने सुनवाई के दौरान यह पाया कि इंदिरा गांधी ने राय बरेली की अपनी चुनावी सभा के लिए सरकारी साधनों का दुरूपयोग किया।

सरकारी सेवक यशपाल कपूर बने थे चुनाव प्रभारी

सरकारी सेवा में रहते हुए यशपाल कपूर इंदिरा गांधी के चुनाव प्रभारी बन गये थे। चुनाव सभा के लिए सरकारी साधनों का उपयोग करने का सबूत मिला था। इन दो मुद्दों पर चुनाव कानून का उलंघन हुआ। इसी आधार पर जस्टिस  सिंहा ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया।

दिग्गजों की अदालत में गलतबयानी भी दिखी

राज नारायण की इस चुनाव याचिका की सुनवाई के दौरान यह बात भी साबित हो गई कि इंदिरा गांधी, पी.एन. हक्सर और यशपाल कपूर ने अदालत के समक्ष गलतबयानी की। यानी, इन तीन दिग्गजों के बयानों को अदालत ने सत्य से परे माना। इस जजमेंट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जब अपील की गई तो उस कोर्ट ने सुनवाई के  लिए तो इसे मंजूर कर लिया, पर साथ-साथ यह भी कह दिया कि इंदिरा गांधी को एक सदस्य के रूप में संसद में मतदान करने का अधिकार नहीं रहेगा।

 विदेशी अखबार की इस मुद्दे पर क्या राय रही

इस निर्णय पर अमेरिकी दैनिक ‘क्रिश्चेन सायंस मानिटर’ ने लिखा कि ‘किसी देश के न्यायाधीश के द्वारा प्रधान मंत्री तक को चुनावों में भ्रष्ट तरीके अपनाने का दोषी ठहराने से यह स्पष्ट है कि उस देश में लोकतंत्र और कानूनी प्रक्रिया पूर्णतः सफल है। निःसंदेह जिन कारणों से इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने श्रीमती गांधी को भ्रष्ट तरीके अपनाने का दोषी ठहराया है, वे निहायत तकनीकी हैं। लेकिन इन तकनीकी तरीकों का लाभ उठाना नैतिकता के विरूद्ध है।’

बड़ों को सजा मिलेगी, तभी  छोटे भी डरेंगे

जाहिर है कि देश की सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठे किसी व्यक्ति को उसके किसी कसूर के लिए अदालत सजा देगी, तभी नीचे के सत्ताधारियों के हाथ गलती करने से पहले कांप जाएंगे। इससे यह भी माना जाएगा कि कानून सबके लिए समान है। आज जबकि इस देश के सामने सबसे बड़ी समस्या यही है कि लगता है कि कानून सबके लिए बराबर नहीं है। ऐसी स्थिति में जगमोहन लाल सिंहा को कभी-कभी याद करना अच्छा लगता है।

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