और हरिवंश जी ने सब एडिटर से सीनियर न्यूज एडिटर बना दिया

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ओमप्रकाश अश्क की प्रस्तावित पुस्तक- मुन्ना मास्टर बने एडिटर- का अंश आप लगातार पढ़ रहे हैं। आज उसकी अगली कड़ी के रूप में पढ़ें, कैसे सब एडिटर से वह सीधे सीनियर न्यूज एडिटर बन गये।

वर्ष 1995। तारीख ठीक-ठीक याद नहीं। रांची स्थित उषा मार्टिन के रोप वायर प्लांट का माजर्नाइजेशन हुआ तो कंपनी ने अपनी पीआर एजेंसी के माध्यम से कोलकाता (तब कलकत्ता) के पत्रकारों की एक टीम को प्लेन से प्लांट दिखाने का न्योता भेजा। उस वक्त में जनसत्ता के कोलकाता संस्करण में बिजनेस रिपोर्टर का काम देख रहा था। टिकट मेरे नाम से भी बना। मैंने अपने तत्कालीन न्यूज एडिटर अमित प्रकाश सिंह (त्रिलोचन शास्त्री जी के पुत्र) को बताया कि उषा मार्टिन का प्लांट देखने रांची जा रहा हूं। उन्होंने कहा कि बिना अनुमति लिए आपने टिकट क्यों लिया। मेरा जवाब था कि टिकट पीआर एजेंसी ने बनवाया है। जब टिकट आया तो आपको बता रहा हूं। बहरहाल, उनकी नाराजगी के बावजूद मैं रांची की यात्रा पर निकल गया।

रांची पहुंच कर शाम को मैंने हरिवंश जी (संप्रति राज्यसभा के उपसभापति) को फोन किया। उन्होंने कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं आज मैं आफिस नहीं गया। तुम कल जरूर मुझसे मिलना। अगले दिन हम लोग प्लांट देखने गये। हरिवंश जी ने यशोनाथ झा को हरिवंश जी ने प्लांट भेजा इस आदेश के साथ कि अश्क को साथ लेकर आइएगा। झा जी तब प्रभात खबर में थे। वह हाल ही में हिन्दुस्तान रांची से सेवानिवृत हुए हैं।

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मैंने कोलकाता वापसी का प्लान कैंसल कर सीवान अपने घर जाने का कार्यक्रम बना लिया था। झा जी को शायद इतना सख्त आदेश था कि उन्होंने उषा मार्टिन की कार छोड़ अपने स्कूटर से ही चलने का आग्रह किया। बिछड़े दोस्तों से जब मुलाकात होती है तो आदमी इतना मुग्ध हो जाता है कि उसे प्रोटोकाल जैसी बात का ख्याल भी नहीं रहता। मैं उषा मार्टिन का मेहमान बन कर गया था। मुझे स्कूटर से जाने की कोई जरूरत नहीं थी। लेकिन दोस्त के मिलने की खुशी में मैं झा जी के स्कूटर पर पीछे बैठ कर प्रभात खबर पहुंचा।

हरिवंश जी से मिला। काफी देर तक बातचीत हुई। प्रसंगवश यह बताना चाहता हूं कि जनसत्ता में जाने के बाद भी मैं हरिवंश जी से नियमित संपर्क में था। उनसे कई बार आग्रह भी कर चुका था कि मुझे यहां काम नहीं करना। आप बुला लीजिए। एक बार तो मैंने प्रभात खबर रांची में काम करने वाले एक पिउन प्रमोद से चिट्ठी हरिवंश जी को भेजी कि अगर आप रख सकते हैं तो बुला लीजिए, वर्ना मैं जनसत्ता की नौकरी छोड़ घर लौट जाऊंगा। जब उन्हें चिट्ठी मिली तो उन्होंने दिन में फोन किया। तब मोबाइल नहीं था और जो फोन नंबर उनको कभी मैंने दिया था, वह हमारे संपादक श्यामसुंदर आचार्य का था। उसी नंबर पर हरिवंश जी ने फोन किया और कहा कि अश्क से बात करनी है, मैं हरिवंश बोल रहा हूं। श्यामजी हरिवंश जी को जानते थे। उन्होंने बताया कि अश्क जी शाम को आएंगे, तब मैं उनसे बात करूंगा। चूंकि मेरी नियुक्ति रिपोर्टर कम सब एडिटर के रूप में हुई थी, इसलिए दिन में मैं रिपोर्टिंग करता और शाम को खबरें लिख-संपादित कर पेज बनवा कर देर रात 11.40 बजे की लोकल ट्रेन से तकरीबन 70 किलोमीटर दूर श्यामनगर स्टेशन के पास गारुलिया पहुंचता।

खैर, शाम को दफ्तर आया तो पता चला कि श्यामजी बड़ी बेताबी से मेरा इंतजार कर रहे हैं। उनसे मिला तो उन्होंने बताया कि हरिवंश जी का आपके लिए फोन आया था। फिर उन्होंने ही अपने फोन से हरिवंश जी का नंबर मिला कर मुझे दे दिया। उधर से हरिवंश जी ने सीधे कहा कि अभी इस्तीफा मत देना। मैं जल्दी ही कुछ करता हूं। चूंकि मेरे सामने श्यामजी थे, इसलिए हूं, हां, जी बोल कर ही मैंने काम  चला लिया।

