पटना। लालू प्रसाद यादव जमानत मिलते ही एक्टिव हो गये हैं। 9 मई को वह आरजेडी के विधायकों, विधान पार्षदों को वीडियो के माध्यम से संबोधित करेंगे। बेल के बाद दिल्ली में इलाज करा रहे लालू प्रसाद अपनी बेटी मीसा भारती के घर ठहरे हुए हैं। रविवार को 12 बजे वे आरजेडी नेताओं से मुखातिब होंगे।
लालू प्रसाद यादव 3 वर्षों से ज्यादा के वनवास के बाद पहली दफा 9 मई को अपने लोगों से मुखातिब होंगे। आरजेडी के विधायक व विधान पार्षदों को उस दिन होने वाले वीडियों कान्फ्रेंसिंग में शामिल होने के लिए कहा गया है। लालू क्या संदेश देंगे, यह तो अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन इसे लेकर बिहार के राजनीतिक गलियारे में हलचल शुरू हो गयी है।
अर्से बाद रविवार से राजनीति में लालू की सक्रिय भूमिका का आगाज माना जा रहा है। दरअसल बिहार के पड़ोसी राज्य बंगाल के अलावा केरल और तमिलनाडु में हुए हाल के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की पराजय के बाद विपक्ष का मनोबल ऊंचा हुआ है। उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में भी बीजेपी को आशातीत सफलता न मिलने के कारण विपक्षी दलों का मनोबल सातवें आसमान पर है। एक बार फिर विपक्षी एकता की उम्मीदें जगी हैं। लालू इसके सूत्रधार बन सकते हैं।
वह देश में विपक्ष की राजनीतिक एकता तो बिहार में आरजेडी की ताकत बढ़ाने को लेकर एक बार फिर से सक्रिय भूमिका में दिखायी पड़ सकते हैं। आज दिल्ली में लालू प्रसाद यादव से जेडीयू के वरिष्ठ नेता उपेंद्र कुशवाहा की सौजन्यमूलक मुलाकात होने वाली है। इस मुलाकात ने बिहार में राजनीतिक कयासों को हवा देनी शुरू कर दी है।
आइए देखते हैं कि बिहार की सियासत में लालू प्रसाद यादव के सक्रिय होने से क्या बदलाव हो सकते हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जेडीयू के साथ मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी और जीतन राम मांझी की पार्टी हम (से) के विधायकों की संयुक्त संख्या से कुछ ही कम संख्या आरजेडी, वामपंथी और कांग्रेस विधायकों की है। यानी लालू थोड़ा प्रयास करें तो बिहार में सत्ता पलट हो सकता है। इसके लिए ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम, जीतन राम मांझी की पार्टी हम (से) और मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी को साथ लाने की लालू कोशिश कर सकते हैं। वीआईपी और हम (से) विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आरजेडी के ही साथ थे।
दूसरा राजनीतिक खेल यह हो सकती है कि नीतीश कुमार के करीबियों के माध्यम से लालू उन्हें यह संदेश दें कि आप भाजपा का मोह छोड़िए और आरजेडी के साथ सरकार बनाइए। मुख्यमंत्री का चेहरा नीतीश कुमार को ही रखने की रजामंदी लालू दे सकते हैं। शर्त यह होगी कि अगले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले नीतीश कुमार प्रधानमंत्री का चेहरा बनें और सत्ता आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दलों के महागठबंधन को सौंप दें। बदले में ये तीनों दल नीतीश कुमार के लिए प्रधानमंत्री की जमीन तैयार करेंगे।
बहरहाल अभी ये सारे कयास हैं, लेकिन आने वाले समय में बिहार की राजनीति कोई करवट ले ले तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। जिस तेजी से देश में हालात भाजपा के खिलाफ होते जा रहे हैं, उसमें सबल विपक्ष की गुंजाइश दिखायी पड़ने लगी है। कांग्रेस में कोई चेहरा नहीं दिख रहा। ममता बनर्जी में संभावना देख रहे लोग उनकी तुनकमिजाजी से वाकिफ हैं। इसलिए समय आने पर नीतीश को लोग स्वीकारना बेहतर मानेंगे, बनिस्पत ममता बनर्जी के।
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