आइसक्रीम, पेस्ट्री, केक या शेक छोड़ो, बीमारी से बचो! यह सुझाव अपने अनुभवों के आधार पर वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल का है। उन्होंने अपने फेसबुक वाल पर इन चीजों के अपने अनुभवों के बारे में लिखा है।
- शंभूनाथ शुक्ल
आइसक्रीम, पेस्ट्री, केक या किसी भी तरह के शेक मैंने त्याग दिए हैं। मीठा खाना हो, तो ठंडी खीर सबसे उत्तम। भोजन वही करना चाहिए, जो अपनी प्रकृति के अनुकूल हो। और डॉ. स्कंद शुक्ल के अनुसार खेत के करीब हो। एक किस्सा सुनिए, साल 1992 की बात है, अपने मित्र श्री रामलाल राही पीवी नरसिंह राव की सरकार में उप मंत्री थे। मालूम हो कि अब उप मंत्री पद समाप्त हो गया है। राव साहब ने उन्हें उप मंत्री इसलिए बनाया था, क्योंकि 1991 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से कांग्रेस के जो 5 लोग जीते थे, उनमें से एक रामलाल राही जी भी थे। उत्तर प्रदेश के सभी लोग मंत्री बनाए गए, सो अपने दोस्त राही जी भी बन गए।
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अब उप मंत्री के पास करने को तो कुछ होता नहीं है, वह भी गृह मंत्रालय में, जहाँ तब शंकर राव चव्हाण कैबिनेट मंत्री थे। पर कुछ न कुछ काम तो उन्हें देना ही था, इसलिए उन्हें ‘ओएल’ दे दिया। ‘ओएल’ यानी “ऑफिसियल लैंग्वेज़” विभाग, जिसे हिंदी में राजभाषा कहते हैं। ‘ओएल’ सबसे उपेक्षित विभाग होता है, हालांकि उसका बज़ट कम नहीं होता, लेकिन बजट मिलता तब है, जब मंत्री अंग्रेजी पोंके! पोंके का मतलब है कि मंत्री शरीर के सारे छिद्रों से अंग्रेजी में ही वायु विसर्जित करे।
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अब अपने राही जी अत्यंत पिछड़ी जाति पासी कुल में जन्मे। मुफलिसी में पढ़े थे, वह भी यूपी के सीतापुर जिले से। हालांकि वे 1955 के मैट्रिक हैं, पर वे अधिकतर अवधी ही बोलते हैं, और बेहद सज्जन तथा सीधे भी हैं। लेकिन चूंकि बजट है, इसलिए कुछ तो खर्च होगा ही। अतः मैंने उनको राय दी, कि आप दक्षिण के राज्यों में जाकर हिंदी अर्थात राजभाषा की प्रगति की समीक्षा करिए। राही जी राज़ी हो गए, पर शर्त रखी, कि शुक्ला जी आपको भी चलना होगा।
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यह मुश्किल था, क्योंकि मेरे लिए 15 दिन की छुट्टी लेना आसान नहीं था, तब मैं जनसत्ता की राज्य डेस्क, जिसमें यूपी, एमपी, बिहार और राजस्थान की ख़बरें लगती थीं, का प्रभारी था। हमारी डेस्क सबसे “रिच” थी। स्ट्रेंग्थ के लिहाज़ से भी और कामकाज व फल-फूल के लिहाज़ से भी। इस डेस्क के साथियों से काम लेना उस समय किसी के लिए आसान नहीं था। मैं ही किसी तरह उनको काम के लिए राज़ी करता था। हालाँकि काम में सब माहिर थे, लेकिन थे शिव जी के वाहन! यहाँ तक कि संपादक प्रभाष जी भी कहते थे- शुकल जी, ये आपके छुट्टा साथी! यूँ मैं अपने साथियों को भरोसे में लेकर भी जा सकता था, पर 15 दिन में कुछ ऊंच-नीच हो जाए तो?
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खैर, मैंने अपने न्यूज़ एडिटर श्री श्रीश मिश्र से अनुरोध किया, तो उन्होंने फ़ौरन छुट्टी स्वीकृत कर दी। मैं थोड़ा चकराया, कि यह कैसे हो गया! पर हो गया सो हो गया! यह तो फिर कभी बताऊंगा कि यह ‘क्यों’ हुआ?
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राही जी को गृह मंत्रालय के कैबिनेट मंत्री ने बीएसएफ का एक जहाज़ आवंटित कर दिया। 22 सीटर उस जहाज़ में एक केबिन था, जिसमें मंत्री जी और मैं बैठता। इस केबिन में सोफे थे और खूब जगह। मंत्री जी का स्टाफ तथा सुरक्षा कर्मी भी साथ रहते। पूरे 15 रोज़ हम दक्षिण भारत घूमे। यह जहाज़ हमें कालीमिर्च के लिए विख्यात केरल के कोझीकोड में उतार कर वापस चला गया। वहां से कोचीन, त्रिवेंद्रम, कन्याकुमारी तथा लक्षदीप की यात्रा हमने रेल मार्ग और जलयान से की। पूरे 15 दिन बाद वह जहाज़ हमें त्रिवेंद्रम में लेने आया।
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कोझिकोड में पता चला कि यहाँ हिंदी उर्दू के सहारे चलती है। वहां के विश्वविद्यालय में मलिक मोहम्मद साहब हिंदी के अध्यक्ष थे। और उर्दू विभाग उनका सुपर अध्यक्ष था। हालाँकि मालाबार तट के इस इलाके में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई बराबर की संख्या में हैं, पर विवि में हिंदी के छात्र सिर्फ मुस्लिम दिखे। हिन्दुओं को वहां हिंदी में दिलचस्पी नहीं। और ईसाई अंग्रेजी पढ़ते थे। अब शायद वहां मुस्लिम भी हिंदी में उच्च शिक्षा नहीं लेते। उस वक़्त दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में पुराने गांधीवादी थे, पर अब सन्नाटा है।
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वहां पर केंद्रीय सूचना सेवा के एक अधिकारी मिले, जो वहीँ पोस्टेड थे, पर मंत्री जी के प्रोटोकोल में उनकी ड्यूटी लगी थी। उन्होंने मुझसे कहा, कि शुक्ला जी, जिस इलाके में रहें, वहां की प्रकृति के अनुरूप भोजन करें। यहाँ आप तड़का या दाल मक्खनी मत तलाशिएगा, न आलू या पनीर भरा डोसा अथवा रोटी या चिकेन। दक्षिण में आप जब तक रहें, तब तक डोसा, या सांभर-भात-रसम खाएँ अथवा फिश। मैंने उनकी बात मान ली। और एक भी दिन दाल-रोटी नहीं खाई। हालाँकि हम वीवीआईपी थे, जो चाहते मिलता। साथी पत्रकारों ने खाई और सब बीमार पड़े। एक मैं ही स्वस्थ लौटा।
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