जानिए अपने वोट की कीमत, एक वोट से गिरी थी अटल सरकार

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चुनाव के बारे में मायूसी महंगी पड़ सकती है। यह तो सबको पता है कि 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार मात्र एक वोट से गिर गयी थी। हालांकि उस दिन वाजपेयी जी और सुषमा स्वराज द्वारा किया गया भाषण अब भी लोगों के जेहन में है। सरकार बनने-बिगड़ने में एक वोट की कीमत समझने के लिए यह एक उदाहरण काफी है।

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आमतौर पर लोगों की धारण रही है कि कौन जाये लंबी लाइन में घंटों इंतजार कर वोट डालने। उसके एक वोट से क्या होगा। कुछ बनने-बिगड़ने वाला तो है नहीं। लेकिन सच्चाई बिल्कुल अलग है। एक वोट से भी जीत-हार संभव है। यह अलग बात है कि अमूमन ऐसा नहीं होता, लेकिन कई मौकों पर ऐसा हुआ है। बड़े-बड़े नामचीन लोगों को एक वोट की कीमत चुकानी पड़ी है। कई लोग एक वोट से जीते और हारे हैं।

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एक वोट से जीत-हार की कहानी वर्ष 2008 में राजस्थान में भी दोहरायी गयी। नाथद्वारा सीट से सी.पी. जोशी मात्र एक वोट से चुनाव हार गय थे। जोशी जी को यकीनन यह अफसोस साल रहा होगा कि उनका ड्राइवर अगर वोट डाल पाया रहता तो उन्हें पराजय का मुंह नहीं देखना पड़ता। उनके ड्राइवर को वोट डालने का समय ही नहीं मिला था।

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यह तो रही अपने देश में एक वोट से जीत-हार की बात। अब आते हैं विदेश के मामले में। 1776 में अमेरिका में एक वोट से जर्मन भाषा के स्थान पर अंग्रेज़ी राजभाषा बन गयी। जर्मन को राष्ट्रभाषा बनाने वालों की संख्या इतनी अधिक थी कि यह तय माना जा रहा था कि जर्मन ही राष्ट्रबाषा बनेगी। लेकिन एक वोट की कमी ने सारा खेल बिगाड़ दिया और अंग्रेजी के पक्ष में एक वोट ज्यादा चला गया।

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1875 में फ्रांस में राज तंत्र और गणतंत्र के सवाल पर हुई वोटिंग में भी एक वोट की कीमत लोगों को समझ में आई। महज एक वोट के अंतर से फ्रांस में राज तंत्र की जगह गणतंत्र को मात्र एक वोट से मान्यता मिल गयी थी। वहां राज तंत्र के स्थान पर गणतंत्र आया।

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एक वोट का कमाल 1917 में भी दिखा, जब सरदार पटेल अहमदाबाद म्यूनसिपल कारपोरेशन का चुनाव मात्र एक वोट से हार गये थे। कहने को मामला एक वोट का लगता है, लेकिन यह दशा-दिशा तय करने में बड़ा निर्णायक सिद्ध होता है। 1923 में एक वोट ज्यादा मिलने से हिटलर नाजी़ पार्टी का प्रमुख बन गया और तभी हिटलर युग की शुरुआत हुई थी।

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एक वोट की कीमत समझाने के पीछे मंशा यह थी कि देश में लोकसभा का चुनाव हो रहा है। गुरुवार को पहले चरण की वोटिंग हुई। सबसे कम वोट तकरीबन 53 प्रतिशत बिहार में पड़े। यानी 47 प्रतिशत लोग मतदान नहीं कर पाये। अगर आपकी प्रतिबद्धता किसी उम्मीदवार या दल के प्रति है तो अगले चरण में मतदान अवश्य करें।

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