उषा मार्टिन का प्लांट देखने रांची जाना मेरे लिए एक नये अवसर की दहलीज साबित होने वाला है, यह मुझे पता नहीं था। मैं जब हरिवंश जी से मिला तो उन्होंने मेरे लिए एक काम सोच रखा था। बताया कि हर हफ्ते चार पेज का बिजनेस पुलआउट बनाना है, जो सोमवार को अखबार के साथ सप्लीमेंट के तौर पर बंटेगा। इसकी कंटेंट प्लानिंग से लेकर एक्जीक्यूशन तक मुझे करना है। मैंने उनको सलाह दी कि इससे बढ़िया यह होगा कि बारह पेज का एक साप्ताहिक अखबार क्यों न बिजनेस का बनाया जाये, जो एक दिन प्रभात खबर के साथ फ्री बंटेगा और बाकी छह दिन इसकी ओपन मारेकिटंग होगी। इसके फायदे भी मैंने बताये कि स्वतंत्र अखबार होने पर विज्ञापन भी आएंगे। हां, एक सलाह और दे डाली कि इसका प्रकाशन केंद्र कोलकाता होगा। प्रभात खबर के साथ फ्री बांटने पर उसके प्रसार संख्या के बराबर इसकी भी प्रसार संख्या पक्की हो जाएगी, जिसके आधार पर विज्ञापन की मार्केटिंग करनी आसान होगी।

हरिवंश जी को मेरा प्रस्ताव पसंद आ गया। उन्होंने कहा कि एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट बना कर भेजो। जितनी जल्दी हो सके, यह काम करो। तुम्हारी नियुक्ति सीनियर न्यूज एडिटर के पद पर होगी और अभी तुम्हें 8000 रुपये मिलेंगे। तुम्हारा अप्वाइंटमेंट लेकर हम कलकत्ता आ रहे हैं। तब मुझे जनसत्ता में 6200 के आसपास मिलते थे और पद सब एडिटर कम रिपोर्टर का था।

आप कल्पना कर सकते हैं कि मुझे कितनी खुशी हुई होगी। अपने न्यूज एडिटर की इच्छा के विरुद्ध मैं टूर पर गया था, उसकी अब मुझे कोई परवाह नहीं थी। रांची से मैं पहले सीवान गया। प्लांट विजिट की एक खबर बनायी और फ्री में फैक्स करने के लिए मिले कार्ड से सीवान पोस्ट आफिस से कोलकाता खबर भेज दी। वहां से एक-दो दिन बाद कोलकाता लौटा।

कोलकाता में मेरे एक मित्र हैं नवीन राय। वह तब जनसत्ता में स्ट्रिंगर थे। उनको भरोसे में लेकर दूसरे दिन मैंने प्रोजेक्ट रिपोर्ट रांची भेजवायी। रिपोर्ट सबने ओके कर दी। नवीन की हरिवंश जी ने तारीफ भी की थी कि बड़ा प्यारा और भरोसे का लड़का है। नवीन को आने-जाने का किराया भी दिलवा दिया।

29 अप्रैल को हरिवंश जी कोलकाता पहुंचे। तब एक जेनरल मैनेजर पी.के. सेन (जिन्हें हम टोका दा कहते थे) थे। हरिवंश जी ने मुझे उषा मार्टिन आफिस बुलाया और बधाई देते हुए टोका दा के साथ मेरा अप्वाइंटमेंट लेटर मुझे थमा दिया। एक मई तक ज्वाइन करना था।

मैंने अपनी यह खुशी जनसत्ता में क्राइम बीट पर काम कर रहे प्रभात रंजन दीन को बतायी थी। इस्तीफा कैसे दिया जाये, यह मेरे लिए बड़ी मुसीबत थी। इसलिए मेरे संपादक श्यामजी मुझे भ्रातृवत प्यार करते थे। बड़ी हिम्मत जुटा कर दूसरे दिन मैं इस्तीफा लेकर गया। उसी दौरान फोटोग्राफर फोटो लेकर आ गया। श्याम जी ने कहा- देखो तो अश्क जी, यह फोटो ठीक रहेगी क्या। मेरी बोलती बंद। मैंने हां तो कह दी, पर अपनी बात कैसे कहूं। जैसे ही फोटोग्राफर निकला, मैंने इस्तीफा उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा- भैया, मुझे एक अच्छा आफर मिला है। वह पत्र पढ़ने लगे। रिवाल्विंग चेयर को दायें-बायें करते वह पूछते भी रहे कि क्या आफर है, कहां का है। मैंने बताया। तब तक अमितजी प्रवेश कर गये। उन्होंने पत्र उनकी ओर बढ़ा दिया, यह कहते हुए कि अश्क जा रहे हैं। वह पत्र पढ़ने में मशगूल हो गये और मैं बाहर निकल गया। (जारी)

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