मलिकाइन के पाती- देवी-देवता के पावर खतम हो गइल का मलिकार!

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पावं लागीं मलिकार। काल्ह सांझे से मन अइसन छउंछियाइल बा कि भर रात नीन ना आइल। फजीर होत रउरा के पाती लिखवावे बइठ गइल बानी। हम त गदबेरा में दीया-बाती में बाझल रहवीं। नन्हकी पांड़े बाबा के घरे टीबी (टीवी) देखे गइल रहवे। ऊ भागल अउवे आ कहवे कि ए माई, पंजाब में रेल से कटा के सैकड़न आदमी मर गइले। दियरखा पर दीया धरत रहवीं। ई ना कहीं कि दीया हाथ में ना रहवे, ना त हाथ में से छूट के गिर जाइत। हड़बड़ा के पूछवीं कि के बतावल हा रे, कहां, कइसे भइल। एके बेर में सगरी सवाल पूछ लिहवीं। ऊ कहवे कि पांड़े बाबा के टीवी में देखावत बा। बेर-बेर एके खबरिया देखा रहल बा। कबो कहत बा कि 40-50 आदमी कटा गइल बाड़े त कबो कहत बा कि अबही कटाये वाला के सही गिनती नइखे भइल। गिनती पचास-साठ से ऊपरो जा सकेला। लोग रावन के जरावे खातिर जुटल रहुवे। रावन के देह में जइसे आग धरावल गउवे, ओइमें खोंसल पड़ाका फूटे लगुवे। रावन बीचे में से टूट के गिर गउवे। भगदड़ मच गउवे। लोग भाग के रेल लाइन पर खड़ा होके तमाशा देखे लगुवे। एतने में रेल गाड़ी दनदनात आ गउवे आ लोग के भुजुरी अइसन काटत बढ़ गउवे।

बूझ जाईं मलिकार कि एतना सुनते हमार देह थरथरा गउवे। हम त ओही जा धम्म से बइठ गउवीं। नवरातन के सगरी पूजा-पाठ पर पानी फेरा गइल। लोग केतना खुशी मन से देवी-देवता के पूजेला आ ओकरा बाद अइसन हो गइल। हमरा त एक बेर अइसन लगुवे मलिकार कि सगरी पूजा-पाठ बेकार बा। मन के खाली भरम बा। जवन होखे वाला बा, तवना के केहू रोक ना सकेला। त कवना बात के देवी-देवता आ भूखल-पियासल रह के ओह लोग पुजाई। जेकरा घर के दीया बुता गइल, ऊ सगरी पापी लोग त ना नू होई मलिकार।

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हमरा त बुझाता मलिकार एह कलजुग में देवी-देवता के लोग पावर खतम हो गइल। चोर ओह लोग मंदिर से साज-सिंगार के गहना चोरा ले जाले सन। कई बेर त देवी-देवता लोग के मुरतीए उठा ले जा तारे सन। कहवां चल जाता ओह लोग के पावर। लोग कहेला कि धुरपती (द्रौपदी) किसुन भगवान (कृष्ण भगवान) के पुकरली त ऊ उनकर साड़ी अतना लमहर क दिहले कि दुरजोधन (दुर्योधन) खींचते-खींचते थाक गइल। अइसन किसिम-किसिम के कहानी बचपन से सुनत-सुनत बुढ़ा गइनी, बाकिर अइसन कबो देखे के ना मिलल कि कवनो देवी-देवता केहू के बचावे खातिर आ गइल लोग। अब त हमरा चित से ई देवी-देवता उतर गइल बा लोग मलिकार। काल्ह के बाद हमार मन दूध अइसन फाट गइल बा।

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कहे वाला त इहे कहीं कि ओह लोग के इहे गति लिखल रहल हा। जब लिखल के होखे वाला बा त कोटि-कोटि देवी-देवता लोग के कवन दरकार बा। अरबों-खरब के खरच से एह लोग के पूजल कवना काम के। आदमी कवनो देउकुरी एही खातिर नू जाला कि ओकर दिन नीमन से बीते। हमार मन ठीक नइखे मलिकार। आज अतने लिखवावत बानी।

राउरे, मलिकाइन

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