सरकारी आदेशों को मानने के लिए मजबूर हैं राज्य के शिक्षक
प्रशासन और स्थानीय लोगों के विरोध का सामना कर रहे हैं शिक्षक
रांची: भारत समेत पूरा विश्व कोरोना वाइरस की चपेट में है तथा इस महामारी के संक्रमण की भयावहता से लड़ रहा है। भारत सरकार व राज्य सरकारों ने 14 अप्रैल 2020 तक ल़ॉक डाउन घोषित किया है ताकि संक्रमण के खतरे से लोग दूर रहें। सरकारी आदेशों को मानते हुए लोग अपने-अपने घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं। वहीं झारखंड में घर-घर जाकर मध्याह्न भोजन (मीड-डे-मील) के तहत बच्चों को चावल बांटने का दिया गया सरकारी आदेश समझ से परे लगता है। समझ से परे इसलिए क्योंकि संक्रमण से ऐहतियात बरतने एवं इसकी भयावहता का अंदाजा लगाए बिना ही आदेश दे दिया गयाहै, जिसे पालन करने को मजबूर राज्य के शिक्षक यकीनन चावल के साथ-साथ कोरोना संक्रमण के वाहक बनने का कलंक से भी नहीं बच सकते हैं।
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग, झारखण्ड राज्य मध्याह्न भोजन प्राधिकरण, झारखण्ड सरकार ने राज्य के शिक्षकों को उक्त महामारी के फलस्वरूप विद्यालय के बंद होने की स्थिति में छात्र-छात्राओं के पोषण आवश्यकताओं की प्रतिपूर्ति हेतु मध्याह्न भोजन योजना के अंतर्गत छात्र-छात्राओं को उपलब्ध कराने का आदेश दिया है। बिना कोई पुख्ता सुरक्षा इंतजाम के सरकार द्वारा जारी इस आदेश के बाद शिक्षकों में भय का माहौल व्याप्त है कि कहीं कोरोना का संक्रमण उन्हें अपनी आगोश में न ले ले।
कहीं-कहीं शिक्षकों द्वारा इस आदेश का पालन भी किया जा रहा है लेकिन लॉक डाउन के दौरान प्रशासन द्वारा अनुमति नहीं मिलने की वजह से प्रशासन और स्थानीय लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है।
नहीं किया जा रहा सुरक्षा मानकों को पूरा
वैसे तो यह आदेश लॉक डाउन के पहले अर्थात 20 मार्च, 2020 को जारी किया गया है लेकिन वर्तमान की भयावह स्थिति को देखकर सरकार को शिक्षकों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखना चाहिए। इसके तहत सुरक्षा किट व वाहन इत्यादि की व्यवस्था होनी चाहिए। लेकिन इन सबसे परे सरकार सुरक्षा मानकों को ताक पर रखकर सिर्फ फरमान के पक्ष में है।
राजकीय मध्य विद्यालय भीठा, लोहरदगा के प्रभारी प्रधानाध्यापक संजीव कुमार ने बिना सुरक्षा मानकों को पालन किए, चावल वितरण करने वाले इस सरकारी आदेश को घातक बताया है।
क्या कहना है राज्य के शिक्षकों का ?
इस आदेश के आलोक में राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ झारखंड प्रदेश के प्रदेश मीडिया प्रभारी अरुण कुमार दास ने कहा कि राज्य में मध्याह्न भोजन योजना के तहत शिक्षकों को बच्चों के घर-घर जाकर चावल वितरण करने का सरकार का यह आदेश कोरोना संक्रमण को बुलावा देना है, जो न सिर्फ झारखण्ड के लिए अपितु पूरे देश के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है।
वहीं राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ झारखंड प्रदेश के संयोजक आशुतोष कुमार ने बताया कि चावल वितरण का यह आदेश शिक्षक के साथ-साथ बच्चों एवं आम लोगों को संक्रमित करने का आमंत्रण का समान है। सरकार की यह लापरवाही अपने राज्य के लिए घातक है। इसकी जिम्मेवारी भी सरकार तय करे।
राघवेन्द्र कुमार सिंह (अध्यक्ष, राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ झारखंड प्रदेश, बोकारो) का साफ कहना है कि यह आदेश अ-दूरदर्शिता एवं अव्यवहारिकता पूर्ण कदम है। जिसके परिणाम से सरकार बिल्कुल भी अनजान है और इसका प्रतिफल सुखद कतई संभव नहीं है।
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ की सरकार से अपील
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने झारखंड प्रदेश सरकार की अव्यावहारिक एवं झारखंड को कोरोना संक्रमित करने वाली सशंकित आदेश करार दिया है। साथ ही ल़क डाउन की इस विषम परिस्थ्ति में महासंघ सरकार के समक्ष हाथ जोड़कर विनम्र आग्रह करता है कि शिक्षकों के माथे पर कोरोना जैसे भयानक संक्रमण का टीका न लगे। महासंघ ने कहा कि शिक्षक आरंभ से ही राज्य के सभी आदेशों को अपना परम कर्तव्य मानते आ रहे हैं, चाहे वह कार्य किसी भी प्रकृति का हो। परंतु ऐसे आदेश जिससे पूरे राज्य की अस्मिता एवं जीवन ही खतरे में पड़ जाए उन आदेशों पर सरकार को एक बार जरुर विचार करनी चाहिए।
वर्तमान में कोरोना को लेकर भारत में स्थिति
भारत में अलग-अलग राज्यों को मिलाकर इस वायरस के तकरीबन 1320 से ज्यादा केस सामने आ चुके हैं और करीब 40 लोग दम तोड़ चुके हैं। भारत में 21 दिनों के लिए लॉकडाउन घोषित किया गया है। लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकल रहे। भारत अब लगातार स्वास्थ्य सेवाओं और उपकरण खरीदने की प्रक्रिया को तेज कर रहा है ताकि स्वास्थ्यकर्मियों और यहां के लोगों को बेहतर सुरक्षा मिले। ऐसे में झारखंड सरकार को शिक्षकों के प्रति उदाशीनता से नहीं बल्कि तत्परता से उनके सुरक्षित स्वास्थ्य का भाव रखनी चाहिए ताकि उनके साथ-साथ राज्यवासी भी कोरोना नामक दरिंदे से सुरक्षित रह सकें।