जाति-व्यवस्था की भारत से समाप्ति असंभव है, इसकी वजह जानिए

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भारत से जाति-व्यवस्था की समाप्ति असंभव है, क्योंकि हमारा धर्म राम, कृष्ण और अन्य असंख्य देवताओं पर टिका हुआ है। जाति रहेगी और इस पर चर्चा भी चलेगी।
भारत से जाति-व्यवस्था की समाप्ति असंभव है, क्योंकि हमारा धर्म राम, कृष्ण और अन्य असंख्य देवताओं पर टिका हुआ है। जाति रहेगी और इस पर चर्चा भी चलेगी।
जाति-व्यवस्था की भारत से समाप्ति असंभव है, क्योंकि हमारा धर्म राम, कृष्ण और अन्य असंख्य देवताओं पर टिका हुआ है। जाति रहेगी और इस पर चर्चा भी चलेगी। यह भारत ही नहीं, अमेरिका जैसे विकसित देश में दिखता है।
  • नारायण सिंह

प्राचीन ग्रंथों पर जब भी बात की जाएगी, उनमें किसी न किस रूप में मौजूद भेदभाव की व्यवस्था पर भी स्वाभाविक रूप से बात की जाएगी। वह भेदभाव वर्ण-व्यवस्था, लिंग, नस्ल, इनमें से किसी पर आधारित हो सकता है। किंतु ऐसा करना कुछ मित्रों को बुरा लग सकता है। लगता भी है। उनका कहना है, इस चर्चा से क्या जाति व्यवस्था समाप्त हो जाएगी? अगर नहीं, तो फिर किसी के पास विकल्प हो तभी इस पर बात होनी चाहिए। बहुत लोग तो यह भी मानते हैं कि चर्चा करने से ये बुराइयाँ और भी सिर उठाएँगी।

पूरी व्यवस्था नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार में लिप्त है। उसे समाप्त करने का कोई विकल्प किसी के पास नहीं, तो क्या उस पर चर्चा बंद कर देनी चाहिए! बहुत-से लोग यह भी कहते हुए मिलेंगे कि पढ़े-लिखे लोगों, और विशेषकर शहरों में जाति-व्यस्था समाप्त हो गई है। क्या सच में ऐसा है? मुझे अखबारों में कन्नड़ अभिनेता चेतन कुमार (चेतन अहिंसा) को लेकर छपा एक समाचार पढ़ने को मिला। चेतन ने बाबा साहब और पेरियार के कथन को अपने ट्विटर पर ट्विट किया था:

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“Brahminism is negation of the spirit of Liberty, Equality, Fraternity…we must uproot Brahminism’- Ambedkar.

‘While all are born as equals, to say that Brahmins alone are highest and all others are low as untouchebles is sheer nonsense. It is a big hoax’- Periyar

उनका एक विडियो भी सामने आया है, जिसमें वे कह्तेनजर आ रहे हैं कि ‘एक हजार साल से ब्राह्मणवाद वासवा और बुद्ध के विचारों को मारता आया है। ढाई हजार साल पहले बुद्ध ने ब्राह्मणवाद के विरुद्ध संघर्ष किया। लेकिन इसने उन्हें विष्णु का नवाँ अवतार घोषित कर दिया।’

इन उद्धरणों को आधार बनाकर ‘कर्नाटक ब्राह्मण डेवलपमेंट बोर्ड’ ने पहले तो इस अभिनेता से माफी माँगने को कहा, लेकिन ऐसा नहीं करने पर बोर्ड के चेयरमैन और बीजेपी के नेता सच्चिदानंद मूर्ती ने केस किया है। गौर करने की बात है कि यह बोर्ड ब्राह्मणों की कोई निजी संस्था नहीं, राज्य की एक सरकारी संस्था है, जिसे यदुयेरप्पा सरकार ने गठित किया है।

दलित पृष्ठभूमि वाले चेतन कुमार का जन्म शिकागो में एक आप्रवासी डॉक्टर माता-पिता के घर में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा दक्षिण एशियन स्टडिज़ पर वहीं से पूरी की और अमेरिका-भारत के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध फुलब्राइट स्कालरशिप के तहत 2005 में भारत में आए। अमेरिकी नागरिक होने के बावजूद, उसके बाद से वे ज्यादातर यहीं रहते हैं और सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ थिएटर और सिनेमा में अभिनय भी करते हैं। इन्होंने अमेरिका में रहते हुए नस्ली भेदभाव के विद्रूप चेहरे को नजदीक से देखा है, और अब भारत में उस चेहरे का एक अन्य बदतर चेहरा देख रहे हैं।

