पटना। बिहार की सियासत में सुनाई देने लगी है। लालू प्रसाद की आहट लालू प्रसाद दिल्ली में भले हों, लेकिन बिहार की सियासत में उनकी दिलचस्पी बढ़ी है। लाकडाउन के बाद लालू प्रसाद के पटना आने की उम्मीद है। आने वाले दिनों में बिहार में सियासी भूचाल आ सकता है। बिहार की सत्ता पर काबिज होने के लिए आरजेडी के नेतृत्व वाला महागठबंधन बेचैन है। उसे इस बात का मलाल है कि सत्ता के लिए जरूरी जादुई 122 के आंकड़े से वह दर्जन भर पीछे रह गया। उसकी पहली कोशिश दर्जन भर विधायकों का बंदोबस्त करने की होगी। इस काम में लालू प्रसाद की भूमिका महत्वपूर्ण होने वाली है।
बीजेपी की तमाम कोशिशों के बावजूद बंगाल में ममता बनर्जी की तीसरी बार चबर्दस्त वापसी के बाद विपक्ष में एक नयी ऊर्जा का संचार हुआ है। इसी बीच लालू प्रसाद को हाईकोर्ट ने बेल भी दे दी। कोविड में शुरुआती बदइंतजामी से नरेंद्र मोदी के प्रति बढ़ी नाराजगी को देखते हुए माना जा रहा है कि विपक्ष एक बार फिर एकजुट होने का प्रयास करेगा। इसकी शुरुआत वाम दलों और कांग्रेस को लेकर आरजेडी ने पहले ही बिहार में कर दी है। यह प्रयोग सफल भी रहा है। लालू के जेल से बाहर आने के बाद अनुमान लगाया जा रहा है कि उनकी पहल पर कोई नया सियासी गुल खिल सकता है। इसकी शुरुआत भी बिहार से ही हो सकती है।
बिहार में एनडीए की सरकार का नेतृत्व जेडीयू के नीतीश कुमार कर रहे हैं। बिहार एनडीए (NDA) में बीजेपी (BJP), जेडीयू (JDU) के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की पार्टी HAM (S) और मुकेश सहनी की पार्टी VIP शामिल हैं। कुछ निर्दलीय विधायकों का भी नीतीश कुमार की सरकार को समर्थन है। यानी नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार को 127 विधायकों का समर्थन है। दूसरी ओर आरजेडी (RJD) के नेतृत्व वाले महागठबंधन में वाम दल और कांग्रेस (Congress) शामिल हैं। महागठबंधन के पास 110 विधायक हैं। ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) के 5 विधायक हैं।
जीतनराम मांझी और मुकेश सहनी अक्सर अपनी नाराजगी का इजहार करते रहते हैं। उनकी सबसे बड़ी नाराजगी दो कारणों से है। पहला यह कि उन्हें सरकार में यथोचित महत्व नहीं दिया गया। दूसरा कि विधान परिषद में उन्हें एक-एक सीट की उम्मीद थी, जो नहीं मिली। कई मौकों पर उनके बयान नीतीश कुमार के खिलाफ आते रहे हैं। दो दिन पहले ही मुकेश सहनी अचानक जीतनराम मांझी से मिलने उनके आवास पहुंच गये। दोनों के बीच क्या बातचीत हुई, इसका खुलासा किसी ने नहीं किया, लेकिन अनुमान लगाया जाता है कि सरकार में अपनी उपेक्षा पर ही दोनों ने बात की होगी। जिस तरह की सूचनाएं आती रही हैं कि लालू प्रसाद जेल से निकलने के बाद लगातार दोनों के संपर्क में हैं, संभव है कि उस पर भी चर्चा हुई हो।
आरजेडी की कोशिश है कि वह किसी तरह 122 के जादुई आंकड़े का बंदोबस्त करे। इसके लिए उसे 4-4 विधायकों वाले इन दोनों को साथ लाना जरूरी होगा। एनडीए में आने से पहले दोनों आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में ही थे। इसलिए माना जा रहा है कि इनका मन-मिजाज आरजेडी के प्रति नरम हो सकता है। अपनी कामयाबी के लिए आरजेडी इन्हें महत्पूर्ण पद भी सरकार में देने का प्रलोभन दे सकता है। इस तरह महागठबंधन के पास 118 विधायक हो जाएंगे। 4 की कमी ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) के 5 विधायकों को लेकर पूरी की जा सकती है। लालू प्रसाद के पटना आगमन पर इस खेल के हकीकत में बदलने का अनुमान लगाया जा रहा है।
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