भाजपा में कलह से तृणमूल कांग्रेस की लड़ाई आसान होती दिख रही

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पश्चिम बंगाल बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। राज्यसभा सदस्य मुकुल राय पार्टी की बैठक से नदारद रहे। राजीव बनर्जी गवर्नर रूल का विरोध कर रहे हैं।
पश्चिम बंगाल बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। राज्यसभा सदस्य मुकुल राय पार्टी की बैठक से नदारद रहे। राजीव बनर्जी गवर्नर रूल का विरोध कर रहे हैं।

भाजपा के भीतर कलह से तृणमूल कांग्रेस की लड़ाई आसान होती दिख रही है। यह पूरी तरह भाजपा में वर्चस्व की लड़ाई है। दिलीप घोष विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहे तो  मुख्यमंत्री के लिए 3 नाम बच जाते हैं। एक सपन दासगुप्ता, दूसरा मुकुल राय और तीसरा शुभेंदु अधिकारी।

  • डी. कृष्ण राव

कोलकाता। बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों की घोषणा होने के बाद से ही  बंगाल भाजपा में बवाल मचा हुआ है। उत्तर में मालदा से लेकर  दक्षिण 24 परगना तक, पश्चिम में  पुरुलिया से लेकर कोलकाता तक घोषित प्रत्याशियों से नाखुश  भाजपा कार्यकर्ता कहीं सड़क कर टायर जलाकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं तो कहीं  पार्टी दफ्तर में तोड़फोड़ कर रहे हैं। नादिया, कृष्णानगर, राणाघाट जैसे  भाजपा के गढ़ माने जाने वाली जगहों पर कई पार्टी दफ्तरों में कार्यकर्ताओं ने ताला तक लगा दिया है। विरोध का तेवर अगर ऐसा ही बना रहा तो सत्ता परिवर्तन के सपने संजोये भाजपा की राह आसान नहीं होगी।

अगर इस विरोध को गौर से देखा जाए  तो एक बात समझ में आती है कि  इस बार भाजपा को जिन जिलों और सीटों से उम्मीद है, खासकर मालदा, दिनाजपुर, नदिया, 24 परगना, कोलकाता, हुगली और बीरभूम जिलों में  ज्यादातर विरोध देखने को मिल रहा है। पश्चिम बंगाल के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह जो विरोध दिख रहा है, यह केवल कार्यकर्ताओं  तक ही सीमित नहीं है। इसके तार कोलकाता के  बड़े नेताओं से जुड़े हुए हैं। बंगाल में भाजपा पॉलिटिक्स को कोई अगर ठीकठाक जानता है तो  उसे यह जरूर पता होगा कि बंगाल बीजेपी के 3 सत्ता केंद्र हैं। पहला सेंटर प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष का, दूसरा मुकुल राय का और तीसरा शुभेंदु अधिकारी का। इसके अलावा राज्य में  छोटे-छोटे कई पावर सेंटर और हैं।  इनमें भाजपा के पूर्व अध्यक्ष

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राहुल सिन्हा और हाल ही में तृणमूल कांग्रेस  से भाजपा में शामिल हुए कद्दावर नेता राजीव बनर्जी के अपने केंद्र हैं। बंगाल में भाजपा चुनावी जंग से ज्यादा वर्चस्व के जंग में उलझ गयी है। सभी नेता चाह रहे हैं कि अपने  लोगों को विधानसभा में टिकट मिले, ताकि  चुनाव के बाद उनका वर्चस्व पार्टी में बना रहे  और  सरकार बनती है  तो  मुख्यमंत्री की दावेदारी  कर सकें।

पार्टी के अंदरूनी कलह और  मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने की इस दौड़ में  मुकुल राय सबसे आगे हैं। उनके साथ फिलवक्त शुभेंदु अधिकारी और राजीव बनर्जी भी शामिल हो गये हैं। वर्चस्व की इस लड़ाई में पीछे छूट गए हैं प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष, क्योंकि पार्टी में पूर्व अध्यक्ष जैसे उनके कुछ पुराने दुश्मन भी हैं। भाजपा सूत्रों से मिली खबर के मुताबिक  पिछले कई दिनों से दिलीप घोष इतना नाराज चल रहे हैं कि  जिन जिलों में उनका दबदबा है, वहां उनके कार्यकर्ता पार्टी दफ्तर में तोड़फोड़-अवरोध अधिक कर रहे  हैं। केंद्रीय नेतृत्व के  लाख समझाने के बाद भी  दिलीप घोष विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हुए।