हिंदी प्रदेशों में आमतौर पर परिचय होने पर जाति पूछ लिए जाने का प्रचलन रहा है, जो अब भी थोड़े-से हेर-फेर के साथ मौजूद है। ज्यादा शिक्षितों में यह जिज्ञासा दूसरे तरीकों से पूरी कर ली जाती है। विशविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों में भी जातियों के अपने-अपने ग्रूप बने होते हैं। तकनीकी योग्यता वाले कर्मचारियों से भरे आइ टी सेक्टर में और विशेषकर आप्रवासी भारतीयों के बीच भी यह जातिभेद मौजूद है। अमेरिका के आई टी सेक्टर में भारतीयों के बीच ‘पैट टेस्ट’ सिस्टम की चर्चा तीन-चार दिन पहले गूगल पर किसी ऐश्वर्या मेनन के एक लेख में पढ़ने को मिला। यह ऐसा टेस्ट है, जिसमें सीनियर नए‌‌-नए भर्ती किए गए भारतीय तकनीकी रंगरूटों की पीठ थपथपाकर जाँच करते हैं कि भीतर जनेऊ मौजूद है या नहीं। इस जाँच की सफलता आगे के समय में पदोन्नति की राह असान बना देती है। भारतीय डायस्पोरा (आप्रवासी-समूह) के सवर्ण समाज के बहुत बड़े हिस्से में बीजेपी, जनेऊ और मोदी काफी लोकप्रिय हैं, इस तथ्य की जानकारी मुझे व्यक्तिगत रूप से है।

गीता में अर्जुन से कृष्ण कहते हैं, ‘चारों वर्णों की रचना मैंने की है’। रामायण में राम तपस्या करते हुए निर्दोष शंबूक का सिर केवल तपस्या करने के लिए काट देते हैं। महाभारत में एकलव्य वाला प्रसंग सभी जानते होंगे। उसे दोहराना नहीं चाहता। लेकिन उसमें आगे की बातचीत को जरूर जोड़ना चाहूँगा। ‘द्रोणाचार्य को गुरुदक्षिणा में अपना अंगूठा देकर एकलव्य जब चला गया, तो कुरु राजकुमारों ने द्रोणाचार्य से पूछा कि आपने एकलव्य के साथ ऐसी क्रूरता क्यों की। गुरु ने उत्तर दिया, ‘यदि सभी लोग तीरंदाजी सीख लेंगे, तो जनजातीय समुदाय क्षत्रियों से आगे बढ़ जाएगा। उस अवस्था में पूरी वर्ण-व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी, और सामाजिक अराजकता फैल जाएगी। इसके अलावा मैंने अर्जुन को वचन दिया था कि अपने किसी भी शिष्य को उससे बेहतर तीरंदाज नहीं बनने दूँगा। एकलव्य को नष्ट कर के मैंने उस वचन की रक्षा की है।’

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फेसबुक पर मौजूद  मोहन आर्या (Mohan Arya) के एक विचारोत्तेजक पोस्ट को पढ़ना चाहिए। वे पूरे हिंदी साहित्यकार समाज को भाषा के सवाल पर कटघरे में खड़ा करते हैं। वे अपनी लंबी टिप्पणी में अनेक उदाहरण देते हैं, जिनमें से एक दिनकर का यह प्रसिद्ध उद्धरण भी शामिल है- ‘समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध/ जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।’ वे कहते हैं, “ये बहेलिया है, जो एक श्रमिक अस्पृश्य जाति होती है, जो पक्षियों को पकड़कर अपना रोजगार करती है, जो बेहद मेहनत का काम है। लेकिन हिंदी कवि इसे स्वाभाविक ही पापी मानकर चलता है। लगभग सभी हिंदी कवि ऐसा करते हैं और इनमें से कोई कवि राम को क्रूर नहीं मानते जो कि अपनी पत्नी के कहने पर एक मृग का शिकार करने को आवश्यक मानते हैं। राम भगवान हैं और व्याध अपराधी, ऐसा क्यों?”

वास्तविकता ये है कि जाति-व्यवस्था की समाप्ति असंभव है, क्योंकि हमारा धर्म अथवा ‘वे ऑफ लाइफ’, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है; राम, कृष्ण और अन्य असंख्य देवताओं पर टिका हुआ है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार जाति-व्यवस्था उन देवताओं द्वारा पैदा की गई है। और उन ग्रंथों की रचना कवियों ने की है। जाहिर है देवताओं और समाज-व्यवस्था को भी ऋग्वेद से लेकर रामायण-महाभारत के उन्हीं कवियों ने की होगी। हमारा समाज उन देवताओं को मानना छोड़ेगा नहीं। फिर? ऐसा तो नहीं हो सकता कि हम गीता को सिरहाने रखकर सोएँ भी और जाति-व्यवस्था के खिलाफ बात भी करें, जैसा कि गांधी जी किया करते थे। उस हाल में संघर्ष भी चलता रहेगा। समाज में चेतन कुमार और मोहन आर्या जैसे नौजवानों के ऐसे सवाल उठते रहेंगे।

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