मेकाले-वाद का खतरा क्या एक बार फिर भारत पर मंडरा रहा है?

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लार्ड मेकाले के भाषण का वह अंश, जो उन्होंने भारत के बारे में ब्रिटिश संसद में दिया था
लार्ड मेकाले के भाषण का वह अंश, जो उन्होंने भारत के बारे में ब्रिटिश संसद में दिया था
सुरेंद्र किशोर
सुरेंद्र किशोर

मेकाले-वाद का खतरा क्या एक बार फिर भारत पर मंडरा रहा है। यह सवाल कई कारणों से मौजू हो गया है। लार्ड मेकाले ने भी भारत की ताकत इसकी संस्कृति को माना था। भाषा, नैतिक मूल्य, सच्चरित्रता जैसे भारत के भूल आधार को नष्ट करने की कहीं कोई कोशिश तो नहीं चल रही। इसे समझने के लिए वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने मेकाले के उस भाषण का सहारा लिया है, जिसे उसने बिर्टिश संसद में तकरीबन 84 साल पहले दिया था। उन्होंने लिखा हैः

लार्ड मेकाले ने 84 साल पहले कहा था- ‘‘मैंने भारत का चौतरफा दौरा किया और यह पाया कि न ही यहां एक भी भिखारी है और न कोई चोर ही। 2 फरवरी, 1835 को ब्रिटिश संसद में उन्होंने अपने भाषण के दौरान यह बात कही थी। उस चर्चित भाषण की भारत में आए दिन चर्चा होती रहती है।

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मेकाले ने कहा था- ‘‘मैंने भारत का चैतरफा दौरा किया और यह पाया कि न ही यहां एक भी भिखारी है, और न कोई चोर ही। ऐसा समृद्ध है यह देश। इतने ऊंचे नैतिक मूल्यों पर चलने वाले सद्चरित्र लोग, मुझे नहीं लगता कि हम इसको कभी अपने अधीन कर पाएंगे। जब तक कि हम इसके  मूल आधार को ही नष्ट कर न दें, जो कि है इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत। इसलिए मैं इसकी सनातन सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था को बदलने की अनुशंसा करता हूं।

क्योंकि अगर भारतीय यह समझेंगे कि जो भी कुछ विदेशी और अंग्रेजी है, वह अच्छा है और उनसे बेहतर है, तब वह अपने आत्मसम्मान और अपनी मूल संस्कृति को खो देंगे, और तब वे वही बन जाएंगे, जो हम उन्हें बनाना चाहते हैं, और तभी  होगा हमारा इस देश पर पूर्ण आधिपत्य।’’

बंबई प्रेसिडेंसी के शिक्षा विभाग की 1858 की  रपट के अनुसार, ‘शासन ने अंग्रेजी शिक्षा देने के लिए चार जातियों को चुना। रपट के अनुसार उनमें से एक जाति अपने पूर्वजों की वीरगाथा में इतनी मगन थी कि उसे अंग्रेजी  शिक्षा में कोई रुचि नहीं थी।’’

(प्रस्तुतिः सुरेंद्र किशोर, साभारः आम्बेडकर संपूर्ण से।

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