बिहार में घमासान, विधानसभा में JDU को BJP से चाहिए अधिक सीटें

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अगर काम को आधार बना कर वोट मिलते हैं तो नीतीश बिहार में सर्वाधिक वोट हासिल करने का पूरा बंदोबस्त कर चुके हैं
अगर काम को आधार बना कर वोट मिलते हैं तो नीतीश बिहार में सर्वाधिक वोट हासिल करने का पूरा बंदोबस्त कर चुके हैं

PATNA : बिहार में एक बार फिर राजनीतिक घमासान तेज हो गया है। विधानसभा चुनाव में JDU को BJP से अधिक सीटें चाहिए। लोकसभा चुनाव के पहले भी इसी तरह का घमासान मचा था। ठीक उसी तर्ज पर इस बार भी घमासान की शुरुआत हो चुकी है। इस बार भी शुरुआत जदयू की ओर से ही हुई है। जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तमाशबीन की तरह देखते-सुनते रहे। पार्टी के नेता बयानबाजी करते रहे। आखिर में सिर्फ इतना भर कह कर नीतीश ने घमासान को शांत करने की कोशिश की कि एनडीए में सब कुछ ठीकठाक है।

प्रशांत किशोर
प्रशांत किशोर

2019 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले टिकटों के बंटवारे को लेकर जदयू ने इसी तरह की रणनीति अपनाई थी। जदयू नेताओं के बयान से तो एक बार ऐसा लगने लगा था कि भाजपा के साथ जदयू का तालमेल अब कुछ ही दिनों का मेहमान है, लेकिन सच्चाई यह थी कि जदयू ने एक रणनीति के तहत प्रेशर टैक्टिस अपनाई थी और भाजपा को इस बात के लिए मजबूर भी किया कि बिहार में नीतीश कुमार ही एनडीए का चेहरा हैं। बड़े भाई की भूमिका में बिहार एनडीए नीतीश के ही नेतृत्व में चुनाव लड़ेगा।

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आखिरकार जदयू को इसमें कामयाबी भी मिल गई। 2014 के लोकसभा चुनाव में 2 सीटों तक सिमट कर रहने वाली जदयू ने भाजपा को इतना मजबूर किया कि दोनों के बीच बराबर यानी 17-17 सीटों का बंटवारा हुआ। लोकसभा की कुल 40 सीटों में 17 भाजपा की झोली में गईं और 17 नीतीश की पार्टी जदयू को मिलीं। रामविलास पासवान की लोजपा को 6 सीटें मिलीं। जदयू को मिली 17 सीटों में से 16 पर यह कामयाब हुई। भाजपा ने अपने हिस्से की सभी 17 सीटें जीत गयी। लोजपा ने भी अपने हिस्से की सारी 6 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की।

बिहार में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। जदयू ने भाजपा से पहले ही यह लोहा भाजपा मनवा लिया है कि मुख्यमंत्री का चेहरा नीतीश कुमार ही होंगे। पेंच सीटों के बंटवारे को लेकर है, जिसे सुलझाने के लिए जदयू ने अभी से ही अपना आजमाया पुराना नुस्खा प्रयोग करना शुरू कर दिया है।

जदयू के नेशनल वाइस प्रेसिडेंट और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के उस बयान से इसकी शुरुआत हुई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भाजपा से ज्यादा सीटें जेडीयू को मिलनी चाहिए। जदयू ने पिछले 15 साल के शासन में बिहार में विकास का काफी काम किया है। उसका जनाधार भी बढ़ा है। इसलिए विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ लोकसभा की तरह सीटों के बराबर बंटवारे का सवाल ही पैदा नहीं होता। उनके इस बयान के बाद जदयू और भाजपा के बीच बयान वीरों की बाढ़ आ गई। प्रशांत ने भाजपा के कद्दावर नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के बारे में तो यहां तक कह दिया कि वह परिस्थितिवश उपमुख्यमंत्री बने। यह बयानबाजी का क्लाइमैक्स था। दोनों ओर से तल्खी इतनी बढ़ गई कि कई दिनों से सब कुछ सुनते-जानते रहने के बावजूद खामोशी ओढ़े मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बीच-बचाव करना पड़ा और यह कहना पड़ा कि भाजपा के साथ जदयू का कोई विवाद नहीं है।

नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री रहने का यह 15वां साल है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पहले ही साफ कर दिया है कि नीतीश कुमार ही एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा होगे। 2015 का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने और राष्ट्रीय जनता दल के साथ तालमेल कर लड़ा था। उस समय जेडीयू और आरजेडी ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा। आरजेडी ने 80 सीटों पर जीत हासिल की और नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को 71 सीटों से संतोष करना पड़ा। चूंकि जदयू, आरजेडी और कांग्रेस का माहगठबंधन बना था और तीनों दलों के सदस्यों को मिलाकर नीतीश कुमार ने बहुमत भी पा ली। प्रसंगवश 2010 के विधानसभा चुनाव का जिक्र करना आवश्यक होगा, जब भाजपा के साथ जेडीयू का गठबंधन था। 141 सीटों पर चुनाव लड़ कर जेडीयू ने 105 सीटों पर कामयाबी हासिल की थी। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने गठबंधन के तहत 102 सीटों पर चुनाव लड़ कर 91 सीटें जीत ली थीं। अगर इन आंकड़ों का विश्लेषण करें तो जनता दल यूनाइटेड के मुकाबले गठबंधन के सहयोगियों का कामयाब होने का रिकॉर्ड बेहतर रहा है।

जदयू के भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक इस बार पार्टी की इच्छा है कि 125 सीटों पर चुनाव लड़े। इसी मंशा के तहत रणनीति के तहत जदयू ने बराबर सीट बंटवारे के फार्मूले को नकारने का हंगामा बरपा दिया है। नीतीश ऐसे विवाद की शुरुआत खुद की जुबान से नहीं करते। उनके सिपहसालार यह काम करते हैं। सिपहसालारों ने अभी ही संकेत दे दिया कि जेडीयू इस बार 2015 की तरह (राजद के साथ गठबंधन के वक्त) बराबर सीटों पर गठबंधन के सहयोगी दलों के साथ चुनाव नहीं लड़ेगी, बल्कि उसे गठबंधन में सर्वाधिक सीटें चाहिए।

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