प्रदेश अध्यक्ष के इस रुख से यह सवाल जरूर खड़ा होता है कि क्या भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की बंगाल दखल की लड़ाई इस बार अधूरी रहेगी। और यहीं से भाजपा में शुरू होती है  नए और पुराने कार्यकर्ताओं की लड़ाई, जिसका असर जमीन पर  दिख रहा है। राणाघाट, नादिया, बीरभूम, मालदा  के कई कार्यालयों में स्थानीय भाजपा नेताओं ने ताला लगा दिया। एक दर्जन से ऊपर युवा और पुराने नेता  अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं। सुनने में आ रहा है कि सिंगूर, राणाघाट समेत राज्य की लगभग 25 सीट हैं, जहां भाजपा के पुराने कार्यकर्ता  भाजपा के ऑफिशियल उम्मीदवार के खिलाफ  उम्मीदवार खड़ा कर रहे हैं।

भाजपा के भीतर कलह से तृणमूल कांग्रेस की लड़ाई आसान होती दिख रही है। यह पूरी तरह भाजपा में वर्चस्व की लड़ाई है। दिलीप घोष विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहे तो  मुख्यमंत्री के लिए 3 नाम बच जाते हैं। एक सपन दासगुप्ता, दूसरा मुकुल राय और तीसरा शुभेंदु अधिकारी। सपन दासगुप्ता का जनाधार बहुत कम है और  वह पार्टी में बुद्धिजीवी नेता जाने जाते हैं। अगर जनाधार और एमएलए की संख्या किसी के पास होगी वह मुकुल राय होंगे। वे किसी तरह शुभेंदु अधिकारी को  मना लेंगे और मुख्यमंत्री पद की दावेदारी ठोक देंगे। यह भी आशंका है कि अगर  विधानसभा त्रिशंकु बनी तो मुकुल राय ही अपने करीबी एमएलए को लेकर  मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए  दूसरे किसी पार्टी से भी बातचीत कर सकते हैं।

प्रत्याशियों के नाम की घोषणा होने के बाद जिलों में जो विरोध दिख रहा है, असल में यह कोई  आम कार्यकर्ता नहीं हैं। इसका  तार मुख्यमंत्री की कुर्सी के दावेदारों तक जुड़े हुए हैं। असल में भाजपा की अंदरूनी लड़ाई से  भाजपा के जो समर्थक बंगाल में असली परिवर्तन का ख्वाब देख रहे थे, उनको बड़ा धक्का लगा है। भाजपा के एक  जिला स्तर के नेता विमल श्रीवास्तव का कहना है कि  इस लड़ाई-झगड़ा से आम कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट रहा है। कार्यकर्ता मैदान में उतरना नहीं चाह रहे हैं, जो भाजपा के लिए एक बहुत बड़ी समस्या हो सकती है। बंगाल में  भाजपा के प्रवक्ता शमिक भट्टाचार्य का कहना है कि एक विधानसभा क्षेत्र के लिए कम से कम 10 से 15 नाम उम्मीदवारी के लिए आये थे। इनमें से टिकट किसी एक को ही मिलना था  और यह नाराजगी होनी ही थी। उनका यह भी मानना है कि यह सब बहुत जल्द खत्म होगा और पार्टी पूरा एकजुटता के साथ चुनाव में उतरेगी।

भाजपा के राज्यस्तरीय एक नेता का कहना है कि असल में पार्टी के निचले स्तर के कार्यकर्ताओं में एक दुख तो जरूर है। इन तीनों नेताओं (मुकुल राय, शुभेंदु अधिकारी, राजीव बनर्जी) के कारण उनको इतने दिन तकलीफ झेलनी पड़ी। जेल की  हवा खानी पड़ी। अपने परिजनों को खोना पड़ा। अब उन्हीं को जिताने के लिए आज मैदान में उतरना पड़ रहा है। उन्होंने एक वाजिब सवाल और भी उठाया। चुनाव के 6 महीने पहले से ही  केंद्रीय नेतृत्व की ओर से बंगाल से बायोडाटा मांगा गया था  और कहा गया था कि उसी बायोडाटा के आधार पर उम्मीदवार तय किया जाएगा। बंगाल से कम से कम  3300  बायोडाटा जमा हुए थे। सवाल तो यह बनता ही है कि  आज जो उम्मीदवार के रूप में उतारे गए हैं, क्या उनका बायोडाटा उसमें है।

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